प्रेरणा भजन संग्रह
पवन सुत तुम कहाते हो हवा के संग चलते हो .
नहीं तुम सा यहां दूजा गज़ब के काम करते हो .
समन्दर लंघ के भगवन जला डाला था लंका को-
बलायें दूर करके सब सभी के दु:ख हरते हो..
राम के भक्त ओ हनुमत सिया के तुम दुलारे हो.
उन्ही का काज करने को जमीं पर आ पधारे हो.
तुम्हीं नें चीर कर सीना दिखा डाला जमाने को-
बसे सिय राम दिल में हैं उन्हीं के तुम सहारे हो ..
शरण अम्बरीष तेरे है हमें आशीष दे देना.
बुराई के सदा भगवन दसों तुम शीश ले लेना.
चरण गहकर तुम्हारी वन्दना हम करते सदियों से-
प्रभु अपना हमें लेना भुजायें बीस ले लेना..
नमामि अम्बे दीन वत्सले
नमामि अम्बे दीन वत्सले तुम्हे बिठाऊँ हृदय सिंहासन .
तुम्हे पहनाऊँ भक्ति पादुका नमामि अम्बे भवानि अम्बे ..
श्रद्धा के तुम्हे फूल चढ़ाऊँ श्वासों की जयमाल पहनाऊँ .
दया करो अम्बिके भवानी नमामि अम्बे
बसो हृदय में हे कल्याणी सर्व मंगल मांगल्य भवानी .
दया करो अम्बिके भवानी नमामि अम्बे
जय अम्बे जय जय दुर्गे
जय अम्बे जय जय दुर्गे दयामयी कल्याण करो ..
आ जाओ माँ आ जाओ आ कर दरस दिखा जाओ .
जय अम्बे
कब से द्वार तिहारे ठाड़े मैया मेरी मुझ पर कृपा करो .
जय अम्बे
तेरे दरस के प्यासे नैना दरस हमें दिखला जाओ .
जय अम्बे
मन की तरंग मार लो बस हो गय भजन ।
आदत बुरी सुधार लो बस हो गया भजन ॥
आऐ हो तुम कहाँ से जाओगे तुम जहाँ ।
इतना सा बस विचार लो बस हो गया भजन ॥
कोई तुमहे बुरा कहे तुम सुन करो क्षमा ।
वाणी का स्वर संभार लो बस हो गया भजन ॥
नेकी सबही के साथ में बन जाये तो करो ।
मत सिर बदी का भार लो बस हो गया भजन ॥
कहना है साफ साफ ये सदगुरु कबीर का ।
निज दोष को निहार लो बस हो गया भजन ॥
बीत गये दिन
बीत गये दिन भजन बिना रे .
भजन बिना रे, भजन बिना रे ..
बाल अवस्था खेल गवांयो .
जब यौवन तब मान घना रे ..
लाहे कारण मूल गवा.यो .
अजहुं न गयी मन की तृष्णा रे ..
कहत कबीर सुनो भई साधो .
पार उतर गये संत जना रे ..
जब से लगन लगी प्रभु तेरी
जब से लगन लगी प्रभु तेरी सब कुछ मैं तो भूल गयी हूँ ..
बिसर गयी क्या था मेरा बिसर गयी अब क्या है मेरा .
अब तो लगन लगी प्रभु तेरी तू ही जाने क्या होगा ..
जब मैं प्रभु में खो जाती हूं मेघ प्रेम के घिर आते हैं .
मेरे मन मंदिर मे प्रभु के चारों धाम समा जाते हैं ..
बार बार तू कहता मुझसे जग की सेवा कर तू मन से .
इसी में मैं हूं सभी में मैं हूं तू देखे तो सब कुछ मैं हूं ..
भगवान मेरी नैया
भगवान मेरी नैया उस पार लगा देना .
अब तक तो निभाया है आगे भी निभा देना ..
सम्भव है झंझटों में मैं तुम को भूल जाऊँ .
