Monday 6 November 2017

चोट

पापा पापा मुझे चोट लग गई खून आ रहा है

5 साल के बच्चे के मुँह से सुनना था
कि पापा सब कुछ छोड़ छाड़  कर
गोदी में उठाकर एक किलो मीटर की दूरी पर क्लिनिक तक भाग भाग कर ही पहुँच गए

दुकान कैश काउंटर सब नौकर के भरोसे छोड़ आये

सीधा  डाक्टर के केबिन में दाखिल होते हुए  डॉक्टर को बोले
देखिये देखिये डॉक्टर
मेरे बेटे को क्या हो गया

डॉक्टर साहब ने देखते हुए कहा
अरे भाई साहब घबराने की कोई बात
है मामूली चोट है.... ड्रेसिंग कर दी है
ठीक हो जायेगी।

डॉक्टर साहब कुछ पेन किलर लिख देते दर्द कम हो जाता ।  अच्छी से अच्छी दवाईया लिख देते ताकि
जल्दी ठीक हो जाये घाव भर जाये
*डाक्टर* अरे भाई साहब क्यों इतने परेशान हो रहे हो कुछ नहीं हुआ है
3-4दिन में ठीक हो जायेगा

पर डॉक्टर साहब  इसको रात को नींद तो आजायेगी ना ।
*डॉक्टर* अरे हाँ भाई हाँ आप चिंता मत करो।  बच्चे को लेकर लौटे तो नौकर बोला सेठ जी  आपका ब्रांडेड  महंगा शर्ट खराब हो गया खून लग गया अब
ये दाग नही निकलेंगे

*भाई साहब* कोई नहीं
ऐसे शर्ट बहुत आएंगे जायेंगे मेरे बेटे का खून बह गया वो चिंता खाये जा रही है कमजोर नहीं  हो जाये । तू जा एक काम  कर थोड़े  सूखे मेवे फ्रूट ले आ इसे खिलाना पड़ेगा और  मैं चलता हूँ घर पर

*40 साल बाद*

दुकान शोरूम में तब्दील हो गई है

भाई साहब का बेटा बिज़नस बखूबी संभाल रहा है
भाई साहब रिटायर्ड  हो चुके हैं घर पर  ही रहते है
तभी घर से बेटे की बीवी का फोन आता है

*बीवी*📞अजी सुनते हो ये आपके पापा पलंग से गिर  गए हैं
सर पर से खून आ रहा है

*लड़का*📱 अरे यार ये पापा भी न
इनको बोला ह जमीन पर सो जाया करो पर मानते हीे नही पलंग पर ही सोते है  

अरे रामु काका जाओ तो घर पर पापा को डॉक्टर अंकल के पास ले कर आओ मैं मिलता हूँ  वहीँ पर।

बूढ़े हो चुके रामु काका चल कर धीरे धीरे घर जाते है
तब तक सेठजी  का काफी खून बह चुका था

बहु  मुँह चढ़ा कर बोली
ले जाओ जल्दी  पूरा महंगा कालीन खराब हो गया है

काका  जैसे तैसे जल्दी से रिक्शा में सेठजी को डाल कर
क्लीनिक ले गए

बेटा अब तक नही पंहुचा था
काका ने फोन किया तो बोला
अरे यार वो कार की  चाबी नही मिल रही थी अभी मिली है
थोड़े कस्टमर भी है आप बैठो लेकर  मैं आता हूँ

जो दूरी 40 साल पहले एक बाप ने
बेटे के सर पर खून देखकर 10 मिनट में बेटे को गोदी में उठा कर भाग कर तय कर ली थी

बेटा 1घन्टा 10 मिनट में कार से भी तय नही कर पाया था

डाक्टर ने जैसे  ही भाई साहब को देखा उनको अंदर ले गए इलाज चालू किया
तब तक बेटा भी पहुँच गया
डॉक्टर अंकल बोले
बेटे खून बहुत बह गया है
एडमिट कर देते तो  ठीक रहता

*बेटा* अरे कुछ नही डाक्टर साहब
आप ड्रेसिंग कर दो ठीक हो जायेगा
2-4 दिन में ।

डाक्टर अंकल बोले ठीक  है कुछ दवाईया लिख देता  हूँ थोड़ी महंगी है  लेकिन आराम जल्दी हो जायेगा

