प्रेरक प्रसंग


1
पत्नी ने पति से कहा, "कितनी देर तक समाचार पत्र पढ़ते रहोगे? यहाँ आओ और अपनी प्यारी बेटी को खाना खिलाओ". पति ने समाचार पत्र एक तरफ़ फेका और बेटी की ध्यान दिया,बेटी की आंखों में आँसू थे और सामने खाने की प्लेट. बेटी एक अच्छी लड़की है और अपनी उम्र के बच्चों से ज्यादा समझदार. पति ने खाने की प्लेट को हाथ में लिया और बेटी से बोला,"बेटी खाना क्यों नहीं खा रही हो? आओ बेटी मैं खिलाऊँ."बेटी जिसे खाना नहीं भा रहा था, सुबक सुबक कर रोने लगी और कहने लगी,"मैं पूरा खाना खा लूँगी पर एक वादा करना पड़ेगा आपको." "वादा", पति ने बेटी को समझाते हुआ कहा, "इस प्रकार कोई महँगी चीज खरीदने के लिए जिद नहीं करते." "नहीं पापा, मैं कोई महँगी चीज के लिए जिद नहीं कर रही हूँ." फिर बेटी ने धीरे धीरे खाना खाते हुये कहा, "मैं अपने सभी बाल कटवाना चाहती हूँ." पति और पत्नी दोनों अचंभित रह गए और बेटी को बहुत समझाया कि लड़कियों के लिए सिर के सारे बाल कटवा कर गंजा होना अच्छा नहीं लगता है. पर बेटी ने जवाब दिया, "पापा आपके कहने पर मैंने सड़ा खाना, जो कि मुझे अच्छा नहीं लग रहा था, खा लिया और अब वादा पूरा करने की आपकी बारी है."अंततः बेटी की जिद के आगे पति पत्नी को उसकी बात माननी ही पड़ी. अगले दिन पति बेटी को स्कूल छोड़ने गया. बेटी गंजी बहुत ही अजीब लग रही थे. स्कूल में एक महिला ने पति से कहा, "आपकी बेटी ने एक बहुत ही बड़ा काम किया है. मेरा बेटा कैंसर से पीड़ित है और इलाज में उसके सारे बाल खत्म हो गए हैं. वह् इस हालत में स्कूल नहीं आना चाहता था क्योंकि स्कूल में लड़के उसे चिढ़ाते हैं. पर आपकी बेटी ने कहा कि वह् भी गंजी होकर स्कूल आयेगी और वह् आ गई. इस कारण देखिये मेरा बेटा भी स्कूल आ गया.आप धनया हैं कि आपके ऐसी बेटी है" पति को यह सब सुनकर रोना आ गया और उसने मन ही मन सोचा कि आज बेटी ने सीखा दिया कि प्यार क्या होता है.इस पृथ्वी पर खुशहाल वह् नहीं हैं जो अपनी शर्तों पर जीते हैं बल्कि खुशहाल वे हैं जो, जिन्हें वे प्यार करते हैं, उनके लिए बदल जाते हैं!!



2
26/11 के बाद रतन टाटा ने अपने भारत और विदेश के होटलोँ की श्रंखला के पुन:र्निर्माण के लिये टेँडर जारी किये उसके लिये
काफी कम्पनियोँ ने एप्लाई किया जिसमेँ कुछ पाकिस्तानी कम्पनियाँ भी शामिल थी दो पाकिस्तानी कम्पनियाँ अपनी बोली को मज करने केलिये बॉम्बे हाउस ( Head office of Tata ) भी आई रतन टाटा से मिलने बिना अपॉइंटमेँट के क्योँकि टाटा ने
उनको अपॉइंटमेँट के लिये टाईम नहीँ दिया उनको काफी देर तक बॉम्बे हाऊस के रिसेप्शन पर वेट कराया गया फिर टाटा की तरफ से बिजी होने का मैसेज देकर भगा दिया गया दोनोँ उद्योगपति मुम्बई से दिल्ली गये और अपने उच्चायुक्त से बात की और एक मंत्री के जरिये टाटा को फोन लगवाया मंत्री ने टाटा से उनको अपॉईँटमेँट देने की रिक्यूस्ट की तो टाटा ने कहा "तुम बेशर्म हो सकते हो लेकिन मैँ नही.. " और फोन काटदिया.... कुछ महिनोँ बाद पाकिस्तानी सरकार ने रतन टाटा को एक लाख टाटा सूमो का ऑर्डर दिया तो रतन टाटा ने पाकिस्तान को एक टायर तक देने से मना कर दिया..... राष्ट्र हमेशा सर्वोपरि होता है ये रतन टाटा को पता है...


3
एक आदमी हमेशा की तरह अपने नाई की दूकान पर बाल कटवाने गया . बाल कटाते वक़्त अक्सर देश-दुनिया की बातें हुआ करती थीं ….आज भी वे सिनेमा , राजनीति , और खेल जगत , इत्यादि के बारे में बात कर रहे थे कि अचानक भगवान् के अस्तित्व को लेकर बात होने लगी .

नाई ने कहा , “ देखिये भैया , आपकी तरह मैं भगवान् के अस्तित्व में यकीन नहीं रखता .”
“ तुम ऐसा क्यों कहते हो ?”, आदमी ने पूछा .

“अरे , ये समझना बहुत आसान है , बस गली में जाइए और आप समझ जायेंगे कि भगवान् नहीं है . आप ही बताइए कि अगर भगवान् होते तो क्या इतने लोग बीमार होते ?इतने बच्चे अनाथ होते ? अगर भगवान् होते तो किसी को कोई दर्द कोई तकलीफ नहीं होती ”, नाई ने बोलना जारी रखा , “ मैं ऐसे भगवान के बारे में नहीं सोच सकता जो इन सब चीजों को होने दे . आप ही बताइए कहाँ है भगवान ?”

आदमी एक क्षण के लिए रुका , कुछ सोचा , पर बहस बढे ना इसलिए चुप ही रहा .

नाई ने अपना काम खत्म किया और आदमी कुछ सोचते हुए दुकान से बाहर निकला और कुछ दूर जाकर खड़ा हो गया. . कुछ देर इंतज़ार करने के बाद उसे एक लम्बी दाढ़ी – मूछ वाला अधेड़ व्यक्ति उस तरफ आता दिखाई पड़ा , उसे देखकर लगता था मानो वो कितने दिनों से नहाया-धोया ना हो .

आदमी तुरंत नाई कि दुकान में वापस घुस गया और बोला , “ जानते हो इस दुनिया में नाई नहीं होते !”
“भला कैसे नहीं होते हैं ?” , नाई ने सवाल किया , “ मैं साक्षात तुम्हारे सामने हूँ!! ”

“नहीं ” आदमी ने कहा , “ वो नहीं होते हैं वरना किसी की भी लम्बी दाढ़ी – मूछ नहीं होती पर वो देखो सामने उस आदमी की कितनी लम्बी दाढ़ी-मूछ है !!”

