Thursday, 22 June 2017

अहं ब्रह्मास्मि

एक शेरनी गर्भवती थी, गर्भ पूरा हो चुका था, शिकारियों से भागने के लिए टीले पर गयी, उसको एक टीले पर बच्चा हो गया। शेरनी छलांग लगाकर एक टीले से दूसरे टीले पर तो पहुंच गई लेकिन बच्चा नीचे फिसल गया……नीचे भेड़ों की एक कतार गुजरती थी, वह बच्चा उस झुंड में पहुंच गया। था तो शेर का बच्चा लेकिन फिर भी भेड़ों को दया आ गई और उसे अपने झुंड में मिला लिया….. भेड़ों ने उसे दूध पिलाया, पाला पोसा।

शेर अब जवान हो गया. शेर का बच्चा था तो शरीर से सिंह ही हुआ लेकिन भेड़ों के साथरहकर वह खुद को भेड़ मानकर ही जीने लगा। एक दिन उसके झुंड पर एक शेर ने धावा बोला. उसको देखकर भेड़ें भांगने लगीं, शेर की नजर भेड़ों के बीच चलते शेर पर पड़ी, दोनों एक दूसरे को आश्चर्य से देखते रहे……
सारी भेंड़े भाग गईं शेर अकेला रह गया, दूसरे शेर ने इस शेर को पकड़ लिया। यह शेर होकर भी रोने लगा, मिमियाया, गिड़गिड़ाया कि छोड़ दो मुझे.... मुझे जाने दो... मेरे सब संगी साथी जा रहे हैं.... मेरे परिवार से मुझे अलग न करो…..

दूसरे शेर ने फटकारा- "अरे मूर्ख! ये तेरे संगी साथी नहीं हैं, तेरा दिमाग फिर गया है, तू पागल हो गया है। परन्तु वह नहीं माना, वह तो स्वयं को भेंड मानकर भेलचाल में चलता था"।

बड़ा शेर उसे घसीटता गया नदी के किनारे ले गया। दोनों ने नदी में झांका। बूढ़ा सिंह बोला- नदी के पानी में अपना चेहरा देख और पहचान... उसने देखा तो पाया कि जिससे जीवन की भीख मांग रहा है वह तो उसके ही जैसा है। उसे बोध हुआ कि मैं तो मैं भेड़ नहीं हूं, मैं तो इस सिंह से भी ज्यादा बलशाली और तगड़ा हूं। उसका आत्म अभिमान जागा, आत्मबल से भऱकर उसने भीषण गर्जना की……
सिंहनाद था वह, ऐसी गर्जना उठी उसके भीतर से कि उससे पहाड़ कांप गए। बूढ़ा सिंह भी कांप गया।

उसने कहा- "अरे! इतने जोर से दहाड़ता है?" युवा शेर बोला- "उसने जन्म से कभी दहाड़ा ही नहीं, बड़ी कृपा तुम्हारी जो मुझे जगा दिया," इसी दहाड़ के साथ उसका जीवन रूपांतरित हो गया।

यही बात मनुष्य के संबंध में भी हैं। अगर मनुष्य यह देख ले कि जो कृष्ण और श्रीराम में हैं वह उसमें भी है।

फिर हमारे भीतर से भी वह गर्जना फूटेगी-
अहं ब्रह्मास्मि... मैं ब्रह्मा हूँ....गूंज उठेंगे पहाड़, कांप जाएंगे मन के भीतर घर बनाए सारे विकार और महसूस होगा अपने भीतर आनंद ही आनंद….

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