*लड़का* अरे डॉक्टर अंकल चलेगा 4-5 दिन ज्यादा लगेंगे तो अब इतनी महंगी दवाइयो की क्या जरूरत । चलो मुझे निकलना पड़ेगा शोरूम पर कोई नहीं है ।

ये सुनते ही डॉक्टर अंकल के सब्र का बांध टूट गया
और 40 साल पहले की घटना पूरी सुनाई

बेटे की आँखों आंसू बहने लगे उसे बहुत पस्च्याताप हुआ।

तभी बहू  का फोन आया
वो महंगा कालीन खराब हो गया है
क्या करूँ ।

बेटा बोला कालीन ही खराब हुआ है ना .....
नया आजायेगा
तुम पलंग पर नया चद्दर और गद्दा  डालो  मैँ पापा को ले कर आ रहा हूँ

भाई साहब के आँखों में आँसू थे
और ये ख़ुशी के थे

चोट का दर्द गायब था  बेटे
के अपनेपन ने सब भुला दिया।

बस अब तो मौत भी आ जाये तो
मंजूर है ।

दोस्तों ये आज की सच्चाई है
आज हमारे अंदर का इंसान मर चुका है  ।

माँ बाप अकेलेपन का जीवन जी
रहे हैं 

और

बेटा कामयाबी और दौलत
की चकाचौंध  में खो कर सब कुछ भूल चुका  है ।

Sunday 15 October 2017

सन्तानों के लिए विरासत

*आपकी सन्तानों के लिए विरासत*

मृत्यु के समय, एक व्यक्ति टॉम स्मिथ ने अपने बच्चों को बुलाया और अपने पदचिह्नों पर चलने की सलाह दी, ताकि उनको अपने हर कार्य में मानसिक शांति मिले।

उसकी बेटी सारा ने कहा, "डैडी, यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि आप अपने बैंक में एक पैसा भी छोड़े बिना मर रहे हैं। दूसरे पिता, जिनको आप भ्रष्ट और सार्वजनिक धन के चोर बताते हैं, अपने बच्चों के लिए घर और सम्पत्ति छोड़कर जाते हैं। यह घर भी जिसमें हम रहते हैं किराये का है।
सॉरी, मैं आपका अनुसरण नहीं कर सकती। आप जाइए, हमें अपना मार्ग स्वयं बनाने दीजिए।"

कुछ क्षण बाद उनके पिता ने अपने प्राण त्याग दिये।

तीन साल बाद, सारा एक बहुराष्ट्रीय कम्पनी में इंटरव्यू देने गई। इंटरव्यू में कमेटी के चेयरमैन ने पूछा, "तुम कौन सी स्मिथ हो?"

सारा ने उत्तर दिया, "मैं सारा स्मिथ हूँ। मेरे पिता टॉम स्मिथ अब नहीं रहे।"

चेयरमैन ने उसकी बात काट दी, "हे भगवान! तुम टॉम स्मिथ की पुत्री हो?"

वे कमेटी के अन्य सदस्यों की ओर घूमकर बोले, "यह आदमी स्मिथ वह था जिसने प्रशासकों के संस्थान में मेरे सदस्यता फ़ार्म पर हस्ताक्षर किये थे और उसकी संस्तुति से ही मैं वह स्थान पा सका हूँ, जहाँ मैं आज हूँ। उसने यह सब कुछ भी बदले में लिये बिना किया था। मैं उसका पता भी नहीं जानता था और वह भी मुझे कभी नहीं जानता था। पर उसने मेरे लिए यह सब किया था!"

फिर वे सारा की ओर मुड़े, "मुझे तुमसे कोई सवाल नहीं पूछना है। तुम स्वयं को इस पद पर चुना हुआ मान लो। कल आना, तुम्हारा नियुक्ति पत्र तैयार मिलेगा।"

सारा स्मिथ उस कम्पनी में कॉरपोरेट मामलों की प्रबंधक बन गई। उसे ड्राइवर सहित दो कारें, ऑफिस से जुड़ा हुआ डुप्लेक्स मकान और एक लाख पाउंड प्रतिमाह का वेतन अन्य भत्तों और ख़र्चों के साथ मिला।

