प्रेरक लघु कथायें


1-
एक नन्हा बालक ईश्वर से मिलना चाहता था। वह जानता था कि उसकी यह यात्रा लंबी होगी।
इस कारण उसने अपने बैग में चिप्स के पैकेट और पानी की बोतलें रखीं और यात्रा पर निकल पड़ा।
वह अपने घर से कुछ ही दूर पहुंचा होगा कि उसकी नजर एक बुजुर्ग सज्जन पर पड़ी, जो पार्क में कबूतरों के एक झुंड को देख रहे थे।
वह बालक भी उनके पास जाकर बैठ गया। कुछ देर बाद उसने पानी की बोतल निकालने के लिए अपना बैग खोला।उसे लगा कि वह बुजुर्ग सज्जन भी भूखे हैं, लिहाजा उसने उन्हें कुछ चिप्स दिए। उन्होंने चिप्स लेते हुए बालक की तरफ मुस्कराकर देखा।बालक को बुजुर्ग की मुस्कराहट बेहद भली लगी। वह उसके दीदार एक बार फिर करना चाहता था, सो उसने उन्हें पानी की बोतल भी पेश की।
बुजुर्ग सज्जन ने पानी लेते हुए फिर मुस्कराकर उसकी तरफ देखा। बालक यह देखकर बेहद खुश हुआ। इसके बाद पूरी दोपहर वे साथ-साथ बैठे रहे।बालक उन्हें समय-समय पर पानी और चिप्स देता रहता। बदले में उसे उनकी भोली मुस्कराहट मिलती रही।अब तक शाम होने को आई थी। बालक को भी थकान लगने लगी थी। उसने सोचा कि अब घर चलना चाहिए।
वह उठा और घर की ओर चलने लगा। कुछ कदम चलने के बाद वह ठिठका और पलटकर दौड़ते हुए वृद्ध के पास आया।उसने वृद्ध को अपनी बांहों में भरा। बदले में वृद्ध शख्स ने होंठों पर और भी बड़ी मुस्कराहट लाते हुए उसका आभार प्रकट किया।कुछ देर बाद वह बालक अपने घर पर था। दरवाजा उसकी मां ने खोला और उसके होंठों पर खेलती मुस्कराहट देख पूछ बैठीं, 'आज तुमने ऐसा क्या किया, जो तुम इतने खुश हो.....?'
बालक ने जवाब दिया, 'आज मैंने ईश्वर के साथ लंच किया।' इसके पहले कि मां कुछ और पूछती वह फिर बोला, 'तुम्हें मालूम है मां....?
उनके जैसी मुस्कराहट मैंने आज तक नहीं देखी।' उधर, वह बुजुर्ग सज्जन भी वापस अपने घर पहुंचे, जहां दरवाजा उनके बेटे ने खोला।
बेटा अपने पिता के चेहरे पर शांति और संतुष्टि के भाव देख पूछ बैठा, 'आज आपने ऐसा क्या किया है, जो आप इतने खुश लग रहे हैं।'
इस पर उन्होंने जवाब दिया, 'मैंने पार्क में ईश्वर के साथ चिप्स खाए।' इससे पहले की बेटा कुछ और कहता, वह आगे बोले, 'तुम्हें मालूम है....?
मेरी अपेक्षा के अनुरूप ईश्वर कहीं छोटी उम्र के हैं।'
इस किस्से का निष्कर्ष यह निकलता है कि मुस्कराने में अपने पल्ले से कुछ भी खर्च नहीं होता है।
इसके उलट जिसकी तरफ मुस्कराकर देखा जाता है, वह इससे और समृद्ध ही महसूस करता है।
मुस्कराहट खरीदी नहीं जा सकती है, उधार नहीं मांगी जा सकती है और इसे चोरी नहीं किया जा सकता है।
इसका तब तक कोई मूल्य नहीं है, जब तक कि किसी को मुस्कराकर देखा नहीं जाए। इसके बावजूद कुछ लोग मुस्कराने में थकान का अनुभव करते हैं।
वे इसमें कंजूसी बरतते हैं। मुस्कराने के महत्व को समझते हुए मुस्कराएं। किसी को इससे ज्यादा और क्या चाहिए कि कोई उसे देखकर मुस्कराए।
किसी की तरफ मुस्कराकर देखने से हमारा कुछ घटता नहीं है, बल्कि संतुष्टि और प्रसन्नता ही अनुभव होती है..........................


-2-
एक बार की बात है, एक पागलखाने के सामने किसी व्यक्ति की कार पंचर हो गयी। कार को रुकते देखकर पागलखाने की दिवार से झांकते हुए एक पागल ने पूछा, 'ओ भाई साहब, क्या हुआ?' उस व्यक्ति ने जवाब दिया, 'कुछ नही'।( और मन ही बुदबुदाया " पगला कहीं का ").
उस व्यक्ति ने कार से उतर कर पहिया बदलने के लिये पंचर वाले पहिये के चारो बोल्ट निकाले ही थे कि भैंसो का झुंड आ गया। वह व्यक्ति उठ कर एक तरफ खडा हो गया। जब भैंसे चली गयी वह व्यक्ति वापिस टायर लगाने के लिये आ गया।
परंतु उसने देखा, चारो नट-बोल्ट गायब थे। वह परेशानी से इधर-उधर ढूढने लगा। वह पागल तब तक वही खडा था। उसने फिर पूछा, 'भाई साहब क्या हुआ'? व्यक्ति ने फिर वही जवाब दिया, 'कुछ नही'। अपना काम कर बे पगले ! फिर वह व्यक्ति बोल्ट ढूढने लगा।
थोडी देर बाद पागल ने फिर पूछा, 'अरे,बताइये ना, क्या हुआ, मैं आपकी कुछ मदद करूँ क्या'?
उस व्यक्ति ने सोचा, ये पागल ऐसे ही दिमाग खायेगा, वह गुस्से से बोला — 'तुम जाओ भाई,मेरी कार के चारो बोल्ट गुम हो गये है, परेशान मत करो'।
पागल बोला, 'अरे, दिमाग नही है क्या ?
पागलो की तरह परेशान क्यो हो रहे हो, बाकी के तीन पहियो से एक-एक बोल्ट निकाल कर इस पहिये मे भी तीन बोल्ट लगा लो। आगे जाकर दुकान से चार बोल्ट खरीद कर चारो मे एक-एक लगा देना।
उस व्यक्ति ने (ताज्जुब से ) उस पागल से कहा की तुम्हें पागल खाने में क्यों रखा है तुम तो काफी अक्लमंद लगते हो
तब पागल बोला भाई साहब , मैं, पागल जरूर हूँ पर आपकी तरह मूर्ख नही...