“ अरे नहीं भाईसाहब नाई होते हैं लेकिन बहुत से लोग हमारे पास नहीं आते .” नाई बोला

“बिलकुल सही ” आदमी ने नाई को रोकते हुए कहा ,” यही तो बात है , भगवान भी होते हैं पर लोग उनके पास नहीं जाते और ना ही उन्हें खोजने का प्रयास करते हैं, इसीलिए दुनिया में इतना दुःख-दर्द है.”


4
नव द्वारों का पिन्जरा अन्दर पंची मौन ,
रहे अचम्भा हॉत है , उड़ जाए अचम्भा कौन .....
..............................................................
इस शरीर मैं नौ द्वार है एक मुह , दो आँख , दो कान , दो नाक ,एक गुदा और एक गुप्त इन्द्रिय ऐसे नौ द्वारों के होते हुए भी आत्मा रूपी पंछी अंदर विराजमान है ये इश्वर की इच्छा पर निर्भर है , ये यदि उड़ जाए या निकल जाए तो इसे जो इश्वर की इच्छा मान लेते है वो फिर किसी के बिछड़ने का दुःख ज्यादा समय तक नहीं करते !!!


5
एक आदमी जंगल से गुजर रहा था । उसे चार स्त्रियां मिली। उसने पहली से पूछा - बहन तुम्हारा नाम क्या हैं ?
उसने कहा "बुद्धि " तुम कहां रहती हो? मनुष्य के दिमाग में।
दूसरी स्त्री से पूछा - बहन तुम्हारा नाम क्या हैं ?
" लज्जा "। तुम कहां रहती हो ? आंख में ।

तीसरी से पूछा - तुम्हारा क्या नाम हैं ? "हिम्मत" कहां रहती हो ? दिल में ।

चौथी से पूछा - तुम्हारा नाम क्या हैं ? "तंदुरूस्ती" कहां रहती हो ? पेट में।
वह आदमी अब थोडा आगे बढा तों फिर उसे चार पुरूष मिले।

उसने पहले पुरूष से पूछा - तुम्हारा नाम क्या हैं ? " क्रोध " कहां रहतें हो ? दिमाग में,
दिमाग में तो बुद्धि रहती हैं, तुम कैसे रहते हो?
जब मैं वहां रहता हुं तो बुद्धि वहां से विदा हो जाती हैं।

दूसरे पुरूष से पूछा - तुम्हारा नाम क्या हैं ? उसने कहां -" लोभ"। कहां रहते हो? आंख में।
आंख में तो लज्जा रहती हैं तुम कैसे रहते हो। जब मैं आता हूं तो लज्जा वहां से प्रस्थान कर जाती हैं ।

तीसरें से पूछा - तुम्हारा नाम क्या हैं ? जबाब मिला "भय"। कहां रहते हो?
दिल में तो हिम्मत रहती हैं तुम कैसे रहते हो? जब मैं आता हूं तो हिम्मत वहां से नौ दो ग्यारह हो जाती हैं।

चौथे से पूछा तुम्हारा नाम क्या हैं? उसने कहा - "रोग"। कहां रहतें हो? पेट में।
पेट में तो तंदरूस्ती रहती हैं, जब मैं आता हूं तो तंदरूस्ती वहां से रवाना हो जाती हैं।

जीवन की हर विपरीत परिस्थिथि में यदि हम उपरोक्त वर्णित बातो को याद रखे तो कई चीजे टाली जा सकती है
जरा मुसकरा के देख, दुनिया हसती नजर आएगी!
सुबह सैर कर के तो देख, तेरी सेहत ठीक हो जाएगी!
वयसन छोड के तो देख, तेरी इजत बन जाएगी!
खर्च घटा कर के तो देख, तुझे अचछी नीँद आएगी!
मेहनत कर के तो देख, पैसे की तंगी चली जाएगी!
संसार की अचछाइ तो देख, तेरी बुराई भाग जाएगी!
ईशवर का धयान कर के तो देख, तेरी उलझने दुर हो जाएगी!
माता पिता की बात मान कर तो देख, तेरी जिनदगी संवर जाएगी!



6
शराब पीने के लाभ बताने वाला साधु......

एक बोधकथा है। किसी देश का राजा बहुत अच्छा था। प्रजा उससे बहुत प्रसन्न रहती थी। लेकिन राजा को पीने की लत लग गई। वह शराब में बेसुध रहने लगा। इसके चलते राज-काज की व्यवस्था बिगड़ने लगी। बात धीरे-धीरे फैलने लगी। प्रजा भयभीत थी, अगर पड़ोसी राजा को भनक लगी तो वह हमला कर हमें लूट लेगा।

संयोग से एक साधु बाबा झूमते- झामते उस राज्य में आ गए। वहीं कहीं अपना डेरा डाल दिया। एक दिन राज्य के कुछ बडे़-बूढे़ उनके पास गए और उन्हें अपनी समस्या बताई। साधु ने सारी बात सुनकर कहा कि अगर आप राजा को बचाना ही चाहते हो, तो मेरी एक विशाल सभा करवाओ।

[ जारी है ]
प्रजा ने मिलकर सभा का आयोजन किया। उस में कथा-कीर्तन के बाद साधु बाबा ने शराब का गुणगान करना शुरू किया। कहने लगे, शराब पीने वाला गीता में दी गई समदर्शन अवस्था को प्राप्त कर लेता है .... वह कभी बूढ़ा नहीं होता .... उसके घर में चोर चोरी नहीं कर सकता ...इत्यादि।

धीरे-धीरे बात राजा तक भी पहुंची। उसने साधु बाबा को महल में बुलवा लिया और वहीं उनके ठहरने की व्यवस्था करवाई। फिर उनसे निवेदन किया, महाराज मुझे भी कुछ उपदेश दे का मेरा जीवन धन्य बनाएं।

साधु बाबा ने कहा, हे राजन, यह कलियुग है, इसमें हरिनाम बहुत जरूरी है, अत: आप हरिनाम जपा करो। फिर एक थैली में भरकर कुछ लकड़ी के मनके और एक ग्लास देते हुए कहा, इसे मैंने सिद्ध कर दिया है,अत: अब आप शराब इसी ग्लास में पीना। बस रोज एक-एक मनका इस ग्लास में डालते रहना। और हां, एक बार जो मनके डाल दिए, उन्हें कभी वापस नहीं निकालना।

राजा रोज एक मनका डालता, और उसी ग्लास में शराब पीता। धीरे-धीरे ग्लास मनकों से भरने लगा। और शराब कम होने लगी। शराब कम होने से नशा भी कम होने लगा। कम नशे में होश ज्यादा रहने लगा। तो एक दिन राजा ने देखा कि उसके मंत्री भी शराब पीकर पडे़ रहते हैं, किसी को राज्य का ध्यान नहीं है।

यह देख कुछ दिन वह गुप्त रूप से राज्य के भ्रमण पर निकला। उसने देखा कि प्रजा उससे प्रसन्न तो है,पर उसकी शराब पीने की आदत से डरी हुई है कि कहीं पड़ोसी राजा उन पर हमला ना कर दे।