उस कम्पनी में दो साल कार्य करने के बाद, एक दिन कम्पनी का प्रबंध निदेशक अमेरिका से आया। उसकी इच्छा त्यागपत्र देने और अपने बदले किसी अन्य को पद देने की थी। उसे एक ऐसे व्यक्ति की आवश्यकता थी जो बहुत सत्यनिष्ठ (ईमानदार) हो। कम्पनी के सलाहकार ने उस पद के लिए सारा स्मिथ को नामित किया।

एक इंटरव्यू में सारा से उसकी सफलता का राज पूछा गया। आँखों में आँसू भरकर उसने उत्तर दिया, "मेरे पिता ने मेरे लिए मार्ग खोला था। उनकी मृत्यु के बाद ही मुझे पता चला कि वे वित्तीय दृष्टि से निर्धन थे, लेकिन प्रामाणिकता, अनुशासन और सत्यनिष्ठा में वे बहुत ही धनी थे।"

फिर उससे पूछा गया कि वह रो क्यों रही है, क्योंकि अब वह बच्ची नहीं रही कि इतने समय बाद पिता को अभी भी याद करती हो।

उसने उत्तर दिया, "मृत्यु के समय, मैंने ईमानदार और प्रामाणिक होने के कारण अपने पिता का अपमान किया था। मुझे आशा है कि अब वे अपनी क़ब्र में मुझे क्षमा कर देंगे। मैंने यह सब प्राप्त करने के लिए कुछ नहीं किया, उन्होंने ही मेरे लिए यह सब किया था।"

अन्त में उससे पूछा गया, "क्या तुम अपने पिता के पदचिह्नों पर चलोगी जैसा कि उन्होंने कहा था?"

उसका सीधा उत्तर था, "मैं अब अपने पिता की पूजा करती हूँ, उनका बड़ा सा चित्र मेरे रहने के कमरे में और घर के प्रवेश द्वार पर लगा है। मेरे लिए भगवान के बाद उनका ही स्थान है।"

क्या आप टॉम स्मिथ की तरह हैं? नाम कमाना सरल नहीं होता। इसका पुरस्कार जल्दी नहीं मिलता, पर देर सवेर मिलेगा ही। और वह हमेशा बना रहेगा। *ईमानदारी, अनुशासन, आत्मनियंत्रण और ईश्वर से डरना ही किसी व्यक्ति को धनी बनाते हैं, मोटा बैंक खाता नहीं। अपने बच्चों के लिए एक अच्छी विरासत छोड़कर जाइए।*

समाज में बदलाव लाने के लिए कृपया इस सत्य घटना को अपने प्रिय व्यक्तियों के साथ साझा कीजिए।

Saturday 14 October 2017

"उठिये ब्रह्मर्षि"