-3-
संगठन में शक्ति होती है | एक बार हाथ की पाँचों उंगलियों में आपस में झगड़ा हो गया| वे पाँचों खुद को एक दूसरे से बड़ा सिद्ध करने की कोशिश में लगे थे | अंगूठा बोला की मैं सबसे बड़ा हूँ, उसके पास वाली उंगली बोली मैं सबसे बड़ी हूँ इसी तरह सारे खुद को बड़ा सिद्ध करने में लगे थे जब निर्णय नहीं हो पाया तो वे सब अदालत में गये |

न्यायाधीश ने सारा माजरा सुना और उन पाँचों से बोला की आप लोग सिद्ध करो की कैसे तुम सबसे बड़े हो? अंगूठा बोला मैं सबसे ज़्यादा पढ़ा लिखा हूँ क्यूंकी लोग मुझे हस्ताक्षर के स्थान पर प्रयोग करते हैं| पास वाली उंगली बोली की लोग मुझे किसी इंसान की पहचान के तौर पर इस्तेमाल करते हैं| उसके पास वाली उंगली ने कहा की आप लोगों ने मुझे नापा नहीं अन्यथा मैं ही सबसे बड़ी हूँ | उसके पास वाली उंगली बोली मैं सबसे ज़्यादा अमीर हूँ क्यूंकी लोग हीरे और जवाहरात और अंगूठी मुझी में पहनते हैं|

इसी तरह सभी ने अपनी अलग अलग प्रसन्शा की | न्यायाधीश ने अब एक रसगुल्ला मंगाया और अंगूठे से कहा की इसे उठाओ, अंगूठे ने भरपूर ज़ोर लगाया लेकिन रसगुल्ले
को नहीं उठा सका | इसके बाद सारी उंगलियों ने एक एक करके कोशिश की लेकिन सभी विफल रहे| अंत में न्यायाधीश ने सबको मिलकर रसगुल्ला उठाने का आदेश दिया तो झट से सबने मिलकर रसगुल्ला उठा दिया | फ़ैसला हो चुका था, न्यायाधीश ने फ़ैसला सुनाया कि तुम सभी एक दूसरे के बिना अधूरे हो और अकेले रहकर तुम्हारी शक्ति का कोई अस्तित्व नहीं है, जबकि संगठित रहकर तुम कठिन से कठिन काम
आसानी से कर सकते हो| तो मित्रों, संगठन में बहुत शक्ति होती है यही इस कहानी की शिक्षा है, एक अकेला चना कभी भाड़ नहीं फोड़ सकता..

-4-
एक बर्फ बनाने की विशाल फैक्ट्री थी! हजारों टन बर्फ हमेशा बनता था ! सैकड़ों मजदूर व अन्य कर्मचारी एवं अधिकारी वहां कार्य करते थे ! उन्ही में से था एक कर्मचारी अखिलेश ! अखिलेश उस फैक्ट्री में पिछले बीस वर्षों से कार्य कर रहा था ! उसके मृदु व्यहार,ईमानदारी,एवं काम के प्रति समर्पित भावना के कारण वो उन्नति करते करते उच्च सुपरवाइजर के पद पर पहुँच गया था ! उसको फैक्ट्री के हर
काम की जानकारी थी ! जब भी कोई मुश्किल घडी होती सब, यहाँ तक की फैक्ट्री के मालिक भी उसी को याद करते थे और वह उस मुश्किल पलों को चुटकियों में हल कर देता था !

इसी लिए फैक्ट्री में सभी लोग ,कर्मचारी ,व् अन्य अधिकारी उसका बहुत मान करते थे ! इन सब के अलावा उसकी एक छोटी सी अच्छी आदत और थी वह जब भी फैक्ट्री में प्रवेश करता फैक्ट्री के गेट पर तैनात सुरक्षा गार्ड से ले कर सभी अधिनिस्त कर्मचारियों से मुस्कुरा कर बात करता उनकी कुशलक्षेम पूछता और फिर अपने कक्ष में जा कर अपने काम में लग जाता !और यही सब वह जब फैक्ट्री का समय समाप्त होने पर घर पर जाते समय करता था !

एक दिन फैक्ट्री के मालिक ने अखिलेश को बुला कर कहा " अखिलेश एक मल्टी नेशनल कम्पनी जो की आइसक्रीम बनती है ने हमें एक बहुत बड़ा आर्डर दिया है
और हमें इस आर्डर को हर हाल में नीयत तिथि तक पूरा करना है ताकि कंपनी की साख और लाभ दोनों में बढ़ोतरी हो तथा और नई मल्टी नेशनल कंपनियां हमारी कंपनी से जुड़ सके ! इस काम को पूरा करने के लिए तुम कुछ भी कर सकते हो चाहे कर्मचारियों को ओवरटाइम दो बोनस दो या और नई भर्ती करो पर आर्डर समय पर पूरा कर पार्टी को भिजवाओ "अखिलेश ने कहा ठीक है में इस आर्डर को समय पर
पूरा कर दूंगा ! मालिक ने मुस्कुरा कर अखिलेश से कहा "मुझे तुमसे इसी उत्तर
की आशा थी" अखिलेश ने सभी मजदूरों को एकत्रित किया और आर्डर मिलाने की बात कही और कहा "मित्रो हमें हर हाल में ये आर्डर पूरा करना है इसके लिए सभी कर्मचारियों को ओवरटाइम, बोनस सभी कुछ मिलेगा साथ ही ये कंपनी की साख का भी सवाल है "! एक तो कर्मचारियों का अखिलेश के प्रति सम्मान की भावना तथा दूसरी और ओवरटाइम व बोनस मिलाने की ख़ुशी, सभी कर्मचरियों ने हां कर दी !

फैक्ट्री में दिन रात युद्धस्तर पर काम चालू हो गया !अखिलेश स्वयं भी सभी कर्मचारियों का होसला बढ़ाता हुआ उनके कंधे से कन्धा मिला कर काम कर
रहा था ! उन सभी की मेहनत रंग लाइ और समस्त कार्य नीयत तिथि से पूर्व
ही समाप्त हो गया ! साडी की साडी बर्फ शीतलीकरण (कोल्ड स्टोरेज) कक्ष जो एक
विशाल अत्याधुनिक तकनीक से बना हुआ तथा कम्प्यूटराइज्ड था , में पेक कर के जमा कर दी गई ! सभी कर्मचारी काम से थक गए थे इसलिए उस रोज काम बंद कर सभी कर्मचारियों की छुट्टी कर दी गई सभी कर्मचारी अपने अपने घर की तरफ
प्रस्तान करने लगे ! अखिलेश ने सभी कार्य की जांच की और वह भी घर जाने
की तैयारी करने लगा जाते जाते उसने सोचा चलो एक बार शीतलीकरण कक्ष
की भी जाँच कर ली जाये की सारी की सारी बर्फ पैक्ड और सही है की नहीं ,यह सोच वो शीतलीकरण कक्ष को खोल कर उसमे प्रवेश कर गया ! उसने घूम
फिर कर सब चेक किया और सभी कुछ सही पा कर वह जाने को वापस मुडा ! पर
किसी तकनीकी खराबी के कारण शीतलीकरण कक्ष का दरवाजा स्वतः ही बंद
हो गया ! दरवाजा ऑटोमेटिक था तथा बाहर से ही खुलता था इस लिए उसने दरवाजे को जोर जोर से थपथपाया पर सभी कर्मचारी जा चुके थे उसकी थपथपाहट
का कोई असर नहीं हुआ उसने दरवाजा खोलने की बहुत कोशिश की पर सब कुछ बेकार रहा ! दरवाजा केवल बाहर से ही खुल सकता था !