राजा की आंखें खुल गईं। महल में वापस आकर उसने शराब न पीने का प्रण लिया और राज्य की हालत सुधारने में जुट गया। राजा को ठीक हुआ देख, मंत्रीगण भी संभल गए व राज्य का कार्यभार संभालने लगे।

राज्य की स्थिति को अच्छा देख राजा मन ही मन बड़ा प्रसन्न हुआ और महल में साधु बाबा के पास पहुंचा। उन्हें प्रणाम कर बोला, आपकी बड़ी कृपा है कि आपने मेरी शराब छुड़ा दी। पर आपने जनसभा में यह क्यों कहा था कि शराब पीने वाला गीता में दी गई समदर्शन अवस्था को प्राप्त करता है...... आदि-आदि।'

साधु ने हंस कर कहा, राजन मैं ने गलत नहीं कहा था। शराब में धुत व्यक्ति को पता ही नहीं चलता कि उसके आस-पास क्या हो रहा है, उसका ध्यान तो शराब पीने में ही होता है। समदर्शन और क्या है? और देखो कि शराब पीने वाला बूढ़ा भी नहीं होता, क्योंकि वह तो जवानी में ही मर जाता है। और शराब पीने वाले के घर चोर भी नहीं आते। क्योंकि वह शराब के लिए घर का सारा सामान तक लुटा देता है। जब घर में कुछ बचेगा ही नहीं तो चोर उसके घर में क्यों आएंगे?

कहानी का प्रयोजन यह है कि साधु ने राजा को उपदेश दे कर नहीं युक्ति से उसकी लत छुड़ाई।


7
एक अमेरिकन बोला भाई साहब बताइये अगर आपका भारत महान है तो सँसार के इतने आविष्कारों में आपके देश का क्या योगदान है ??

हिन्दुस्तानी - "अरे अमरीकन सुन !!"

१. संसार की पहली फायर प्रूफ लेडी भारत में हुई !! नाम था "होलिका" आग में जलती नही थी !! इसीलिए उस वक्त फायर ब्रिगेड चलती नही थी !!

२. संसार की पहली वाटर प्रूफ बिल्डिँग भारत में हुई !! नाम था भगवान विष्णु का"शेषनाग" !! काम तो ऐसे जैसे "विशेषनाग" !!

३. दुनिया के पहले पत्रकार भारत में हुए !! "नारदजी" जो किसी राजव्यवस्था से नही डरते थे !! तीनों लोक की सनसनी खेज रिपोर्टिँग करते थे !!

४. दुनिया के पहले कॉँमेन्टेटर"संजय" हुये, जिन्होंने नया इतिहास बनाया !! महाभारत के युद्ध का आँखो देखा हाल अँधे "ध्रतराष्ट" को उन्ही ने सुनाया !!
५. दादागिरी करना भी दुनिया हमने सिखाया क्योंकि वर्षो पहले हमारे "शनिदेव" ने ऐसा आतँक मचाया कि"हफ्ता" वसूली का रिवाज उन्ही के शिष्यो ने चलाया !! आज भी उनके शिष्य हर शनिवार को आते है ! उनका फोटो दिखाकर हफ्ता ले जाते है!!
.अमेरिकन बोला दोस्त फालतू की बातें मत बनाओ!

कोई ढ़ंग का आविष्कार हो तो बताओ !! जैसे हमने इँसान की किडनी बदल दी, बाईपास सर्जरी कर दी आदि!!

हिन्दुस्तानी बोला रे अमरीकन सर्जरी का तो आइडिया ही दुनिया को हमने दिया था !! तू ही बता "गणेशजी"का ऑपरेशन क्या तेरे बाप ने किया था !!
.
अमरीकन हडबडाया !! गुस्से मेँ बडबडाया!! देखते ही देखते चलता फिरता नजर आया!! तब से पूरी दुनिया को हम
पर मान है!!! दुनिया में देश कितने ही हो पर मेरा "भारत" महान है......!!


8
यात्रियों से खचाखच भरी ट्रेन में टी.टी.ई. को एकपुराना फटा सा पर्स मिला। उसने पर्स को खोलकर यह पता लगाने की कोशिश की कि वह किसका है।
लेकिन पर्स में ऐसा कुछ नहीं था जिससे कोई सुराग मिल सके।
पर्स में कुछ पैसे और भगवानश्रीकृष्ण की फोटो थी।
फिर उस
... टी.टी.ई. ने हवा में पर्स हिलाते हुए पूछा -"यह किसकापर्स है?"
एक बूढ़ा यात्री बोला -"यह मेरा पर्स है।
इसे कृपया मुझे
दे दें।
"टी.टी.ई. ने कहा -"तुम्हें यह साबित करना होगा कि यह पर्स तुम्हारा ही है।
केवल तभी मैं यह पर्स तुम्हें लौटा सकता हूं।
उस बूढ़े व्यक्ति ने
दंतविहीन मुस्कान के साथ उत्तर दिया -"इसमें भगवान
श्रीकृष्ण की फोटो है।"
टी.टी.ई. ने कहा -"यह कोई ठोस
सबूत नहीं है। किसी भी व्यक्ति के पर्स में भगवान
श्रीकृष्ण की फोटो हो सकती है। इसमें क्या खास बात है?
पर्स में तुम्हारी फोटो क्यों नहीं है?"
बूढ़ा व्यक्ति ठंडी गहरी सांस भरते हुए बोला -"मैं
तुम्हें बताता हूं कि मेरा फोटो इस पर्स में क्यों नहीं है। जब मैं स्कूल में पढ़ रहा था, तब ये पर्स मेरेपिता ने मुझे दिया था। उस समय मुझे जेबखर्च के रूप में कुछ पैसे मिलते थे।
मैंने पर्स में अपने माता- पिता की फोटो रखी हुयी थी।
जब मैं किशोर अवस्था में पहुंचा, मै अपनी कद-
काठी पर मोहित था। मैंने पर्स में से माता- पिता की फोटो हटाकर अपनी फोटो लगा ली। मैं अपने सुंदरचेहरे और काले
घने बालों को देखकर खुश हुआकरता था। कुछ साल बाद मेरी शादी हो गयी। मेरी पत्नी बहुत सुंदर थी और मैं उससे बहुत प्रेम करता था। मैंने पर्स में से अपनी फोटो हटाकर उसकी लगा ली। मैं घंटों उसके सुंदर चेहरे को निहारा करता।
जब मेरी पहली संतान का जन्महुआ, तब मेरे जीवन का नया अध्याय शुरू हुआ। मैं अपने बच्चे के साथ खेलने के लिए काम पर कम समय खर्च करने लगा। मैं देर से काम
पर जाता ओर जल्दी लौट आता। कहने की बात नहीं,
अब मेरे पर्स में मेरे बच्चे की फोटो आ गयी थी।"
बूढ़े व्यक्ति ने डबडबातीआँखों के साथ बोलना जारी रखा -"कई वर्ष पहले मेरे माता- पिता का स्वर्गवास होगया। पिछले वर्ष मेरी पत्नीभी मेरा साथ छोड़ गयी।
मेरा इकलौता पुत्र अपने परिवार में व्यस्त है। उसकेपास
मेरी देखभाल का वक्त नहीं है। जिसे मैंने अपने जिगर के टुकड़े की तरह पाला था, वह अब मुझसे बहुतदूर हो चुका है। अब मैंने भगवान कृष्ण की फोटो पर्स में लगाली है। अब जाकर मुझे
एहसास हुआ है कि श्रीकृष्ण ही मेरे शाश्वतसाथीहैं। वे हमेशा मेरे साथ रहेंगे। काश मुझे पहले ही यह एहसास हो गया होता।
जैसा प्रेम मैंने अपने परिवार से किया, वैसा प्रेमयदि मैंने ईश्वर के साथ किया होता तो आज मैं
इतना अकेला नहीं होता।"
टी.टी.ई. ने उस बूढ़े व्यक्ति को पर्स लौटा दिया।अगले स्टेशन पर ट्रेन के रुकते ही वह टी.टी.ई. प्लेटफार्म पर बनेबुकस्टाल पर पहुंचा और विक्रेता से बोला -"क्या तुम्हारे
पास भगवान की कोई फोटो है? मुझे अपने पर्स में
रखने के लिए चाहिए...