पर नाथ कहीं तुम भी मुझको न भुला देना ..
तुम देव मैं पुजारी तुम ईश मैं उपासक .
यह बात सच है तो फिर सच कर के दिखा देना ..
शरण में आये हैं
शरण में आये हैं हम तुम्हारी
दया करो हे दयालु भगवन .
सम्हालो बिगड़ी दशा हमारी
दया करो हे दयालु भगवन ..
न हम में बल है न हम में शक्ति
न हम में साधन न हम में भक्ति .
तभी कहाओगे ताप हारी
दया करो हे दयालु भगवन ..
जो तुम पिता हो तो हम हैं बालक
जो तुम हो स्वामी तो हम हैं सेवक .
जो तुम हो ठाकुर तो हम पुजारी
दया करो हे दयालु भगवन ..
प्रदान कर दो महान शक्ति
भरो हमारे में ज्ञान भक्ति .
तुम्हारे दर के हैं हम भिखारी
दया करो हे दयालु भगवन ..
रे मन प्रभु से
रे मन प्रभु से प्रीत करो .
प्रभु की प्रेम भक्ति श्रद्धा से अपना आप भरो ..
ऐसी प्रीत करो तुम प्रभु से प्रभु तुम माहिं समाये .
बने आरती पूजा जीवन रसना हरि गुण गाये .
राम नाम आधार लिये तुम इस जग में विचरो ..
सुर की गति मैं
सुर की गति मैं क्या जानूँ .
एक भजन करना जानूँ ..
अर्थ भजन का भी अति गहरा
उस को भी मैं क्या जानूँ ..
प्रभु प्रभु प्रभु कहना जानूँ
नैना जल भरना जानूँ ..
गुण गाये प्रभु न्याय न छोड़े
फिर तुम क्यों गुण गाते हो
मैं बोला मैं प्रेम दीवाना
इतनी बातें क्या जानूँ ..
प्रभु प्रभु प्रभु कहना जानूँ
नैना जल भरना जानूँ ..
फुल्वारी के फूल फूल के
किस्के गुन नित गाते हैं .
जब पूछा क्या कुछ पाते हो
बोल उठे मैं क्या जानूँ ..
प्रभु प्रभु प्रभु कहना जानूँ
नैना जल भरना जानूँ ..
हर सांस में हर बोल में
हर सांस में हर बोल में हरि नाम की झंकार है .
हर नर मुझे भगवान है हर द्वार मंदिर द्वार है ..
ये तन रतन जैसा नहीं मन पाप का भण्डार है .
पंछी बसेरे सा लगे मुझको सकल संसार है ..
हर डाल में हर पात में जिस नाम की झंकार है .
उस नाथ के द्वारे तू जा होगा वहीं निस्तार है ..
अपने पराये बन्धुओं का झूठ का व्यवहार है .
मनके यहां बिखरे हुये प्रभु ने पिरोया तार है ..
प्रभु को बिसार
प्रभु को बिसार किसकी आराधना करूं मैं .
पा कल्पतरु किसीसे क्या याचना करूं मैं ..
मोती मिला मुझे जब मानस के मानसर में .
कंकड़ बटोरने की क्यों चाहना करूं मैं ..
मुझको प्रकाश प्रतिपल आनंद आंतरिक है .
जग के क्षणिक सुखों की क्या कामना करूं मैं ..
किसकी शरण में जाऊं
किसकी शरण में जाऊं अशरण शरण तुम्हीं हो ..
गज ग्राह से छुड़ाया प्रह्लाद को बचाया .
द्रौपदी का पट बढ़ाया निर्बल के बल तुम्हीं हो ..
अति दीन था सुदामा आया तुम्हारे धामा .
धनपति उसे बनाया निर्धन के धन तुम्हीं हो ..
तारा सदन कसाई अजामिल की गति बनाई .
गणिका सुपुर पठाई पातक हरण तुम्हीं हो ..
मुझको तो हे बिहारी आशा है बस तुम्हारी .