अखिलेश घबरा गया उसने और जोर से दरवाजे को पीटा जोर से चिल्लाया पर कोई
प्रतिक्रिया नहीं हुई ! अखिलेश सोचने लगा की कुछ ही घंटों में शीतलीकरण कक्ष
का तापक्रम शून्य डिग्री से भी कम हो जायेगा ऐसी दशा में मेरा खून का जमना निश्चित है ! उसे अपनी मोत नजदीक दिखाई देने लगी !उसने एक बार पुनः दरवाजा खोलने की कोशिश की पर सब कुछ व्यर्थ रहा !कक्ष का ताप धीरे धीरे कम
होता जा रहा था ! अखिलेश का बदन अकड़ने लगा ! वो जोर जोर से अपने आप को गर्म रखने के लिए भाग दौड़ करने लगा ! पर कब तक आखिर थक कर एक स्थान पर बैठ गया ! ताप शुन्य डिग्री की तरफ बढ़ रहा था !

अखिलेश की चेतना शुन्य होने लगी ! उसने अपने आप को जाग्रत रखने की बहुत कोशिश की पर सब निष्फल रहा ! ताप के और कम होने पर उसका खून जमने के कगार पर आ गया ! और अखिलेश भावना शुन्य होने लगा ! मोत निश्चित जान वह अचेत हो कर वही ज़मीन पर गिर पड़ा ! कुछ ही समय पश्चात दरवाजा धीरे से खुला ! एक साया अंदर आया उसने अचेत अखिलेश को उठाया और शीतलीकरण कक्ष से बाहर ला कर लिटाया उसे गर्म कम्बल से ढंका और पास ही पड़ा फैक्ट्री के कबाड़ को एकत्रित कर उसमे आग जलाई ताकि अखिलेश को गर्मी मिल सके और उसका रक्तसंचार सुचारू हो सके ! गर्मी पाकर अखिलेश के शरीर में कुछ शक्ति आई उसका रक्तसंचार सही होने लगा ! आधे घंटे के बाद अखिलेश के शरीर में हरकत होनेलगी उसका रक्तसंचार सही हुआ और उसने अपनी आँखे खोली !उसने सामने गेट पर पहरा देने वाले सुरक्षा गार्ड शेखर को पाया !

उसने शेखर से पुछा मुझे बाहर किसने निकला और तुम तो में गेट पर रहते हो तुम्हारा तो फैक्ट्री के अंदर कोई कार्य भी नहीं फिर तुम यहाँ कैसे आये ? शेखर ने
कहा "सर में एक मामूली सा सुरक्षा गार्ड हूँ ! फैक्ट्री में प्रवेश करने वाले प्रत्येक पर
निगाहे रखना तथा सभी कर्नचारियों व अधिकारियो को सेल्यूट करना ये ही मेरी ड्यूटी है ! मेरे अभिवादन पर अधिकतर कोई ध्यान नहीं देता कभी कभी कोई मुस्कुरा कर अपनो गर्दन हिला देता है !पर सर एक आप ही ऐसे इंसान है जो प्रतिदिन मेरे अभिवादन पर मुस्कुरा कर अभिवादन का उत्तर देते थे साथ ही मेरी कुशलक्षेम भी पूछते थे ! आज सुबह भी मेने आपको अभिवादन किया आपने मुस्कुरा कर मेरे अभिवादन का उत्तर दिया और मेरे हालचाल पूछे! मुझे मालूम
था की इन दिनों फैक्ट्री में बहुत काम चल रहा है जो आज समाप्त हो जायेगा ! और काम समाप्त भी हो गया सभी लोग अपने अपने घर जाने लगे ! जब सब लोग दरवाजे से निकल गए तो मुझे आप की याद आई की रोज आप मेरे से बात कर के घर जाते थे पर आज दिखी नहीं दिए ! मेने सोचा शायद अंदर काम में लगे होंगे ! पर सब के जाने के बाद भी बहुत देर तक आप बहार आते दिखी नहीं दिए तो मेरे दिल में कुछ शंकाएं उत्पन्न होने लगी ! क्यों की फैक्ट्री के जाने आने का यही एकमात्र रास्ता है इसी लिए में आपको ढूंढते हुए फैक्ट्री के अंदर आ गया !
मेने आपका कक्ष देखा मीटिंग हाल देखा बॉस का कक्ष देखा पर आप कही दिखाई नहीं दिए !मेरा मन शंका से भर गया की आप कहाँ गए ?कोई निकलने का दूसर रास्ता भी नहीं है !में वापस जाने लगा तो सोचा चलो शीतलीकरण कक्ष
भी देख लू ! पर वो बंद था !में वापस जाने को मुडा पर मेरे दिल ने कहा की एक बार इस शीतलीकरण कक्ष को खोल कर भी देखूं ! में आपात्कालीन चाबियाँ जो मेरे पास
रहती है ,से कक्ष खोला तो आपको यहाँ बेहोश पाया !

अखिलेश एक टक शेखर के चहरे की और देखे जा रहा था उसने सपने में भी नहीं सोचा था की उसकी एक छोटी सी अच्छी आदत का प्रतिफल उसे इतना बड़ा मिलेगा !उसकी आँखों में आंसू भर आये उसने उठ कर शेखर को गले लगा लिया !

अगर दोस्तों को इस कहानी में कुछ सार नजर आये तो कोशिश करे की इस ग्रुप के
सभी सदस्य इस कहानी को पढ़ सके और एक अच्छी आदत चाहे वह छोटी सी ही क्यों ना हो अपने जीवन में उतार सकें

-5-
एक दिन गुरु गोबिंद सिंह जी गंगा में नाव की सैर कर रहे थे| सैर करते हुए आपके हाथ से सोने का कड़ा दरिया में गिर गया| आप जब घर पहुँचे तो माता जी ने आपसे पूछा बेटा! आपका कड़ा कहाँ है? तब आपने माता जी को उत्तर दिया, माता जी! वह दरिया में गिरकर खो गया है|

माता जी फिर से पूछने लगी कि बताओ कहाँ गिरा है? गुरु जी माता जी को लेकर गंगा नदी के किनारे आ गए| उन्होंने अपने दूसरे हाथ का कड़ा भी उतारकर पानी में फैंक कर कहा कि यहाँ गिरा था| आप की यह लापरवाही देख कर माता जी को गुस्सा आया| वह उन्हें घर ले आई|