9
स्वामी विवेकानंद !!!
बात उस समय की है जब स्वामी विवेकानंद जी शिकागो धर्मसभा में भारतीय संस्कृति पर बोलने के लिए आमंत्रित किये गये थे। शिकागो जाने से पहले विवेकानन्द स्वामी रामकृष्ण जी की पत्नी गुरूमाता शारदा के पास आशीर्वाद लेने पहुंचे। मां ने उन्हें वापस भेजते हुआ कहा, कल आना। पहले मैं तुम्हारी पात्रता देखूंगी। उसके बाद ही मैं तुम्हें आशीर्वाद दूंगी। दूसरे दिन विवेकानंद आए तो उन्होंने कहा, अच्छा आशीर्वाद लेने आया है। पर पहले मुझे वह चाकू तो पकड़ा। मुझे सब्जी काटनी है, फिर देती हूं तुझे आशीर्वाद। गुरूमाता की आज्ञा मानते हुए जैसे विवेकानन्द जी ने पास पड़ा चाकू गुरू मां को दिया मां का चेहरा प्रसन्नता से खिल गया। उन्होंने कहा जाओ नरेंद्रमेरा आशीर्वाद तुम्हारे साथ रहेगा। स्वामी विवेकानंद जी आश्चर्य में पड़ गए। वे यह सोच कर आए थे कि मां उनकी योग्यता जांचने के लिए कोई परीक्षा लेगी लेकिन वहां तो वैसा कुछ भी नही हुआ। विवेकानंद जी के आश्चर्य को देखकर माता शारदा ने कहा कि प्रायः जब किसी व्यक्ति से चाकू मांगा जाता है तो वह चाकू का मुठ अपनी हथेली में थाम देता है और चाकू की तेज धार वाला हिस्सा दूसरे को देदेता है। इससे पता चलता है कि उस व्यक्ति को दूसरे की तकलीफ और
सुविधा की परवाह नहीं। लेकिन तुमने ऐसा नहीं किया। यही तो साधू का मन होता है जो सारी विपदा खुद झेलकर
भी दूसरों को सुख देता है। इसी से पता चलता है कि तुम शिकागो जाने योग्य हो ! —


10
एक बार एक हंस और हंसिनी हरिद्वार के सुरम्य वातावरण से भटकते हुए उजड़े, वीरान और रेगिस्तान के इलाके में आ गये !
हंसिनी ने हंस को कहा कि ये किस उजड़े इलाके में आ गये हैं ? यहाँ न तो जल है, न जंगल और न ही ठंडी हवाएं हैं !
यहाँ तो हमारा जीना मुश्किल हो जायेगा ! भटकते २ शाम हो गयी तो हंस ने हंसिनी से कहा कि किसी तरहआज कि रात बिता लो, सुबह हम लोग हरिद्वार लौट चलेंगे ! रात हुई तो जिस पेड़ के नीचे हंस और हंसिनी रुके थे उस पर एक उल्लू
बैठा था। वह जोर २ से चिल्लाने लगा। हंसिनी ने हंस से कहा, अरे यहाँ तो रात में सो भी नहीं सकते। ये उल्लू चिल्ला रहा है।
हंस ने फिर हंसिनी को समझाया कि किसी तरह रात काट लो, मुझे अब समझ में आ गया है कि ये इलाका वीरान क्यूँ है ? ऐसे उल्लू जिस इलाके में रहेंगे वो तो वीरान और उजड़ा रहेगा ही। पेड़ पर बैठा उल्लू दोनों कि बात सुन रहा था। सुबह हुई, उल्लू नीचे आया और उसने कहा कि हंस भाई मेरी वजह से आपको रात में तकलीफ हुई, मुझे माफ़ कर दो। हंस ने कहा, कोई बात नही भैया, आपका धन्यवाद ! यह कहकर जैसे ही हंस अपनी हंसिनी को लेकर आगे बढ़ा, पीछे से उल्लू चिल्लाया, अरे हंस मेरी पत्नी को लेकर कहाँ जा रहे हो। हंसचौंका, उसने कहा, आपकी पत्नी? अरे भाई, यह हंसिनी है, मेरी पत्नी है, मेरे साथ आई थी, मेरे साथ जा रही है ! उल्लू ने कहा, खामोश रहो, ये मेरी पत्नी है। दोनों के बीच विवाद बढ़ गया। पूरे इलाके के लोग इक्कठा हो गये। कई गावों की जनता बैठी। पंचायत बुलाई गयी। पंच लोग भी आ गये ! बोले, भाई किस बात का विवाद है ?
लोगों ने बताया कि उल्लू कह रहा है कि हंसिनी उसकी पत्नी है और हंस कह रहा है कि हंसिनी उसकी पत्नी है ! लम्बी बैठक और पंचायत के बाद पञ्च लोग किनारे हो गये और कहा कि भाई बात तो यह सही है कि हंसिनी हंस की ही पत्नी है, लेकिन ये हंस और हंसिनी तो अभी थोड़ी देर में इस गाँव से चले जायेंगे। हमारे बीच में तो उल्लू को ही रहना है। इसलिए फैसला उल्लू के
ही हक़ में ही सुनाना है ! फिर पंचों ने अपना फैसला सुनाया और कहा कि सारे तथ्यों और सबूतों कि जांच करने के बाद यह पंचायत इस नतीजे पर पहुंची है कि हंसिनी उल्लू की पत्नी है और हंस को तत्काल गाँव छोड़ने का हुक्म दिया जाता है ! यह सुनते ही हंस हैरान हो गया और रोने, चीखने और चिल्लाने लगा कि पंचायत ने गलत फैसला सुनाया।
उल्लू ने मेरी पत्नी ले ली ! रोते- चीखते जब वहआगे बढ़ने लगा तो उल्लू ने आवाज लगाई -
ऐ मित्र हंस, रुको ! हंस ने रोते हुए कहा कि भैया, अब क्या करोगे ? पत्नी तो तुमने ले ही ली, अब जान भी लोगे ? उल्लू
ने कहा, नहीं मित्र, ये हंसिनी आपकी पत्नी थी, है और रहेगी ! लेकिन कल रात जब मैं चिल्ला रहा था तो आपने अपनी पत्नी से
कहा था कि यह इलाका उजड़ा और वीरान इसलिए है क्योंकि यहाँ उल्लू रहता है ! मित्र, ये इलाका उजड़ा और वीरान इसलिए नहीं है कि यहाँ उल्लू रहता है । यह इलाका उजड़ा और वीरान इसलिए है क्योंकि यहाँ पर ऐसे पञ्च रहते हैं जो उल्लुओं के हक़ में फैसला सुनाते हैं ! शायद ६५ साल कि आजादी के बाद भी हमारे देश की दुर्दशा का मूल कारण यही है कि हमने हमेशा अपना फैसला उल्लुओं के ही पक्ष में सुनाया है। इस देश क़ी बदहाली और दुर्दशा के लिए कहीं न कहीं हम
भी जिम्मेदार हैं।