काहे सुरति बिसारी मेरे तो एक तुम्हीं हो ..
पितु मातु सहायक स्वामी
पितु मातु सहायक स्वामी सखा तुमही एक नाथ हमारे हो .
जिनके कछु और आधार नहीं तिन्ह के तुमही रखवारे हो ..
सब भांति सदा सुखदायक हो दुःख दुर्गुण नाशनहारे हो .
प्रतिपाल करो सिगरे जग को अतिशय करुणा उर धारे हो ..
भुलिहै हम ही तुमको तुम तो हमरी सुधि नाहिं बिसारे हो ..
उपकारन को कछु अंत नही छिन ही छिन जो विस्तारे हो .
महाराज! महा महिमा तुम्हरी समुझे बिरले बुधवारे हो .
शुभ शांति निकेतन प्रेम निधे मनमंदिर के उजियारे हो ..
यह जीवन के तुम्ह जीवन हो इन प्राणन के तुम प्यारे हो .
तुम सों प्रभु पाइ प्रताप हरि केहि के अब और सहारे हो ..
तुम्ही हो माता पिता
तुम्ही हो माता पिता तुम्ही हो तुम्ही हो बंधु सखा तुम्ही हो ..
तुम्ही हो साथी तुम्ही सहारे कोई न अपना सिवा तुम्हारे .
तुम्ही हो नैय्या तुम्ही खेवैय्या तुम्ही हो बंधु सखा तुम्ही हो ..
जो कल खिलेंगे वो फूल हम हैं तुम्हारे चरणों की धूल हम हैं .
दया की दृष्टि सदा ही रखना तुम्ही हो बंधु सखा तुम्ही हो ..
तुम तजि और कौन पै जाऊं
तुम तजि और कौन पै जाऊं .
काके द्वार जाइ सिर नाऊं पर हाथ कहां बिकाऊं ..
ऐसो को दाता है समरथ जाके दिये अघाऊं .
अंतकाल तुम्हरो सुमिरन गति अनत कहूं नहिं पाऊं ..
रंक अयाची कियू सुदामा दियो अभय पद ठाऊं .
कामधेनु चिंतामणि दीन्हो कलप वृक्ष तर छाऊं ..
भवसमुद्र अति देख भयानक मन में अधिक डराऊं .
कीजै कृपा सुमिरि अपनो पन सूरदास बलि जाऊं ..
रंगवाले देर क्या है
रंगवाले देर क्या है मेरा चोला रंग दे .
और सारे रंग धो कर रंग अपना रंग दे ..
कितने ही रंगो से मैने आज तक है रंगा इसे .
पर वो सारे फीके निकले तू ही गाढ़ा रंग दे ..
तूने रंगे हैं ज़मीं और आसमां जिस रंग से .
बस उसी रंग से तू आख़्हिर मेरा चोला रंग दे ..
मैं तो जानूंगा तभी तेरी ये रंगन्दाज़ियां .
जितना धोऊं उतना चमके अब तो ऐसा रंग दे ..
हे जगत्राता
हे जगत्राता विश्वविधाता हे सुखशांतिनिकेतन हे .
प्रेमके सिंधो दीनके बंधो दुःख दरिद्र विनाशन हे .
नित्य अखंड अनंत अनादि पूर्ण ब्रह्मसनातन हे .
जगाअश्रय जगपति जगवंदन अनुपम अलख निरंजन हे .
प्राण सखा त्रिभुवन प्रतिपालक जीवन के अवलंबन हे .
दरशन दीजो आय प्यारे
दरशन दीजो आय प्यारे तुम बिनो रह्यो ना जाय ..
जल बिनु कमल चंद्र बिनु रजनी वैसे तुम देखे बिनु सजनी .
आकुल व्याकुल फिरूं रैन दिन विरह कलेजो खाय ..
दिवस न भूख नींद नहीं रैना मुख सों कहत न आवे बैना .
