Tuesday 9 May 2017

समर्थ रामदास

जय जय रघुवीर समर्थ ..
तीन बार इस आवाज़ को सुनकर काम में व्यस्त गृहणी झल्लाकर बाहर निकली और ...
" ये लो भिक्षा " कहकर क्रोध से कांपते हुये ..  कीचड़ से भीगा हुआ पोंछा उनके सिर पर दे मारा ..  सन्यासी ने गृहणी को आशीर्वाद दिया और चलते बने ... जब उस् महिला को पता चला कि वह भिक्षुक कोई और नहीं ..
स्वयं गुरु समर्थ रामदास थे ...
तो वह मर्माहत हो आत्मग्लानि से भर उठी .. वह ग्राम मंदिर की उस् कुटिया पर पहुची , जहाँ समर्थ गुरु ठहरे थे ...
देखती है वह गृहणी ... अनेक भक्तजनों से घिरे गुरु  समर्थ ...  उस् पोंछे को धोकर सुखाकर दीपक के लिये उसकी बत्तियां बना रहे ...
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अपमान , तिरस्कार , झेलकर भी गुरु समर्थ रामदास ने देश समाज को
छत्रपति शिवाजी महाराज जैसा राष्ट्रनायक दिया

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