11
एक पहलवान ने एक आदमी थप्पड मार दिया, उसने गांधी के कथनानुसार दूसरा गाल आगे कर दिया पहलवान ने दूसरे गाल पर भी थप्पड मार दिया ! थप्पड खाने वाले ने कहा पहलवान जी गांधी के कथनानुसार मैने किया अब तो आप दो घंटे रुको मै आगे की जीवनी पढ के आता हूं ! वो गया और वापस आते ही उसने पहलवान के सीने पर बंदूक रख दी, पहलवान हैरान होकर बोला भाई तू तो गांधी वादी था फिर ये हिंसा क्यूं ? वो बोला भाई मैने गांधी के आदेशानुसार दोनो गालो पर थप्पड खा लिए हैं ।।।। और आगे कुछ कहा ही नहीं उसने यही कहता रहता है " अहिंसा परमोधर्मः"

इसलिए, अब मै सुभाष चन्द्र बौस की जीवनी पढ कर आया हूं !

और यही सत्य है दोस्तों,,,,,,, वो आधा अधूरा श्लोक हिन्दुस्तानियों को कायर बनाने पर तुला हुआ है। अहिंसा परमोधर्मः का अर्थ होता है की अहिन्सा ही परम धर्म है। लेकिन इस श्लोक के आगे का हिस्सा बताने को कोई तैयार नहीं है जिसमे लिखा है की धर्म हिंसा तथैव च।।। अर्थात अधर्म के विनाश हेतु हिंसा हो।
हमे उन महान बलिदानी चरित्रो को फिर जिंदा करना होगा ! वरना तो नापाक, पाकिस्तान, चीन, बंगलादेश सब हमे आंख दिखायेंगे ! PM अपने आप कुछ बोल नहीं सकता और जो भी बोले मैडम से पूछ के बोलेगा !ऐसे में एक ही उपाय है तुम्हारे पांच सैनिक मारे तुम उनके पचास मारो। तुम्हारी सीमा में कोई दस किलोमीटर घुस आए तो तुम बदले में उनकी सीमा में सौ किलोमीटर अन्दर घुस जाओ। कोई भी अवैध रूप से सीमा पार करे तो देखते ही गोली मार दो। कोई हिन्दुस्तान में किसी दुसरे देश का झंडा लहराने की कोशिश करे तो सीधे यमलोक पहुंचा दो तभी सुधार होगा देश की बिगडती हुई व्यवस्था में।


12
एक वैज्ञानिक दोस्त ने मुझे एक यंत्र दिया, जिससे मैँ किसी के दिल की बात सुन सकता था।

यंत्र लगाकर एक मित्र के घर गया, दरवाजा खुलते ही उसके मन की आवाज आई-ः घोंचू सुबह!सुबह ही टपक पड़ा।अब तो हलवे मेँ आधा इसको देना ही पड़ेगा।

औफिस मेँ जैसे ही बॉस के सामने लगाया, बॉस के दिल की आवाज आई-ः इस लड़के से अभी और काम करवा सकता हूँ,
कोशिश करते है थोड़ा हड़काकर और ज्यादा काम निकलवा ले। इन्क्रिमेंट भी कूछ दिन और टरका देता हूँ।

दुकान वाले के पास गया तो आवाज आई-ः एक नंबर का कंजर है ससुरा, बिना बार्गेनिंग के तो कूछ खरीदेगा नहीँ।

जैसे घर पहुँचा बिवी की अंतरात्मा की आवाज आई, उफ!फिर खाली हाथ आये ये, ना चुड़ी,ना साड़ी ना लिपिस्टिक।

माँ के पास गया तो आवाज आई-ः लगता है बेटा थक गया है काम करके, पहले बेटे को आराम करने को बोलती हूँ फिर कूछ खाने के लिये लाती हूँ


13
कल्पना कीजिये एक बैंक अकाउंट की जिसमे रोज सुबह
आपके लिए कोई 86,400 रुपये जमा कर देता है ।
लेकिन शर्त ये है की इस अकाउंट का बैलेंस
कैर्री फॉरवर्ड नहीं होगा, यानि दिन के अंत में बचे
पैसे आपके लिए अगले दिन उपलब्ध नहीं रहेंगे ।
और हर शाम इस अकाउंट में बचे हुए पैसे आपसे वापस
ले लिए जाते हैं।
ऐसे सिचुएशन में आप क्या करेंगे ? जाहिर है आप
एक-एक पैसा निकल लेंगे। है ना ?
हम सब के पास एक ऐसा ही बैंक है, इस बैंक का नाम
है " समय".
हर सुबह समय हमको 86,400 सेकण्ड्स देता है।
और हर रात्रि ये उन सरे बचे हुए सेकण्ड्स
जिनको आपने किसी बहतरीन मकसद के लिए इस्तेमाल
नहीं किया है, हमसे छीन लेती है। ये कुछ
भी बकाया समय आगे नहीं ले जाती है।
हर सुबह आपके लिए एक नया अकाउंट खुलता है, और
अगर आप हर दिन के जमा किये गए सेकण्ड्स
को ठीक से इस्तेमाल करने में असफल होते हैं तो ये
हमेशा के लिए आपसे छीन लिया जाता है।
अब निर्णय आपको करना है की दिए गए 86,400
सेकण्ड्स का आप उपयोग करना चाहते हैं या फिर
इन्हें गवाना चाहते हैं

14
एक बार एक देश में यह निर्णय लिया गया कि वृद्ध किसी काम के नहीं होते, अकसर बीमार रहते हैं, और वे अपनी उम्र जी चुके होते हैं अतः उन्हें मृत्यु दे दी जानी चाहिए। देश का राजा भी जवान था तो उसने यह आदेश देने में देरी नहीं की कि पचास वर्ष से ऊपर के उम्र के लोगों को खत्म कर दिया जाए।

और इस तरह से सभी अनुभवी, बुद्धिमान बड़े बूढ़ों से वह देश खाली हो गया. उनमें एक जवान व्यक्ति था जो अपने पिता से बेहद प्रेम करता था। उसने अपने पिता को अपने घर के एक अंधेरे कोने में छुपा लिया और उसे बचा लिया।

