Wednesday 24 May 2017

स्वामी विवेकानंद

एक बार स्वामी विवेकानंद जी किसी स्थान पर प्रवचन दे रहे थे | श्रोताओ के बीच एक मंजा हुआ चित्रकार भी बैठा था | उसे व्याख्यान देते स्वामी जी अत्यंत ओजस्वी लगे | इतने कि वह अपनी डायरी के एक पृष्ठ पर उनका रेखाचित्र बनाने लगा |

प्रवचन समाप्त होते ही उसने वह चित्र स्वामी विवेकानंद जी को दिखाया | चित्र देखते ही, स्वामी जी हतप्रभ रह गए | पूछ बैठे -'यह मंच पर ठीक मेरे सिर के पीछे तुमने जो चेहरा बनाया है , जानते हो यह किसका है ? चित्रकार बोल - 'नहीं तो .... पर पूरे व्याख्यान के दौरान मुझे यह चेहरा ठीक आपके पीछे झिलमिलाता दिखाई देता रहा |

यह सुनते ही विवेकानंद जी भावुक हो उठे | रुंधे कंठ से बोले -"'धन्य है तुम्हारी आँखे ! तुमने आज साक्षात मेरे गुरुदेव श्री रामकृष्ण परमहंस जी के दर्शन किए ! यह चेहरा मेरे गुरुदेव का ही है, जो हमेशा दिव्य रूप में, हर प्रवचन में, मेरे अंग संग रहते है ...
मैं नहीं बोलता, ये ही बोलते है | मेरी क्या हस्ती, जो कुछ कह-सुना पाऊं ! बाँट रहे है | वैसे भी देखो न, माइक आगे होता है और मुख पीछे | ठीक यही अलौकिक दृश्य इस चित्र में है | मैं आगे हूँ और वास्तविक वक्ता - मेरे गुरुदेव पीछे !"

गुरु शिष्यों में युगों युगों से यही रहस्यमयी लीला होती आ रही है |
अपने गुरु पर पूर्ण विश्वास रखे वे सदैव हमारे साथ हैं........

नमो नमः श्री गुरुपादुकाभ्यां

No comments:

Post a Comment