घर आकर गुरु जी ने माता जी को बताया कि माता जी! इन हाथों से ही अत्याचारियों का नाश करके गरीबों की रक्षा करनी है| इनके साथ ही अमृत तैयार करके साहसहीनों में शक्ति भरकर खालसा साजना है| यदि इन हाथों को माया के कड़ो ने जकड़ लिया, तो फिर यह काम जो अकाल पुरख ने करने की हमें आज्ञा की है वह किस तरह पूरे होंगे? जुल्म को दूर करने के लिए इन हाथों को लोहे जैसे शक्तिशाली मजबूत करने के लिए लोहे का कड़ा पहनना उचित है| अतः खालसा पंथ सजाकर आपने सिखों को लोहे का कड़ा ही पहनने का हुक्म किया, जो जगत प्रसिद्ध है|

गंगा नदी के जिस घाट पर आप जी खेलते व स्नान करते थे, उसका नाम गोबिंद घाट प्रसिद्ध है|

-6-
एक अमीर व्यक्ति था। उसने समुद्र में तफरी के लिए एक नाव बनवाई। छुट्टी के दिन वह नाव लेकर समुद्र की सैर के लिए निकल पडा। अभी मध्य समुद्र तक पहुँचा ही था कि अचानक जोरदार तुफान आया। उसकी नाव थपेडों से क्षतिग्रस्त हो, डूबने लगी, जीवन रक्षा के लिए वह लाईफ जेकेट पहन समुद्र में कुद पडा।

जब तूफान थमा तो उसने अपने आपको एक द्वीप के निकट पाया। वह तैरता हुआ उस टापू पर पहुँच गया। वह एक निर्जन टापू था, चारो और समुद्र के अलावा कुछ भी नजर नहीं आ रहा था। उसने सोचा कि मैने अपनी पूरी जिदंगी किसी का, कभी भी बुरा नहीं किया, फिर मेरे ही साथ ऐसा क्युं हुआ..?

एक क्षण सोचता, यदि ईश्वर है तो उसने मुझे कैसी विपदा में डाल दिया, दूसरे ही क्षण विचार करता कि तूफान में डूबने से तो बच ही गया हूँ। वह वहाँ पर उगे झाड-पत्ते-मूल आदि खाकर समय बिताने लगा। भयावह वीरान अटवी में एक मिनट भी, भारी पहाड सम प्रतीत हो रही थी। उसके धीरज का बाँध टूटने लगा। ज्यों ज्यों समय व्यतीत होता, उसकी रही सही आस्था भी बिखरने लगी। उसका संदेह पक्का होने लगा कि इस दुनिया में ईश्वर जैसा कुछ है ही नहीं!

निराश हो वह सोचने लगा कि अब तो पूरी जिंदगी इसी तरह ही, इस बियावान टापु पर बितानी होगी। यहाँ आश्रय के लिए क्यों न एक झोपडी बना लुं..? उसने सूखी डालियों टहनियों और पत्तो से एक छोटी सी झोपडी बनाई। झोपडी को निहारते हुए प्रसन्न हुआ कि अब खुले में नहीं सोना पडेगा, निश्चिंत होकर झोपडी में चैन से सो सकुंगा।

अभी रात हुई ही थी कि अचानक मौसम बदला, अम्बर गरजने लगा, बिजलियाँ कड‌कने लगी। सहसा एक बिजली झोपडी पर आ गिरी और आग से झोपडी धधकनें लगी। अपने श्रम से बने, अंतिम आसरे को नष्ट होता देखकर वह आदमी पूरी तरह टूट गया। वह आसमान की तरफ देखकर ईश्वर को कोसने लगा, "तूं भगवान नही , राक्षस है। रहमान कहलाता है किन्तु तेरे दिल में रहम जैसा कुछ भी नहीं। तूं समदृष्टि नहीं, क्रूर है।"

सर पर हाथ धरे हताश होकर संताप कर रहा था कि अचानक एक नाव टापू किनारे आ लगी। नाव से उतरकर दो व्यक्ति बाहर आये और कहने लगे, "हम तुम्हे बचाने आये है, यहां जलती हुई आग देखी तो हमें लगा कोई इस निर्जन टापु पर मुसीबत में है और मदद के लिए संकेत दे रहा है। यदि तुम आग न लगाते तो हमे पता नही चलता कि टापु पर कोई मुसीबत में है!

ओह! वह मेरी झोपडी थी। उस व्यक्ति की आँखो से अश्रु धार बहने लगी। हे ईश्वर! यदि झोपडी न जलती तो यह सहायता मुझे न मिलती। वह कृतज्ञता से द्रवित हो उठा। मैं सदैव स्वार्थपूर्ती की अवधारणा में ही तेरा अस्तित्व मानता रहा। अब पता चला तूं अकिंचन,निर्विकार, निस्पृह होकर, निष्काम कर्तव्य करता है। कौन तुझे क्या कहता है या क्या समझता है, तुझे कोई मतलब नहीं। मेरा संशय भी मात्र मेरा स्वार्थ था। मैने सदैव यही माना कि मात्र मुझ पर कृपा दिखाए तभी मानुं कि ईश्वर है, पर तुझे कहाँ पडी थी अपने आप को मनवाने की। स्वयं के अस्तित्व को प्रमाणीत करना तेरा उद्देश्य भी नहीं।


-7-
एक आदमी मर गया. जब उसे महसूस हुआ तो उसने देखा कि भगवान उसके पास आ रहे हैं और उनके हाथ में एक सूट केस है.
भगवान ने कहा --पुत्र चलो अब समय हो गया.
आश्चर्यचकित होकर आदमी ने जबाव दिया -- अभी इतनी जल्दी? अभी तो मुझे बहुत काम करने हैं. मैं क्षमा चाहता हूँ किन्तु अभी चलने का समय नहीं है. आपके इस सूट केस में क्या है?
भगवान ने कहा -- तुम्हारा सामान.
मेरा सामान? आपका मतलब है कि मेरी वस्तुएं, मेरे कपडे, मेरा धन?
भगवान ने प्रत्युत्तर में कहा -- ये वस्तुएं तुम्हारी नहीं हैं. ये तो पृथ्वी से सम्बंधित हैं.
आदमी ने पूछा -- मेरी यादें?
भगवान ने जबाव दिया -- वे तो कभी भी तुम्हारी नहीं थीं. वे तो समय की थीं.
फिर तो ये मेरी बुद्धिमत्ता होंगी?
भगवान ने फिर कहा -- वह तो तुम्हारी कभी भी नहीं थीं. वे तो परिस्थिति जन्य थीं.
तो ये मेरा परिवार और मित्र हैं?
भगवान ने जबाव दिया -- क्षमा करो वे तो कभी भी तुम्हारे नहीं थे. वे तो राह में मिलने वाले पथिक थे.
फिर तो निश्चित ही यह मेरा शरीर होगा?
भगवान ने मुस्कुरा कर कहा -- वह तो कभी भी तुम्हारा नहीं हो सकता क्योंकि वह तो राख है.
तो क्या यह मेरी आत्मा है?
नहीं वह तो मेरी है --- भगवान ने कहा.
भयभीत होकर आदमी ने भगवान के हाथ से सूट केस ले लिया और उसे खोल दिया यह देखने के लिए कि सूट केस में क्या है. वह सूट केस खाली था.
आदमी की आँखों में आंसू आ गए और उसने कहा -- मेरे पास कभी भी कुछ नहीं था.
भगवान ने जबाव दिया -- यही सत्य है. प्रत्येक क्षण जो तुमने जिया, वही तुम्हारा था. जिंदगी क्षणिक है और वे ही क्षण तुम्हारे हैं.
इस कारण जो भी समय आपके पास है, उसे भरपूर जियें. आज में जियें. अपनी जिंदगी जिए.
खुश होना कभी न भूलें, यही एक बात महत्त्व रखती है.
भौतिक वस्तुएं और जिस भी चीज के लिए आप यहाँ लड़ते हैं, मेहनत करते हैं...आप यहाँ से कुछ भी नहीं ले जा सकते हैं.