कुछ साल के बाद उस देश में भीषण अकाल पड़ा और जनता दाने दाने को मोहताज हो गई। बर्फ के पिघलने का समय आ गया था, परंतु देश में बुआई के लिए एक दाना भी नहीं था. सभी परेशान थे। अपने बच्चे की परेशानी देख कर उस वृद्ध ने, जिसे बचा लिया गया था, अपने बच्चे से कहा कि वो सड़क के किनारे किनारे दोनों तरफ जहाँ तक बन पड़े हल चला ले।

उस युवक ने बहुतों को इस काम के लिए कहा, परंतु किसी ने सुना, किसी ने नहीं. उसने स्वयं जितना बन पड़ा, सड़क के दोनों ओर हल चला दिए। थोड़े ही दिनों में बर्फ पिघली और सड़क के किनारे किनारे जहाँ जहाँ हल चलाया गया था, अनाज के पौधे उग आए।

लोगों में यह बात चर्चा का विषय बन गई, बात राजा तक पहुँची. राजा ने उस युवक को बुलाया और पूछा कि ये आइडिया उसे आखिर आया कहाँ से? युवक ने सच्ची बात बता दी।

राजा ने उस वृद्ध को तलब किया कि उसे यह कैसे विचार आया कि सड़क के किनारे हल चलाने से अनाज के पौधे उग आएंगे। उस वृद्ध ने जवाब दिया कि जब लोग अपने खेतों से अनाज घर को ले जाते हैं तो बहुत सारे बीच सड़कों के किनारे गिर जाते हैं. उन्हीं का अंकुरण हुआ है।

राजा प्रभावित हुआ और उसे अपने किए पर पछतावा हुआ. राजा ने अब आदेश जारी किया कि आगे से वृद्धों को ससम्मान देश में पनाह दी जाती रहेगी।

कहावत है –

वृद्धस्य वचनम् ग्राह्यं आपात्काले ह्युपस्थिते।

जिसका अर्थ है – विपदा के समय बुजुर्गों का कहा मानना चाहिए..

15
सुबह-सुबह अखबार की चटपटी ख़बरों पर नज़र डाल ही रही थी कि सुमी बाई ने परदे के पीछे से झांककर पूछा -
" भाभीजी, मैं हर महीने आपके पास जो रुपये जमा करती थी वो आज मुझे चाहिए। "
" हाँ ले लो, पर आज ऐसी अचानक क्या जरुरत पड़ गई ? "
सुमि बोली - " भाभीजी, मेरे गाँव की देवी को चुनरी और पूरा सुहाग चढ़ाना है। गाँव में हर कोई चढ़ाता है पर मेरे पास कभी इतने रुपये नहीं रहे। वो तो मैं थोडा-थोडा
आपके पास जमा करती रही तो अब पूजा चढ़ा पाउंगी। "
बरसों की साध पूरी हो पाने की आशा से सुमी का चेहरा ख़ुशी से दमक रहा था। दो दिन की छुट्टी का कह सुमी चली गई।
दुसरे दिन सुमि की छुट्टी याद कर, अख़बार में साड़ियों और गहनों के आकर्षक विज्ञापनों का मोह छोड़ किचन में जाने ही वाली थी कि सुमी की आवाज़ आई - " भाभीजी। "
मैंने चोंककर देखा, दरवाजे पर सुमी खड़ी थी। मैंने ख़ुशी मिश्रित आश्चर्य से पूछा - " अरे सुमी तुम ! तुम तो देवी को सुहाग चढ़ाने गाँव गई थी न। फिर क्या हुआ ? "
सुमी पास आकर बैठ गई। बोली - " गई तो थी पर एक ऐसी घटना घटी कि रास्ते से ही वापस लौटना पड़ा।"
" ऐसी क्या घटना घटी कि तुम अपनी पूजा भी न चढ़ा सकीं। ?
सुमी बोली - " पता नहीं देवी माँ क्या चाहती थीं ? कल शाम बस से गाँव के लिए निकले ही थे कि एक युवती और उसकी माँ जल्दी-जल्दी बस में चढ़े। मेरे पास थोडीसी
जगह थी , युवती मेरे पास आकर बैठ गई। युवती की माँ मुझसे बोली - मेरी बेटी ससुराल जा रही है, इसके बापू बीमार हैं इसलिए अकेली ही भेज रही हूँ। अगर आप इसका
जरा ख्याल रखेंगी तो मैं निश्चिन्त हो जाउंगी। मैंने स्नेह से लक्ष्मी के सिर पर हाथ फेरकर कहा - " आप चिंता न करें मैं भी उसी गाँव की हूँ इसे सुरक्षित घर पहुंचा दूँगी। "
" रास्ते में बातचीत करते हुए वह मुझसे काफी हिलमिल गई। अभी एक घंटा ही हुआ था कि एक बैलगाड़ी को बचाने में बस पेड़ से जा टकराई। लक्ष्मी का सिर खिड़की
से टकराया और खिड़की का शीशा टूटकर उसके माथे में धंस गया। माथे से खून तेजी से बहने लगा। लक्ष्मी आधी बेहोशी की हालत में थी। मैं तुरंत उसे लेकर उसी गाँव में
उतर गई। कुछ लोगों की मदद से उसे अस्पताल में भरती कराया। लक्ष्मी को टाँके लगाए, ग्लुकोस की बोतल चढ़ाई। अस्पताल वालों ने हज़ार रुपये मांगे। मैं दुविधा में पड़
गई। एक तरफ मेरी बरसों की साध थी, दूसरी और वह मासूम अपनी नीम बेहोशी की हालत में थी। या तो मैं पूजा चढ़ती या फिर उस मासूम का इलाज करवाती। मैं मन ही
मन गाँव की देवी माँ का स्मरण करने लगी। अचानक मुझे लगा जैसे देवी माँ का चेहरा लक्ष्मी के चेहरे में बदल गया और देवी माँ कहने लगी - सुमी तुम्हारी तरफ से मुझे
सुहाग की पूजा मिल चुकी है। किसीकी तकलीफ में मदद करना ही सच्ची पूजा है। "
" बस फिर मैंने लक्ष्मी का इलाज करवाया। उसकी माँ को बुलाकर लक्ष्मी को सोंपा। लक्ष्मी की माँ पैसे देने लगी पर मैंने मन ही मन गाँव की देवी को प्रणाम किया और
रुपये लेने से इंकार कर दिया और वापस लौट आई। मैंने ठीक किया न भाभीजी ? "
मैं अवाक् हो सुमी का चेहरा देखती रह गई। वह एक अनपढ़ महिला होकर कितने साधारण तरीके से एक असाधारण बात कह गई और मन में यह प्रेरणा जगा गई कि
किसी दुखी इन्सान का दुःख दूर करना ही सच्ची पूजा है।


16
एक जंगल था। उसमें में हर तरह के जानवर रहते थे। एक दिन जंगल के राजा का चुनाव हुआ। जानवरों ने शेर को छोड़कर एक बन्दर को राजा बना दिया। एक दिन शेर बकरी के बच्चे को उठा के ले गया। बकरी बन्दर राजा के पास गई और अपने बच्चे को छुड़ाने की मदद मांगी।बन्दर शेर की गुफा के पास गया और गुफा में बच्चे को देखा। पर अन्दर जाने की हिम्मत नहीं हुई। बन्दर राजा गुफा के पेड़ो पर उछाल लगाता रहा.. 2 दिन ऐसे ही उछाल कूद में गुजर गए। तब बकरी ने जाके पूछा .." राजा जी मेरा बच्चा कब लाओगे..?"
इस बन्दर राजा तिलमिलाते हुए बोले "-हमारी भागदौड़ में कोई कमी हो तो बताओ"

SAME CONDITION IN INDIA....