कहा कहूँ कछु समुझि न आवे मिल कर तपत बुझाय ..
क्यूं तरसाओ अंतरयामी आय मिलो किरपा करो स्वामी .
मीरा दासी जनम जनम की पड़ी तुम्हारे पाय ..
नैया पड़ी मंझधार
नैया पड़ी मंझधार गुरु बिन कैसे लागे पार ..
साहिब तुम मत भूलियो लाख लो भूलग जाये .
हम से तुमरे और हैं तुम सा हमरा नाहिं .
अंतरयामी एक तुम आतम के आधार .
जो तुम छोड़ो हाथ प्रभुजी कौन उतारे पार ..
गुरु बिन कैसे लागे पार ..
मैन अपराधी जन्म को मन में भरा विकार .
तुम दाता दुख भंजन मेरी करो सम्हार .
अवगुन दास कबीर के बहुत गरीब निवाज़ .
जो मैं पूत कपूत हूं कहौं पिता की लाज ..
गुरु बिन कैसे लागे पार ..
तूने रात गँवायी
तूने रात गँवायी सोय के दिवस गँवाया खाय के .
हीरा जनम अमोल था कौड़ी बदले जाय ..
सुमिरन लगन लगाय के मुख से कछु ना बोल रे .
बाहर का पट बंद कर ले अंतर का पट खोल रे .
माला फेरत जुग हुआ गया ना मन का फेर रे .
गया ना मन का फेर रे .
हाथ का मनका छँड़ि दे मन का मनका फेर ..
दुख में सुमिरन सब करें सुख में करे न कोय रे .
जो सुख में सुमिरन करे तो दुख काहे को होय रे .
सुख में सुमिरन ना किया दुख में करता याद रे .
दुख में करता याद रे .
कहे कबीर उस दास की कौन सुने फ़रियाद ..
नैनहीन को राह दिखा
नैन हीन को राह दिखा प्रभु .
पग पग ठोकर खाऊँ मैं ..
तुम्हरी नगरिया की कठिन डगरिया .
चलत चलत गिर जाऊँ मैन ..
चहूँ ओर मेरे घोओर अंधेरा .
भूल न जाऊँ द्वार तेरा .
एक बार प्रभु हाथ पकड़ लो . ( ३)
मन का दीप जलाऊँ मैं ..
प्रभु हम पे कृपा
प्रभु हम पे कृपा करना प्रभु हम पे दया करना .
वैकुण्ठ तो यहीं है इसमें ही रहा करना ..
हम मोर बन के मोहन नाचा करेंगे वन में .
तुम श्याम घटा बनकर उस बन में उड़ा करना ..
होकर के हम पपीहा पी पी रटा करेंगे .
तुम स्वाति बूंद बनकर प्यासे पे दया करना ..
हम राधेश्याम जग में तुमको ही निहारेंगे .
तुम दिव्य ज्योति बन कर नैनों में बसा करना ..
तेरे दर को छोड़ के
तेरे दर को छोड़ के किस दर जाऊं मैं .
देख लिया जग सारा मैने तेरे जैसा मीत नहीं .
तेरे जैसा प्रबल सहारा तेरे जैसी प्रीत नहीं .
किन शब्दों में आपकी महिमा गाऊं मैं ..
अपने पथ पर आप चलूं मैं मुझमे इतना ज्ञान नहीं .
हूँ मति मंद नयन का अंधा भला बुरा पहचान नहीं .
हाथ पकड़ कर ले चलो ठोकर खाऊं मैं ..
उद्धार करो भगवान
उद्धार करो भगवान तुम्हरी शरण पड़े .
भव पार करो भगवान तुम्हरी शरण पड़े ..
कैसे तेरा नाम धियायें कैसे तुम्हरी लगन लगाये .
हृदय जगा दो ज्ञान तुम्हरी शरण पड़े ..
पंथ मतों की सुन सुन बातें द्वार तेरे तक पहुंच न पाते .
भटके बीच जहान तुम्हरी शरण पड़े ..