"उठिये ब्रह्मर्षि"
(आधुनिक संदर्भों के लिये सटीक कथा।)
राजा विश्वामित्र सेना के साथ आखेट के लिए निकले थे। वन में घूमते हुए वे जब महर्षि वशिष्ठ के आश्रम के समीप पहुंच गए तब महर्षि ने उनका राजोचित आथित्य किया। आथित्य से विश्वामित्र आश्चर्यचकित रह गए तब उन्हें देखा की कामधेनु  नन्दिनी उस आथित्य के पीछे विद्यमान हैं, तब उन्होंने उस नंदिनी को लेने की कोशिश की ।अनेको योद्धाओं के साथ में युद्ध को तत्पर हो गए किंतु वशिष्ठ के धर्म दंड से सारे के सारे योद्धा मारे गए ।सारे अस्त्र खत्म होने के पश्चात विश्वामित्र को यह संकल्प हुआ कि वशिष्ठ के सारे दिव्यास्त्र मुझे प्राप्त करने हैं और वह कब प्राप्त होंगे जबकि मैं ब्राह्मण हो जाउंगा ।इस हेतु सैकड़ों वर्षो के उग्र तप से ब्रह्माजी ने प्रसन्न होकर के विश्वामित्र से कहा कि" वशिष्ठ आपको ब्रम्हर्षि मान ले तो आप ब्राह्मण हो जाएंगे।" विश्वामित्र के लिए वशिष्ठ से प्रार्थना करना तो बड़ा अपमानजनक था तब उन्होंने क्रोध में आकर के एक राक्षस को प्रेरित किया और वशिष्ठ के सौ पुत्र मरवा डाले। विश्वामित्र जी एक अलग ही हट पर उतर आए, तपोबल से उन्होंने नवीन सृष्टि प्रारंभ कर दी जिसके ब्रह्मा वे स्वयं बनना चाहते थे, अंत में ब्रह्मा जी ने आकर उन्हे रोका तब जाकर वो रुके ।
कोई उपाय सफल ना होता देखकर एक दिन विश्वामित्र जी ने वशिष्ठ जी को मार डालने का संकल्प लिया ।अस्त्र शस्त्र से सज्जित होकर रात्रि में छिपकर वशिष्ठ के आश्रम में गुप्त रुप से पहुंच गए ।
चांदनी रात थी , महर्षि वशिष्ठ अपनी पत्नी अरुंधति के साथ बैठे  चर्चा कर रहे थे ।कहने लगे कि यह चन्द्र की निर्मल ज्योत ऐसी लगती है मानो विश्वामित्र की तपस्या  चारों दिशाओं में आलोकित हो रही है।
अरुंधती ने कहा कि आप विश्वामित्र की तपस्या की इतनी प्रशंसा करते हैं तो उन्हें ब्रम्हर्षि क्यों नहीं मान लेते हैं।
वशिष्ठजी ने कहा कि मान लेने में अभी कुछ शेष है और अगर मैंने उन्होंने उन्हें ब्रम्हर्षि कह दिया तो उनके ब्रम्हर्षि होने की सारी संभावनाएं समाप्त हो जाएगी ।
विश्वामित्रजी यह वार्ता सुनकर तो जैसे सांप सूंघ गया।
उनके ह्रदय ने धिक्कारा की जिसे तू मारने आया है, जिससे रात दिन द्वेष करता है वह कौन है यह देख ।वह महापुरुष अपने सौं पुत्रों के हत्यारे की प्रशंसा एकांत में अपनी पत्नी से कर रहा है ।
विश्वामित्र ने सारे शस्त्र फेंक दिए ,वशिष्ठ के चरणों में गिर पड़े, उनका अहंकार समाप्त हो गया और तब महर्षि वशिष्ठ ने उनको अपने दोनों हाथों से उठाकर कहा -"उठिए ब्रम्हर्षि"।

Tuesday 3 October 2017

प्रतिक्रिया

एक बार एक इंटरव्यू में नसीरुद्दीन ने कहा कि अमिताभ बच्चन का सार्थक सिनेमा में खास योगदान नहीं रहा क्योंकि वो विशुद्ध व्यावसायिक अभिनेता हैं।

इसके बाद एक पत्रकार ने अमिताभ बच्चन को यह बात बताई और उनकी प्रतिक्रिया चाही।
बच्चन ने कहा" जब नसीरुद्दीन शाह के जैसा अंतर राष्ट्रीय अभिनेता कुछ कहता है तो आत्म मंथन करना चाहिये,प्रतिक्रिया नहीं देना चाहिये "

एक दफा गुलज़ार से किसी ने उनके पांच सबसे पसंदीदा गीतकारों के नाम पूछे।
गुलज़ार ने पांच गीतकार गिनवा दिये, उसमे जावेद अख्तर का नाम नहीं था।

फिर क्या था एक पत्रकार ने ये बात जावेद अख्तर को बताई और प्रतिक्रिया चाही।
जावेद अख्तर ने कहा"इस बात पर बस मैं ये कह सकता हूँ कि गुलज़ार साहब की लिस्ट में जगह पाने के लिए मुझे अभी और मेहनत करना होगा "

बोलना और प्रतिक्रिया करना जरूरी है लेकिन संयम और सभ्यता का दामन नहीं छूटना चाहिये।

Monday 2 October 2017

विक्रम साराभाई

*एक सच्ची घटना*

1970 के दशक में तिरुवनंतपुरम में समुद्र के पास एक बुजुर्ग, *भागवत गीता* पढ़ रहे थे, तभी एक नास्तिक और होनहार नौजवान उनके पास आकर बैठा। उसने, उन पर कटाक्ष किया कि, लोग भी कितने मूर्ख हैं, विज्ञान के युग में, *गीता* जैसी ओल्ड फैशन्ड बुक पढ़ रहे हैं।

उसने, उन सज्जन से कहा कि, यदि आप यही समय विज्ञान को दे देते तो, अब तक, देश ना जाने कहाँ पहुँच चुका होता।