शेर चुनो..... वर्ना फिर कोई बन्दर सरकार चलाएगा!

17
एक आदमी ने देखा कि एक गरीब बच्चा उसकी कीमती कार
को बड़े गौर से निहार रहा है । आदमी ने उस लड़के को कार में बिठा लिया ।
लड़के ने कहा:- आपकी कार बहुतअच्छी है, बहुत कीमती होगी ना ?
.
.
आदमी:- हाँ, मेरे भाई ने मुझे गिफ्ट दी है ।
.
.
लड़का (कुछ सोचते हुए):- वाह ! आपके भाई कितने अच्छे हैं ।
.
.
आदमी:- मुझे पता है तुम क्यासोच रहे हो.. तुम भी ऐंसी कार चाहते हो ना ?
.
.
लड़का:- नहीं ! मैं आपके भाई की तरह बनना चाहता हूँ । "अपनी सोच हमेशा ऊँची रखें...
दूसरों की अपेक्षाओं से कहीं ज्यादा ऊँची"

18
बहुत समय पहले की बात है !! एक सरोवर में बहुत सारे मेंढक रहते थे !! सरोवर के बीचों -बीच एक बहुत पुराना धातु का खम्भा भी लगा हुआ था जिसे उस सरोवर को बनवाने वाले राजा ने लगवाया था !! खम्भा काफी ऊँचा था और उसकी सतह भी बिलकुल चिकनी थी !! एक दिन मेंढकों के दिमाग में आया कि क्यों ना एक रेस करवाई जाए !! रेस में भाग लेने वाली प्रतियोगीयों को खम्भे पर चढ़ना होगा और जो सबसे पहले एक ऊपर पहुच जाएगा वही विजेता माना जाएगा !!
रेस का दिन आ पंहुचा !! चारो तरफ बहुत भीड़ थी !! आस -पास के इलाकों से भी कई मेंढक इस रेस मेंहिस्सा लेने पहुचे !! माहौल में सरगर्मी थी !! हर तरफ शोर ही शोर था !!
रेस शुरू हुई, लेकिन खम्भे को देखकर भीड़ में एकत्र हुए किसी भी मेंढक को ये यकीन नहीं हुआ कि कोई भी मेंढक ऊपर तक पहुंच पायेगा !! हर तरफ यही सुनाई देता - "अरे ये बहुत कठिन है !! वो कभी भी ये रेस पूरी नहीं कर पायंगे !!
सफलता का तो कोई सवाल ही नहीं !! इतने चिकने खम्भे पर चढ़ा ही नहीं जा सकता !!" और यही हो भी रहा था, जो भी मेंढक कोशिश करता, वो थोड़ा ऊपर जाकर नीचे गिर जाता !! कई मेंढक दो -तीन बार गिरने के बावजूद अपने
प्रयास में लगे हुए थे !! पर भीड़ तो अभी भी चिल्लाये जा रही थी - "ये नहीं हो सकता , असंभव !!" और वो उत्साहित मेंढक
भी ये सुन-सुनकर हताश हो गए और अपना प्रयास छोड़ दिया !!
लेकिन उन्ही मेंढकों के बीच एक छोटा सा मेंढक था, जो बार -बार गिरने पर भी उसी जोश के साथ ऊपर चढ़ने में लगा हुआ था !! वो लगातार ऊपर की ओर बढ़ता रहा और अंततः वह खम्भे के ऊपर पहुचगया और इस रेस का विजेता बना !!
उसकी जीत पर सभी को बड़ा आश्चर्य हुआ !! सभी मेंढक उसे घेर कर खड़े हो गए और पूछने लगे - "तुमने ये असंभव काम कैसे कर दिखाया, भला तुम्हे अपना लक्ष्य प्राप्त करने की शक्ति कहाँ से मिली, ज़रा हमें भी तो बताओ कि तुमने ये विजय
कैसे प्राप्त की ??" तभी पीछे से एक आवाज़ आई - "अरे उससे क्या पूछते हो , वो तो बहरा है !!"

अक्सर हमारे अन्दर अपना लक्ष्य प्राप्त करने की काबीलियत होती है, पर हम अपने चारों तरफ मौजूद नकारात्मकता की वजह से खुद को कम आंक बैठते हैं और हमने जो बड़े-बड़े सपने देखे होते हैं उन्हें पूरा किये बिना ही अपनी ज़िन्दगी गुजार देते
हैं !! आवश्यकता इस बात की है हम हमें कमजोर बनाने वाली हर एक आवाज के प्रति बहरे और ऐसे हर एक दृश्य के प्रति अंधे हो जाएं !! और तब हमें सफलता के शिखर पर पहुँचने से कोई नहीं रोक पायेगा !!

19
एक दंपत्ति नें जब अपनी शादी की 25 वीं वर्षगांठ मनायी तो एक
पत्रकार उनका साक्षात्कार लेने पहुंचा.
वो दंपत्ति अपने शांतिपुर्ण और सुखमय वैवाहिक जीवन के लिये
प्रसिद्ध थे. उनके बीच कभी नाम मात्र का भी तकरार नहीं हुआ था.
लोग उनके इस सुखमय वैवाहिक जीवन का राज जानने को उत्सुक थे.
पति ने बताया : हमारी शादी के फ़ौरन बाद हम हनीमुन मनाने शिमला गये.
वहाँ हम लोगो ने घुड़सवारी की. मेरा घोड़ा बिल्कुल ठीक था लेकिन मेरी पत्नी का घोड़ा थोड़ा नखरैल
था. उसने दौड़ते दौड़ते अचानक मेरी पत्नी को गिरा दिया.
मेरी पत्नी उठी और घोड़े के पीठ पर हाथ फ़ेर कर कहा : "यह पहली बार है", और फ़िर
उस पर सवार हो गयी.
थोड़े दुर चलने के बाद घोड़े ने फ़िर उसे गिरा दिया. पत्नी ने घोड़े से फ़िर कहा : "यह दुसरी बार है", और फ़िर उस पर सवार हो गयी.
लेकिन थोड़े दुर जा कर घोड़े ने फ़िर उसे गिरा दिया. अबकी पत्नी ने कुछ नहीं कहा. चुपचाप अपना पर्स खोला, पिस्तौल निकाली और घोड़े को गोली मार दी.
मुझे देखकर काफ़ी गुस्सा आया और मैं जोर से पत्नी पर चिल्लाया :
"ये तुमने क्या किया, पागल हो गयी हो?"
पत्नी ने मेरी तरफ़ देखा और कहा : "ये पहली बार है" ;>
और बस उसके बाद से हमारी ज़िंदगी सुख और शांति से चल रही है.


