Saturday 14 October 2017

"उठिये ब्रह्मर्षि"

"उठिये ब्रह्मर्षि"
(आधुनिक संदर्भों के लिये सटीक कथा।)
राजा विश्वामित्र सेना के साथ आखेट के लिए निकले थे। वन में घूमते हुए वे जब महर्षि वशिष्ठ के आश्रम के समीप पहुंच गए तब महर्षि ने उनका राजोचित आथित्य किया। आथित्य से विश्वामित्र आश्चर्यचकित रह गए तब उन्हें देखा की कामधेनु  नन्दिनी उस आथित्य के पीछे विद्यमान हैं, तब उन्होंने उस नंदिनी को लेने की कोशिश की ।अनेको योद्धाओं के साथ में युद्ध को तत्पर हो गए किंतु वशिष्ठ के धर्म दंड से सारे के सारे योद्धा मारे गए ।सारे अस्त्र खत्म होने के पश्चात विश्वामित्र को यह संकल्प हुआ कि वशिष्ठ के सारे दिव्यास्त्र मुझे प्राप्त करने हैं और वह कब प्राप्त होंगे जबकि मैं ब्राह्मण हो जाउंगा ।इस हेतु सैकड़ों वर्षो के उग्र तप से ब्रह्माजी ने प्रसन्न होकर के विश्वामित्र से कहा कि" वशिष्ठ आपको ब्रम्हर्षि मान ले तो आप ब्राह्मण हो जाएंगे।" विश्वामित्र के लिए वशिष्ठ से प्रार्थना करना तो बड़ा अपमानजनक था तब उन्होंने क्रोध में आकर के एक राक्षस को प्रेरित किया और वशिष्ठ के सौ पुत्र मरवा डाले। विश्वामित्र जी एक अलग ही हट पर उतर आए, तपोबल से उन्होंने नवीन सृष्टि प्रारंभ कर दी जिसके ब्रह्मा वे स्वयं बनना चाहते थे, अंत में ब्रह्मा जी ने आकर उन्हे रोका तब जाकर वो रुके ।
कोई उपाय सफल ना होता देखकर एक दिन विश्वामित्र जी ने वशिष्ठ जी को मार डालने का संकल्प लिया ।अस्त्र शस्त्र से सज्जित होकर रात्रि में छिपकर वशिष्ठ के आश्रम में गुप्त रुप से पहुंच गए ।
चांदनी रात थी , महर्षि वशिष्ठ अपनी पत्नी अरुंधति के साथ बैठे  चर्चा कर रहे थे ।कहने लगे कि यह चन्द्र की निर्मल ज्योत ऐसी लगती है मानो विश्वामित्र की तपस्या  चारों दिशाओं में आलोकित हो रही है।
अरुंधती ने कहा कि आप विश्वामित्र की तपस्या की इतनी प्रशंसा करते हैं तो उन्हें ब्रम्हर्षि क्यों नहीं मान लेते हैं।
वशिष्ठजी ने कहा कि मान लेने में अभी कुछ शेष है और अगर मैंने उन्होंने उन्हें ब्रम्हर्षि कह दिया तो उनके ब्रम्हर्षि होने की सारी संभावनाएं समाप्त हो जाएगी ।
विश्वामित्रजी यह वार्ता सुनकर तो जैसे सांप सूंघ गया।
उनके ह्रदय ने धिक्कारा की जिसे तू मारने आया है, जिससे रात दिन द्वेष करता है वह कौन है यह देख ।वह महापुरुष अपने सौं पुत्रों के हत्यारे की प्रशंसा एकांत में अपनी पत्नी से कर रहा है ।
विश्वामित्र ने सारे शस्त्र फेंक दिए ,वशिष्ठ के चरणों में गिर पड़े, उनका अहंकार समाप्त हो गया और तब महर्षि वशिष्ठ ने उनको अपने दोनों हाथों से उठाकर कहा -"उठिए ब्रम्हर्षि"।

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