उन सज्जन ने, उस नौजवान से परिचय पूछा तो, उसने बताया कि, वो कोलकाता से है और विज्ञान की पढ़ाई की है। अब यहाँ भाभा परमाणु अनुसंधान में, अपना कैरियर बनाने आया है।

आगे उसने कहा कि, आप भी थोड़ा ध्यान, वैज्ञानिक कार्यो में लगाएं, *भागवत गीता* पढ़ते रहने से, आप कुछ हासिल नहीं कर सकोगे।

वे मुस्कुराते हुए जाने के लिये उठे, उनका उठना था कि, चार सुरक्षाकर्मी, वहाँ उनके आसपास आ गए।

आगे ड्राइवर ने कार लगा दी, जिस पर लाल बत्ती लगी थी, लड़का घबराया और उसने, उनसे पूछा आप कौन हैं।

उन सज्जन ने, अपना नाम बताया, *विक्रम साराभाई*,

जिस भाभा परमाणु अनुसंधान में लड़का अपना कैरियर बनाने आया था, उसके अध्यक्ष वही थे।

उस समय, विक्रम साराभाई के नाम पर, 13 अनुसंधान केंद्र थे। साथ ही, साराभाई को, तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने, परमाणु योजना का अध्यक्ष भी नियुक्त किया था।

अब, शर्मसार होने की बारी लड़के की थी, वो साराभाई के चरणों मे रोते हुए गिर पड़ा, तब साराभाई ने बहुत अच्छी बात कही।

उन्होंने कहा कि, *"हर निर्माण के पीछे निर्माणकर्ता अवश्य है, इसलिए फर्क नहीं पड़ता, कि ये महाभारत है या आज का भारत, ईश्वर को कभी मत भूलो"*!!!

आज नास्तिक गण विज्ञान का नाम लेकर, कितना ही नाच लें, मगर इतिहास गवाह है कि, विज्ञान ईश्वर को मानने वाले आस्तिकों ने ही रचा है।

*ईश्वर शाश्वत सत्य है। ईश्वर की वाणी (भगवद्गीता ) सत्य है,  इसे झुठलाया कतई नहीं जा सकता। इनकी आराधना करने मात्र से संकट ज़रूर कट सकता है।*

Sunday 1 October 2017

एक मास्टर दो विद्यार्थी

एक मास्टर  दो  विद्यार्थी फिर भी कितना अन्तर
कॉलबेल की आवाज़ सुनकर जैसे ही सुबह-सुबह शांतनु ने दरवाजा खोला, सामने एक पुराना सा ब्रीफकेस लिए गांव के मास्टर जी और उनकी बीमार पत्नी खड़ी थीं। मास्टर जी ने चेहरे के हाव-भाव से पता लगा लिया कि उन्हें सामने देख शांतनु को जरा भी खुशी का अहसास नहीं हुआ है। जबरदस्ती चेहरे पर मुस्कुराहट लाने की कोशिश करते हुए बोला- "अरे सर, आप दोनों बिना कुछ बताए अचानक से चले आये! अंदर आइये।" मास्टर साहब ब्रीफकेस उठाये अंदर आते हुए बोले- "हाँ बेटा, अचानक से ही आना पड़ा; मास्टरनी साहब बीमार हैं; पिछले कुछ दिनों से तेज फीवर उतर ही नहीं रहा; काफी कमजोर भी हो गई है। गाँव के डॉक्टर ने AIIMS दिल्ली में अविलंब दिखाने की सलाह दी। अगर तुम आज आफिस से छुट्टी लेकर जरा वहाँ नंबर लगाने में मदद कर सको तो..."