-8-
बहुत समय पहले की बात है, किसी गाँव में एक किसान रहता था. वह रोज़ भोर में उठकर दूर झरनों से स्वच्छ पानी लेने जाया करता था. इस काम के लिए वह अपने साथ दो बड़े घड़े ले जाता था, जिन्हें वो डंडे में बाँध कर अपने कंधे पर दोनों ओर लटका लेता था.

उनमे से एक घड़ा कहीं से फूटा हुआ था, और दूसरा एक दम सही था. इस वजह से रोज़ घर पहुँचते -पहुचते किसान के पास डेढ़ घड़ा पानी ही बच पाता था. ऐसा दो सालों से चल रहा था. सही घड़े को इस बात का घमंड था कि वो पूरा का पूरा पानी घर पहुंचता है और उसके अन्दर कोई कमी नहीं है, वहीँ दूसरी तरफ फूटा घड़ा इस बात से शर्मिंदा रहता था कि वो आधा पानी ही घर तक पंहुचा पाता है और किसान की मेहनत बेकार चली जाती है.

फूटा घड़ा ये सब सोच कर बहुत परेशान रहने लगा और एक दिन उससे रहा नहीं गया, उसने किसान से कहा, “ मैं खुद पर शर्मिंदा हूँ और आपसे क्षमा मांगना चाहता हूँ ?”
“क्यों ? “ , किसान ने पूछा , “ तुम किस बात सेशर्मिंदा हो ?”
“शायद आप नहीं जानते पर मैं एक जगह से फूटा हुआ हूँ , और पिछले दो सालों से मुझे जितना पानी घर पहुँचाना चाहिए था बस उसका आधा ही पहुंचा पाया हूँ, मेरे अन्दर ये बहुत बड़ी कमी है, और इस वजह से आपकी मेहनत बर्वाद होती रही है .”, फूटे घड़े ने दुखी होते हुए कहा.

किसान को घड़े की बात सुनकर थोडा दुःख हुआ और वह बोला , “ कोई बात नहीं, मैं चाहता हूँ कि आज लौटते वक़्त तुम रास्ते में पड़ने वाले सुन्दर फूलों को देखो.”
घड़े ने वैसा ही किया, वह रास्ते भर सुन्दर फूलों को देखता आया, ऐसा करने से
उसकी उदासी कुछ दूर हुई पर घर पहुँचते – पहुँचते फिर उसके अन्दर से आधा पानी गिर चुका था, वो मायूस हो गया और किसान से क्षमा मांगने लगा .

किसान बोला ,” शायद तुमने ध्यान नहीं दिया पूरे रास्ते में जितने भी फूल थे वो बस
तुम्हारी तरफ ही थे, सही घड़े की तरफ एक भी फूल नहीं था. ऐसा इसलिए क्योंकि मैं हमेशा से तुम्हारे अन्दर की कमी को जानता था, और मैंने उसका लाभ उठाया . मैंने तुम्हारे तरफ वाले रास्ते पर रंग -बिरंगे फूलों के बीज बो दिए था, तुम रोज़ थोडा-थोडा कर के उन्हें सींचते रहे और पूरे रास्ते को इतना खूबसूरत बना दिया. आज तुम्हारी वजह से
ही मैं इन फूलों को भगवान को अर्पित कर पाता हूँ और अपना घर सुन्दर बना पाता हूँ .
तुम्ही सोचो अगर तुम जैसे हो वैसे नहीं होते तो भला क्या मैं ये सब कुछ कर पाता ?”

दोस्तों हम सभी के अन्दर कोई ना कोई कमी होती है, पर यही कमियां हमें अनोखा बनाती हैं. उस किसान की तरह हमें भी हर किसी को वो जैसा है वैसे ही स्वीकारना चाहिए
और उसकी अच्छाई की तरफ ध्यान देना चाहिए, और जब हम ऐसा करेंगे तब “फूटा घड़ा” भी“अच्छे घड़े” से मूल्यवान हो जायेगा.

-9-
एक राजमहल के द्वार पर एक वृद्ध भिखारी आया। द्वारपाल से उसने कहा, ‘भीतर जाकर राजा से कहो कि तुम्हारा भाई मिलने आया है।’ द्वारपाल ने समझा कि शायद कोई दूर के रिश्ते में राजा का भाई हो। सूचना मिलने पर राजा ने
भिखारी को भीतर बुलाकर अपने पास बैठा लिया। उसने राजा से पूछा, ‘कहिए बड़े
भाई! आपके क्या हालचाल हैं?’ राजा ने मुस्कराकर कहा, ‘मैं तो आनंद में हूं। आप कैसे हैं?’

भिखारी बोला, ‘मैं जरा संकट में हूं। जिस महल में रहता हूं, वह पुराना और जर्जर
हो गया है। कभी भी टूटकर गिर सकता है। मेरे बत्तीस नौकर थे, वे भी एक एक कर चले गए। पांचों रानियां भी वृद्ध हो गईं। यह सुनकर राजा ने भिखारी को सौ रुपए देने का आदेश दिया। भिखारी ने सौ रुपए कम बताए, तो राजा ने कहा, ‘इस बार राज्य में सूखा पड़ा है।’

तब भिखारी बोला, ‘मेरे साथ सात समंदर पार चलिए। वहां सोने की खदानें हैं। मेरे पैर पड़ते ही समुद्र सूख जाएगा। मेरे पैरों की शक्ति तो आप देख ही चुके हैं।’ अब राजा ने भिखारी को एक हजार रुपए देने का आदेश दिया। भिखारी के जाने के बाद राजा बोला, ‘भिखारी बुद्धिमान था। भाग्य के दो पहलू होते हैं राजा व रंक। इस नाते उसने मुझे भाई कहा। जर्जर महल से आशय उसके वृद्ध शरीर से था, बत्तीस नौकर दांत और पांच रानियां पंचेंद्रीय हैं। समुद्र के बहाने उसने मुझे उलाहना दिया कि राजमहल में उसके पैर रखते ही मेरा खजाना सूख गया,इसलिए मैं उसे सौ रुपए दे रहा हूं।