20
एक बार अब्दुल कलाम जी का इंटरव्यू लिया जा रहा था. उनसे एक सवाल पूछा गया. और उस सवाल के जवाब को ही मैं यहाँ बता रहा हूँ -
सवाल: क्या आप हमें अपने व्यक्तिगत जीवन से कोई उदहरण दे सकते हैं कि हमें हार को किस तरह स्वीकार करना चाहिए? एक अच्छा लीडर हार को किस
तरह फेस करता हैं ?

अब्दुल कलाम जी :- मैं आपको अपने जीवन का ही एक अनुभव सुनाता हूँ. 1973 में मुझे भारत के सेटेलाईट लॉन्च प्रोग्राम, जिसे SLV-3 भी कहा जाता हैं, का हेड बनाया गया । हमारा लक्ष्य था की 1980 तक किसी भी तरह से हमारी सॅटॅलाइट ‘रोहिणी’ को अंतरिक्ष में भेज दिया जाए. जिसके लिए मुझे बहुत बड़ा बजट दिया गया और ह्यूमन रिसोर्सेज भी उपलब्ध कराया गया, पर मुझे इस बात से भी अवगत कराया गया था की निश्चित समय तक हमें येलक्ष्य पूरा करना ही हैं ।
हजारों लोगों ने बहुत मेहनत की । 1979 तक । शायद अगस्त का महिना था, हमें
लगा की अब हम पूरी तरह से तैयार हैं।
लॉन्च के दिन प्रोजेक्ट डायरेक्टर होने के नाते. मैं कंट्रोल रूम में लॉन्च बटन दबाने के लिए गया ।
लॉन्च से 4 मिनट पहले कंप्यूटर उन
चीजों की लिस्ट को जांचने लगा जो जरुरी थी.
ताकि कोई कमी न रह जाए. और फिर कुछ देर बाद कंप्यूटर ने लॉन्च रोक दिया l
वो बता रहा था की कुछ चीज़े आवश्यकता अनुसार सही स्तिथि पर नहीं हैं l
मेरे साथ ही कुछ एक्सपर्ट्स भी थे. उन्होंने मुझे विश्वास दिलाया की सब कुछ ठीक है, कोई गलती नहीं हुई हैं और फिर मैंने कंप्यूटर के निर्देश को बाईपास कर दिया और राकेट लॉन्च कर दिया.
पहली स्टेज तक सब कुछ ठीक रहा, पर सेकंड स्टेज तक गड़बड़ हो गयी. राकेट अंतरिक्ष में जाने के बजाय बंगाल की खाड़ी में जा गिरा । ये एक बहुत ही बड़ी असफ़लता थी ।
उसी दिन, इंडियन स्पेस रिसर्च आर्गेनाईजेशन (I.S.R.O.) के चेयरमैन प्रोफेसर सतीश धवन ने एक प्रेस कांफ्रेंस बुलाई । प्रोफेसर धवन, जो की संस्था के प्रमुख थे. उन्होंने मिशन की असफ़लता की सारी ज़िम्मेदारी खुद ले ली और कहा कि हमें कुछ और तकनीकी उपायों की जरुरत थी ।
पूरी देश दुनिया की मीडिया
वहां मौजूद थी । उन्होंने कहा की अगले साल तक ये कार्य संपन्न हो ही जायेगा ।
अगले साल जुलाई 1980 में हमने दोबारा कोशिश की । इस बार हम सफल हुए । पूरा देश गर्व महसूस कर रहा था ।
इस बार भी एक प्रेस कांफ्रेंस बुलाई गयी.. प्रोफेसर धवन ने मुझे साइड में बुलाया और कहा – ”इस बार तुम प्रेस कांफ्रेंस कंडक्ट करो.”
उस दिन मैंने एक बहुत ही जरुरी बात सीखी -
जब असफ़लता आती हैं तो एक लीडर उसकी पूरी जिम्मेदारी लेता हैं और जब सफ़लता मिलती है तो वो उसे अपने साथियों के साथ बाँट देता हैं ।


21

प्राथमिक पाठशाला की एक शिक्षिका ने अपने छात्रों को एक निबंध लिखने को कहा. विषय था "भगवान से आप क्या बनने का वरदान मांगेंगे"
इस निबंध ने उस क्लास टीचर को इतना भावुक कर दिया कि रोते-रोते उस निबंध को लेकर वह घर आ गयी.
पति ने रोने का कारण पूछा तो उसने जवाब दिया इसे पढ़ें, यह मेरे छात्रों में से एक ने यह निबंध लिखा है..
निबंध कुछ इस प्रकार था:-हे भगवान, मुझे एक टीवी बना दो क्योंकि तब मैं अपने परिवार में ख़ास जगह ले पाऊं
और बिना रूकावट या सवालों के मुझे ध्यान से सुना व देखा जायेगा.
जब मुझे कुछ होगा तब टीवी खराब की खलबली पूरे परिवार में सबको होगी और मुझे जल्द से जल्द सब ठीक हालत में देखने के लिए लालायित रहेंगे. वैसे मम्मी पापा के पास स्कूल और ऑफिस में बिलकुल टाइम नहीं है
लेकिन मैं जब अस्वस्थ्य रहूँगा तब मम्मी का चपरासी और पापा के ऑफिस का स्टाफ मुझे सुधरवाने के लिए दौड़ कर आएगा. ..दादा का पापा के पास कई बार फोन चला जायेगा कि टीवी जल्दी सुधरवा दो
दादी का फेवरेट सीरियल आने वाला हे मेरी दीदी भी मेरे साथ रहने के लिए हमेशा सबसे लडती रहेगी. पापा जब भी ऑफिस से थक कर आएँगे मेरे साथ ही अपना समय गुजारेंगे. मुझे लगता है कि परिवार का हर सदस्य कुछ न कुछ समय मेरे साथ अवश्य गुजारना चाहेगा मैं सबकी आँखों में कभी ख़ुशी के तो कभी गम के आंसू देख पाऊंगा.

आज मैं "स्कूल का बच्चा" मशीन बन गया हूँ. स्कूल में पढ़ाई घर में होमवर्क और ट्यूशन पे ट्यूशन ना तो मैं खेल पाता हूँ न ही पिकनिक जा पाता हूँ इसलिए भगवान मैं सिर्फ एक टीवी की तरह रहना चाहता हूँ, कम से कम रोज़ मैं अपने परिवार के सभी सदस्यों के साथ अपना बेशकीमती समय तो गुजार पाऊंगा. पति ने पूरा निबंध ध्यान से पढ़ा और अपनी राय जाहिर की.

हे भगवान ! कितने जल्लाद होंगे इस गरीब बच्चे के माता पिता !
पत्नी ने पति को करुण आँखों से देखा और कहा,......
यह निबंध हमारे बेटे ने लिखा है !!

No comments:

Post a Comment