"नहीं-नहीं, छुट्टी तो आफिस से मिलना असंभव सा है" बात काटते हुए शांतनु ने कहा। थोड़ी देर में प्रिया ने भी अनमने ढंग से से दो कप चाय और कुछ बिस्किट उन दोनों बुजुर्गों के सामने टेबल पर रख दिये। सान्या सोकर उठी तो मास्टर जी और उनकी पत्नी को देखकर खूब खुशी से चहकते हुए "दादू दादी" बोलकर उनसे लिपट गयी। दरअसल छः महीने पहले जब शांतनु एक सप्ताह के लिए गाँव गया था तो सान्या ज्यादातर मास्टर जी के घर पर ही खेला करती थी। मास्टर जी निःसंतान थे और उनका छोटा सा घर शांतनु के गाँव वाले घर से बिल्कुल सटा था। बूढ़े मास्टर साहब सान्या के साथ खूब खेलते और मास्टरनी साहिबा बूढ़ी होने के बाबजूद दिन भर कुछ न कुछ बनाकर सान्या को खिलातीं रहती थीं। बच्चे के साथ वो दोनों भी बच्चे बन गए थे। गाँव से दिल्ली वापस लौटते वक्त सान्या खूब रोई। उसके अपने दादा-दादी तो थे नहीं; मास्टर जी और मास्टरनी जी में ही सान्या दादा-दादी देखती थी। जाते वक्त शांतनु ने घर का पता देते हुए कहा कि "कभी भी दिल्ली आएं तो हमारे घर जरूर आएं, बहुत अच्छा लगेगा।" दोनों बुजुर्गों की आँखों से सान्या को जाते देख आँसू गिर रहे थे और जी भर कर आशीर्वाद दे रहे थे।

कुल्ला करने जैसे ही मास्टर जी बेसिन के पास आये, प्रिया की आवाज़ सुनाई दी "क्या जरूरत थी तुम्हें इनको अपना पता देने की; दोपहर को मेरी सहेलियाँ आती हैं, उन्हें क्या जबाब दूँगी और सान्या को अंदर ले आओ कहीं बीमार बुढ़िया मास्टरनी की गोद मे बीमार न पड़ जाए"। शांतनु में कहा "मुझे क्या पता था कि सच में आ जाएँगे; रुको, किसी तरह इन्हें यहाँ से टरकाता हूँ"।
दोनों बुजर्ग यात्रा से थके-हारे और भूखे आये थे। सोचा था बड़े इत्मीनान से शांतनु के घर चलकर सबके साथ आराम से नाश्ता करेंगे। इस कारण उन्होंने कुछ खाया-पिया भी न था। आखिर बचपन में कितनी बार शांतनु ने भी तो हमारे घर खाना खाया है। वे जैसे अधिकार से उसे उसकी पसंद के घी के आलू-पराठे खिलाते थे, इतना बड़ा आदमी बन जाने के बाद भी शांतनु उन्हें वैसे ही पराठे खिलायेगा, ऐसा उन दोनों ने सोचा था।

"सान्या!" मम्मी की तेज आवाज सुनकर डरते हुए सान्या अंदर कमरे में चली गयी। थोड़ी देर बाद जैसे ही शांतनु हॉल में उनसे मिलने आया तो देखा चाय बिस्कुट वैसे ही पड़े हैं और वो दोनों जा चुके हैं।

पहली बार दिल्ली आए दोनों बुजुर्ग किसी तरह टैक्सी से AIIMS पहुँचे और भारी भीड़ के बीच थोड़ा सुस्ताने एक जगह जमीन पर बैठ गए। तभी उनके पास एक काला सा आदमी आया और उनके गाँव का नाम बताते हुए पूछा "आप मास्टर जी और मास्टरनी जी हैं ना। मुझे नहीं पहचाना; मैं कल्लू। आपने मुझे पढ़ाया है।"
मास्टर जी को याद आया। ये बटेसर हरिजन का लड़का कल्लू है। बटेसर नाली और मैला साफ करने का काम करता था। कल्लू को हरिजन होने के कारण स्कूल में आने पर गांववालो को ऐतराज था इसलिए मास्टर साहब शाम में एक घंटे कल्लू को चुपचाप उसके घर पढ़ा आया करते थे।

"मैं इस अस्पताल में चतुर्थवर्गीय कर्मचारी हूँ। साफ-सफाई से लेकर पोस्टमार्टम रूम की सारी जिम्मेवारी मेरी है।" फिर तुरंत उनका ब्रीफकेस सर पर उठाकर अपने एक रूम वाले छोटे से क्वार्टर में ले गया। रास्ते में अपने साथ काम करने वाले लोगों को खुशी-खुशी बता रहा था; मेरे रिश्तेदार आये हैं; मैं इन्हें घर पहुँचाकर अभी आता हूँ। घर पहुँचते ही पत्नी को सारी बात बताई। पत्नी ने भी खुशी-खुशी तुरंत दोनों के पैर छुए। फिर सब मिलकर एक साथ गर्मागर्म नाश्ता किए। फिर कल्लू की छोटी सी बेटी उन बुजुर्गों के साथ खेलने लगी। कल्लू बोला "आप लोग आराम करें। आज मैं जो कुछ भी हूँ, आपकी बदौलत ही हूँ। फिर कल्लू अस्पताल में नंबर लगा आया।