उसकी बुद्धिमानी देखकर मैंने उसे हजार रुपए दिए और कल मैं उसे अपना सलाहकार नियुक्त करूंगा।’ कई बार अति सामान्य लगने वाले लोग भीतर से बहुत गहरे होते हैं, इसलिए व्यक्ति की परख उसके बाह्य रहन-सहन से नहीं बल्कि आचरण से करनी चाहिए।

-10-
एक बौद्ध भिक्षुक भोजन बनाने के लिए जंगल से लकड़ियाँ चुन रहा था कि तभी उसने कुछ अनोखा देखा, “कितना अजीब है ये !”, उसने बिना पैरों की लोमड़ी को देखते हुए मन ही मन सोचा .
“ आखिर इस हालत में ये जिंदा कैसे है ?” उसे आशचर्य हुआ, “ और ऊपर से ये बिलकुल स्वस्थ है ” वह अपने ख़यालों में खोया हुआ था की अचानक चारो तरफ अफरा –तफरी मचने लगी ; जंगल का रजा शेर उस तरफ आ रहा था. भिक्षुक भी तेजी दिखाते हुए एक ऊँचे पेड़ पर चढ़ गया , और वहीँ से सब कुछ देखने लगा .

शेर ने एक हिरन का शिकार किया था और उसे अपने जबड़े में दबा कर लोमड़ी की तरफ बढ़ रहा था , पर उसने लोमड़ी पर हमला नहीं किया बल्कि उसे भी खाने के लिए मांस के कुछ टुकड़े डाल दिए .

“ ये तो घोर आश्चर्य है , शेर लोमड़ी को मारने की बजाये उसे भोजन दे रहा है .” , भिक्षुक बुदबुदाया,उसे अपनी आँखों पर भरोसा नहीं हो रहा था इसलिए वह अगले दिन फिर वहीँ आया और छिप कर शेर का इंतज़ार करने लगा . आज भी वैसा ही हुआ , शेर ने अपने शिकार का कुछ हिस्सा लोमड़ी के सामने डाल दिया .

“यह भगवान् के होने का प्रमाण है !” भिक्षुक ने अपने आप से कहा . “ वह जिसे पैदा करता है उसकी रोटी का भी इंतजाम कर देता है , आज से इस लोमड़ी की तरह मैं
भी ऊपर वाले की दया पर जीऊंगा , इश्वर मेरे भी भोजन की व्यवस्था करेगा .” और ऐसा सोचते हुए वह एक वीरान जगह पर जाकर एक पेड़ के नीचे बैठ गया .

पहला दिन बीता , पर कोई वहां नहीं आया , दूसरे दिन भी कुछ लोग उधर से गुजर गए पर भिक्षुक की तरफ किसी ने ध्यान नहीं दिया . इधर बिना कुछ खाए -पीये वह कमजोर होता जा रहा था . इसी तरह कुछ और दिन बीत गए , अब तो उसकी रही सही ताकत
भी खत्म हो गयी …वह चलने -फिरने के लायक भी नहीं रहा .

उसकी हालत बिलकुल मृत व्यक्ति की तरह हो चुकी थी की तभी एक महात्मा उधर से गुजरे और भिक्षुक के पास पहुंचे . उसने अपनी सारी कहानी महात्मा जी को सुनाई
और बोला , “ अब आप ही बताइए कि भगवान् इतना निर्दयी कैसे हो सकते हैं , क्या किसी व्यक्ति को इस हालत में पहुंचाना पाप नहीं है ?”

“ बिल्कुल है ,”, महात्मा जी ने कहा , “लेकिन तुम इतना मूर्ख कैसे हो सकते हो ? तुमने ये
क्यों नहीं समझे की भगवान् तुम्हे उसे शेर की तरह बनते देखना चाहते थे , लोमड़ी की तरह नहीं !!!”

दोस्तों , हमारे जीवन में भी ऐसा कई बार होता है कि हमें चीजें जिस तरह समझनी चाहिए उसके विपरीत समझ लेते हैं. ईश्वर ने हम सभी के अन्दर कुछ न कुछ ऐसी शक्तियां दी हैं जो हमें महान बना सकती हैं , ज़रुरत हैं कि हम उन्हें पहचाने , उस भिक्षुक का सौभाग्य
था की उसे उसकी गलती का अहसास कराने के लिए महात्मा जी मिल गए पर हमें खुद भी चौकन्ना रहना चाहिए की कहीं हम शेर की जगह लोमड़ी तो नहीं बन रहे हैं.

-11-
एक राजा था। राजा के पास सभी सुख-सुविधाएं और असंख्य सेवक-सेविकाएं हर समय
उनकी सेवा उपलब्ध रहते थे। उन्हें किसी चीज की कमी नहीं थी।
फिर भी राजा उसके जीवन के सुखी नहीं था। क्योंकि वह अपने स्वास्थ्य को लेकर काफी परेशान रहता था। वे सदा बीमारियों से घिरे रहते थे।
राजा का उपचार सभी बड़े-बड़े वैद्यों द्वारा किया गया परंतु राजा को स्वस्थ नहीं हो सके। समय के साथ राजा की बीमारी बढ़ती जा रही थी।
अपने प्रिय राजा की बढ़ती बीमारी से राज दरबार चिंतित हो गया।
राजा की बीमारी दूर करने के लिए दरबारियों द्वारा नगर में ऐलान करवा दिया गया कि जो भी राजा स्वास्थ्य ठीक करेगा उसे असंख्य स्वर्ण मुहरे दी जाएगी।

यह सुनकर एक वृद्ध राजा का इलाज करने राजा के महल में गया।
वृद्ध ने राजा के पास आकर कहा- "महाराज, आप आज्ञा दे तो आपकी बीमारी का इलाज
मैं कर सकता हूं।" राजा की आज्ञा पाकर वह बोला- "आप किसी पूर्ण सुखी मनुष्य के
वस्त्र पहनिए, आप अवश्य स्वस्थ और सुखी हो जाएंगे।"

वृद्ध की बात सुनकर राजा के सभी मंत्री और सेवक जोर-जोर से हंसने लगे। इस पर वृद्ध ने कहा- "महाराज आपने सारे उपचार करके देख लिए है, यह भी करके देखिए आप अवश्य स्वस्थ हो जाएंगे।"

राजा ने उसकी बात से सहमत होकर के सेवकों को सुखी मनुष्य की खोज में राज्य की चारों दिशाओं में भेज दिया। परंतु उन्हें कोई पूर्ण सुखी मनुष्य नहीं मिला।
प्रजा में सभी को किसी न किसी बात का दुख था। अब राजा स्वयं सुखी मनुष्य की खोज में निकल पड़े। अत्यंत गर्मी के दिन होने से राजा का बुरा हाल हो गया और वह एक पेड़
की छाया में विश्राम हेतु रुका।

तभी राजा को एक मजदूर इतनी गर्मी में मजदूरी करता दिखाई दिया।
राजा ने उससे पूछा- "क्या, आप पूर्ण सुखी हो?"
मजदूर खुशी-खुशी और सहज भाव से बोला- "भगवान की कृपा से मैं पूर्ण सुखी हूं।" यह सुनते ही राजा भी अतिप्रसन्न हुआ। उसने मजदूर को ऊपर से नीचे तक देखा तो मजदूर ने सिर्फ धोती पहनी थी और वह गाढ़ी मेहनत से पूरा पसीने से तर है। राजा यह देखकर
समझ गया कि श्रम करने से ही एक आम मजदूर भी सुखी है

और राजा कोई श्रम नहीं करने की वजह से बीमारी से घिरे रहते हैं। राजा ने लौटकर उस वृद्ध का उपकार मान उसे असंख्य स्वर्ण मुद्राएं दी। अब राजा स्वयं आराम और आलस्य छोड़कर श्रम करने लगे। परिश्रम से कुछ ही दिनों में राजा पूर्ण स्वस्थ और सुखी हो गए।

कथा का सार यही है कि आज हम भौतिक सुख-सुविधाओं के इतने आदि हो गए हैं
कि हमारे शरीर की रोगों से लड़ने की शक्ति क्षीण हो जा रही है। इससे हम जल्द
ही बीमारी की गिरफ्त में आ जाते हैं। इसके अतिरिक्त मेहनत से प्राप्त किया सुख और संतोष ही स्थाई और सच्चा सुख है। अत: स्वस्थ और सुखी जीवन का रहस्य यही है कि अपने निजी जीवन में श्रम को अवश्य स्थान दें।

-12-
एक सेठ था। उसने एक नौकर रखा। रख तो लिया, पर उसे उसकी ईमानदारी पर विश्वास
नहीं हुआ। उसने उसकी परीक्षा लेनी चाही।
अगले दिन सेठ ने कमरे के फर्श पर एक रुपया डाल दिया। सफाई करते समय नौकर ने देखा। उसने रुपया उठाया और उसी समय सेठ के हवाले कर दिया।
दूसरे दिन वह देखता है कि फर्श पर पांच रुपए का नोट पड़ा है। उसके मन में थोड़ा शक पैदा हुआ। हो-न-हो सेठ उसकी नीयत को परख रहा है। बात आई, पर उसने उसे तूल
नहीं दिया। पिछली बार की तरह नोट उठाया और बिना कुछ कहे सेठ को सौंप दिया।
वह घर में काम करता था, पर सेठ की निगाह बराबर उसका पीछा करती थी।

मुश्किल में एक हफ्ता बीता होगा कि एक दिन उसे दस रुपए का नोट फर्श पर पड़ा मिला। उसे देखते ही उसके बदन में आग लग गई। उसने सफाई का काम वहीं छोड़ दिया और नोट को हाथ में लेकर सीधा सेठ के पास पहुंचा और बोला- "लो संभालो अपना नोट और घर में रखो अपनी नौकरी! तुम्हारे पास पैसा है, पर सेठ यह समझने के लिए कि अविश्वास से विश्वास नहीं पाया जा सकता, पैसे के अलावा कुछ और चाहिए। वह तुम्हारे पास नहीं है। मैं ऐसे घर में काम नहीं कर सकता।" सेठ उसका मुंह ताकता रह गया। वह कुछ कहता कि उससे पहले ही वह नौजवान घर से बाहर जा चुका था।

यूँ तो विश्वास पर दुनिया कायम है, लेकिन शक विश्वास का सबसे बड़ा दुश्मन होता है। इसलिये शक करने से पहले ये अवश्य सोचें कि आपका शक प्रकट होकर
सामने वाले को कितनी ठेस पहुँचायेगा? और फिर क्या उसका विश्वास आप पर कायम रह पाएगा? अतः अगर किसी पर विश्वास करना हो तो शुरुवात शक से न करें।

-13-
एक खेल का मैदान, आठ लडकियाँ कतार में दौड़ (race) लगाने के लिए खड़ी हैं ।
ready, steady, धायँ, और पिस्तौल की आवाज़ के साथ ही आठों लडकियां दौड़
पड़ती हैं ।

ब-मुश्किल वो सभी 4 या 5 मीटर आगे गयी होंगी कि एक लड़की फिसल कर गिर
जाती है और उसे चोट लग जाती है । दर्द के मारे वह लड़की रोने लगती है ।
बाकि की सातों लड़कियों को उसके रोने की आवाज़ सुनाई पड़ती है और ये क्या ?
अचानक वो सातों लडकियाँ रुक जाती हैं, एक पल के लिए वो सभी एक दुसरे को देखती हैं,और सातों वापस उस घायल लड़की की तरफ दौड़ पड़ती हैं । मैदान में सन्नाटा छा गया,आयोजक परेशान, अधिकारी हैरान ।

तभी एक अप्रत्याशित घटना घटती है । वो सातों लडकियाँ अपनी घायल प्रतिभागी को उठा लेती हैं और फिर चल पड़ती हैं उस तरफ जहाँ जीत की रेखा खींची गयी है।

एक साथ आठों लडकियाँ उस जीत की रेखा पर पहुँच जाती है और लोगों की आँखों में आँसू आ जाते हैँ ।। मित्रों ये race "NATIONAL INSTITUTE OF MENTAL HEALTH" द्वारा आयोजित थी और वो आठों लडकियां मानसिक रूप से बीमार थी । लेकिन जो इंसानियत, जो मानवता, जो प्यार, जो sportsman ship, जो team work, जो समानता का भाव उन आठों ने दिखाया वो शायद हम जैसे मानसिक रूप से
विकसित और पूर्ण रूप से ठीक नही दिखा पाते ।

क्योंकि हमारे पास ब्रेन है, उनके पास नही था। हमारे पास ईगो है, उनके पास नही था।
हमारे पास attitude है, उनके पास नही था। मित्रों, प्यार इंसान से करो, उसकी औकात से नही। रूठो उनकी बातों से, उनसे नही। भूलो उनकी गलतियों को, उनको नही। रिश्तों से बढकर कर कुछ भी नही। अगर दोस्त न मिलते तो ये कभी समझ नही आता कि अजनबी लोग भी अपनों से ही नही, अपनी जान से भी प्यारे हो सकते हैं ।।

-14-
टोकियो के निकट एक महान ज़ेन मास्टर रहते थे, वो अब वृद्ध हो चुके थे और अपने आश्रम में ज़ेन बुद्धिज़्म की शिक्षा देते थे. एक नौजवान योद्धा, जिसने कभी कोई युद्ध नहीं हारा था ने सोचा की अगर मैं मास्टर को लड़ने के लिए उकसा कर उन्हें लड़ाई में हरा दूँ
तो मेरी ख्याति और भी फ़ैल जायेगी और इसी विचार के साथ वो एक दिन आश्रम पहुंचा .