कल्लू की माँ नहीं थी बचपन से ही। मास्टरनी साहब का नंबर आते ही कल्लू हाथ जोड़कर डॉक्टर से बोला "जरा अच्छे से इनका इलाज़ करना डॉक्टर साहब; ये मेरी बूढ़ी माई है" सुनकर बूढ़ी माँ ने आशीर्वाद की झड़ियां लगाते हुए अपने काँपते हाथ कल्लू के सर पर रख दिए। वो बांझ औरत आज सचमुच माँ बन गयी थी। उसे आज बेटा मिल गया था और उस बिन माँ के कल्लू को भी माँ मिल गयी थी

Friday 29 September 2017

रिश्ते

कार से उतरकर भागते हुए हॉस्पिटल में पहुंचे नोजवान बिजनेसमैन ने पूछा :-
“डॉक्टर, अब कैसी हैं माँ?“
हाँफते हुए उसने पूछा।

अब ठीक हैं । माइनर सा स्ट्रोक था ।
ये बुजुर्ग लोग उन्हें सही समय पर लें आये, वरना कुछ बुरा भी हो सकता था ।
*डॉ ने पीछे बेंच पर बैठे दो बुजुर्गों की तरफ इशारा कर के जवाब दिया l*

“रिसेप्शन से फॉर्म इत्यादि की फॉर्र्मलिटी करनी है अब आपको।
डॉ ने जारी रखा।

थैंक यू डॉ. साहेब, वो सब काम मेरी सेक्रेटरी कर रही हैं l
अब वो रिलैक्स था।
फिर वो उन बुजुर्गों की तरफ मुड़ा......

थैंक्स अंकल, पर मैनें आप दोनों को नहीं पहचाना।
सही कह रहे हो बेटा,
तुम नहीं पहचानोगे क्योंकि *हम तुम्हारी माँ के वाट्सअप फ्रेंड हैं ।*
एक ने बोला l

क्या, वाट्सअप फ्रेंड ?
चिंता छोड़, उसे अब अचानक से अपनी माँ पर गुस्सा आया।
*60 + नॉम का  वाट्सप ग्रुप है हमारा।*
सिक्सटी प्लस नाम के इस ग्रुप में साठ साल व इससे ज्यादा उम्र के लोग जुड़े हुए हैं ।
इससे जुड़े हर मेम्बर को उसमे रोज एक मेसेज भेज कर अपनी उपस्थिति दर्ज करानी अनिवार्य होती है ।
साथ ही अपने आस पास के बुजुर्गों को इसमें जोड़ने की भी ज़िम्मेदारी दी जाती है।

महीने में एक दिन हम सब किसी पार्क में मिलने का भी प्रोग्राम बनाते हैं ।
जिस किसी दिन कोई भी मेम्बर मेसेज नहीं भेजता है तो उसी दिन उससे लिंक लोगों द्वारा, उसके घर पर उसके हाल चाल का पता लगाया जाता है ।

आज सुबह तुम्हारी माँ का मैसेज न आने पर हम 2 लोग उनके घर पहुंच गए......
वह गम्भीरता से सुन रहा था ।
*“पर माँ ने तो कभी नहीं बताया।“*
उसने धीरे से कहा।

माँ के पास अंतिम बार कब बैठे थे। उनसे उनकी जरूरत के बारे मे पूछा था।
क्या तुम्हें याद है ?
एक ने पूछा।

बुजुर्ग बोले.....
बेटा, तुम सबकी दी हुई सुख सुविधाओं के बीच, अब कोई और माँ या बाप अकेले घर मे कंकाल न बन जाएं......
बस यही सोच ये ग्रुप बनाया है हमने ।
वरना दीवारों से बात करने की तो हम सब की आदत पड़ चुकी है l

*उसके सर पर हाथ फेर कर दोनों बुझुर्ग अस्पताल से बाहर की ओर निकल पड़े ।*