“कहाँ है वो मास्टर, हिम्मत है तो सामने आये और मेरा सामना करे.”; योद्धा की क्रोध
भरी आवाज़ पूरे आश्रम में गूंजने लगी. देखते -देखते सभी शिष्य वहां इकठ्ठा हो गए और अंत में मास्टर भी वहीँ पहुँच गए .

उन्हें देखते ही योद्धा उन्हें अपमानित करने लगा , उसने जितना हो सके उतनी गालियाँ और अपशब्द मास्टर को कहे . पर मास्टर फिर भी चुप रहे और शांती से वहां खड़े रहे .
बहुत देर तक अपमानित करने के बाद भी जब मास्टर कुछ नहीं बोले तो योद्धा कुछ घबराने लगा , उसने सोचा ही नहीं था की इतना सब कुछ सुनने के बाद भी मास्टर उसे
कुछ नहीं कहेंगे …उसने अपशब्द कहना जारी रखा , और मास्टर के पूर्वजो तक को भला-बुरा कहने लगा …पर मास्टर तो मानो बहरे हो चुके थे, वो उसी शांती के साथ
वहां खड़े रहे और अंततः योद्धा थक कर खुद ही वहां से चला गया .

उसके जाने के बाद वहां खड़े शिष्य मास्टर से नाराज हो गए , “ भला आप इतने कायर
कसी हो सकते हैं , आपने उस दुष्ट को दण्डित क्यों नहीं किया , अगर आप लड़ने से डरते थे, तो हमें आदेश दिया होता हम उसे छोड़ते नहीं !!”,
शिष्यों ने एक स्वर में कहा .

मास्टर मुस्कुराये और बोले , “ यदि तुम्हारे पास कोई कुछ सामान लेकर आता है और तुम उसे नहीं लेते हो तो उस सामान का क्या होता है ?”
“ वो उसी के पास रह जाता है जो उसे लाया था .”, किसी शिष्य ने उत्तर दिया .
“ यही बात इर्ष्या , क्रोध और अपमान के लिए भी लागू होती है .”- मास्टर बोले . “ जब
इन्हें स्वीकार नहीं किया जाता तो वे उसी के पास रह जाती हैं जो उन्हें लेकर आया था .”

-15-

एक बार कुछ लोगों के बीच यह चर्चा छिड़ी कि इस संसार में सचमुच में संतुष्ट कौन है?सबसे सुखी कौन है?
शांति किसके पास है?
लोगों ने कहा, राजा ही होगा! उसके पास नौकर-चाकर हैं, सत्ता है, धन-दौलत है। तो उन्होंने राजा के पास जाकर पूछा कि क्या आप संतुष्ट हैं?
राजा ने कहा, अरे नहीं, मैं संतुष्ट कहां हूं? हमेशा चिंता लगी रहती है कि पड़ोसी राजा कहीं मेरे हमला न कर दे। डर लगा रहता है कि कोई दरबार में षड्यंत्र न करे। लोगों ने पूछा कि तब आप क्या सोचते हैं, फिर कौन संतुष्ट होगा?

राजा ने कहा, बादशाह हो सकता है। वे लोग बादशाह के पास पहुंचे और पूछा कि आप क्या संतुष्ट हैं? बादशाह ने भी वही बात कही, मुझको तो हर घड़ी राज् की ही चिंता लगी रहती है। सिर पर ताज धरने वाले को शांति कहां?

लोगों ने सोचा कि राज-पाट वालों को तो संतोष नहीं है, हो सकता है कि वह संतुष्ट हो जिसके पास कुछ खोने के लिए नहीं है। उन्होंने एक भिखारी को पकड़ा।
भिखारी बोला, कैसा मजाक करते हो भाई, मुझे तो हमेशा यह चिंता लगी रहती है
कि अगले समय का खाना कहां से आएगा?

आखिर में लोग भगवान के पास पहुंचे। भगवान ने कहा, जो मेरा भजन करता है, एक वही इस संसार के अंदर संतुष्ट है, बाकी कोई नहीं। जिज्ञासुओं ने पूछा, ऐसा क्यों?
तो बोले, क्योंकि भगवान तुम्हारे भीतर बैठा है। जब तुम संतुष्ट होते हो, बाहरी चीजों से विरक्त होते हो, तभी उसके पास तक पहुंचते हो।

यह एक कहानी है, समझाने के लिए। क्योंकि सबको मालूम है कि अगर कोई परमानंद है
तो केवल भगवान ही है। इस भौतिक जीवन में परमानंद जैसी कोई चीज तो हो नहीं सकती। लेकिन जब मैं बात करता हूं भगवान की, तो लोग अक्सर पूछते हैं कि किस भगवान की बात कर रहा हूं? यहां तो कितने सारे भगवान हैं। एक राम दशरथ का बेटा है, एक राम घट-घट में बैठा। एक राम का जगत पसारा, एक राम सब जगसे न्यारा ।।

एक बार एक जिज्ञासु ने मुझे चिट्ठी लिखी, महाराजी, यह दोहा सुना तो अच्छा लगा,
परंतु अब उलझन हो गई है। हम किस भगवान के पीछे पड़ें? मैंने जवाब लिखा कि भाई, सबसे नजदीक वाले को पकड़ो! जब पकड़ना ही है तो दूर किसलिए भागते हो? अगर जानना ही है,तो जो तुम्हारे घट में है, उसी को जानो। इस संसार में भेदभाव पैदा करने के लिए लोग क्या-क्या नहीं करते। शर्म की बात है! जिस भगवान के नाम को जपने में आदमी को शांति मिलनी चाहिए, जिस भगवान के नाम को याद करने से ही आदमी को अपनी 'मानवता' का अहसास होना चाहिए, उसी भगवान के नाम पर लोग एक-दूसरे को मारने के लिए तैयार हैं,अपनी मानवता को छोड़ने के लिए तैयार हैं। क्या सचमुच में यह धर्म की प्रकृति है कि लोग एक-दूसरे स नफरत करें?

अब बदलाव का समय है। मैं तो चाहता हूं कि इस संसार में फिर दोबारा ऐसा समय
आए कि मनुष्य को अपनी मानवता याद आए। मानवता यही है कि मैं तेरे खोट
को नहीं देखूंगा, मैं तेरे अवगुण को नहीं देखूंगा, मैं तेरी अच्छाई को देखूंगा।
ऐसा नहीं कि तू किस धर्म को मानता है? बल्कि यह कि तू भगवान का बनाया है, मैं
भी भगवान का बनाया हुआ हूं। जब तक हम इस संसार में हैं, आपस में मिलकर रहें। अगर
संसार के अंदर थोड़ी-सी दया, मानवता, प्रेम और प्यार आ जाए तो ऐसी हरियाली होगी,
ऐसी हरियाली होगी कि बस पूछो मत!

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