तू ही श्यामल कृष्ण मुरारी राम तू ही गणपति त्रिपुरारी .
तुम्ही बने हनुमान तुम्हरी शरण पड़े ..
ऐसी अन्तर ज्योति जगाना हम दीनों को शरण लगाना .
हे प्रभु दया निधान तुम्हरी शरण पड़े ..
मैली चादर ओढ़ के
मैली चादर ओढ़ के कैसे द्वार तुम्हारे आऊँ .
हे पावन परमेश्वर मेरे मन ही मन शरमाऊं ..
तूने मुझको जग में भेजा निर्मल देकर काया .
आकर के संसार में मैंने इसको दाग लगाया .
जनम जनम की मैली चादर कैसे दाग छुड़ाऊं ..
निर्मल वाणी पाकर मैने नाम न तेरा गाया .
नयन मूंद कर हे परमेश्वर कभी न तुझको ध्याया .
मन वीणा की तारें टूटीं अब क्या गीत सुनाऊं ..
इन पैरों से चल कर तेरे मन्दिर कभी न आया .
जहां जहां हो पूजा तेरी कभी न शीश झुकाया .
हे हरि हर मैं हार के आया अब क्या हार चढ़ाऊं ..
शंकर शिव शम्भु साधु
शंकर शिव शम्भु साधु संतन हितकारी ..
लोचन त्रय अति विशाल सोहे नव चन्द्र भाल .
रुण्ड मुण्ड व्याल माल जटा गंग धारी ..
पार्वती पति सुजान प्रमथराज वृषभयान .
सुर नर मुनि सेव्यमान त्रिविध ताप हारी ..
हमको मनकी शक्ति
हमको मनकी शक्ति देना, मन विजय करें .
दूसरोंकी जयसे पहले, खुदकी जय करें .
हमको मनकी शक्ति देना ..
भेदभाव अपने दिलसे, साफ कर सकें .
दूसरोंसे भूल हो तो, माफ कर सकें .
झूठसे बचे रहें, सचका दम भरें .
दूसरोंकी जयसे पहले,
मुश्किलें पडें तो हमपे, इतना कर्म कर .
साथ दें तो धर्मका, चलें तो धर्म पर .
खुदपे हौसला रहे, सचका दम भरें .
दूसरोंकी जयसे पहले,
गौरीनंदन गजानना
गौरीनंदन गजानना हे दुःखभंजन गजानना .
मूषक वाहन गजानना बुद्धीविनायक गजानना .
विघ्नविनाशक गजानना शंकरपूत्र गजानना .
ऐ मालिक तेरे बंदे हम
ऐ मालिक तेरे बंदे हम
ऐसे हो हमारे करम
नेकी पर चलें
और बदी से टलें
ताकि हंसते हुये निकले दम
जब ज़ुलमों का हो सामना
तब तू ही हमें थामना
वो बुराई करें
हम भलाई भरें
नहीं बदले की हो कामना
बढ़ उठे प्यार का हर कदम
और मिटे बैर का ये भरम
नेकी पर चलें
ये अंधेरा घना छा रहा
तेरा इनसान घबरा रहा
हो रहा बेखबर
कुछ न आता नज़र
सुख का सूरज छिपा जा रहा
है तेरी रोशनी में वो दम
जो अमावस को कर दे पूनम
नेकी पर चलें
बड़ा कमज़ोर है आदमी
अभी लाखों हैं इसमें कमीं
पर तू जो खड़ा
है दयालू बड़ा
तेरी कृपा से धरती थमी
दिया तूने हमें जब जनम
तू ही झेलेगा हम सबके ग़म
नेकी पर चलें
ज्योत से ज्योत जगाते
ज्योत से ज्योत जगाते चलो प्रेम की गंगा बहाते चलो
राह में आए जो दीन दुखी सबको गले से लगाते चलो ..
जिसका न कोई संगी साथी ईश्वर है रखवाला
जो निर्धन है जो निर्बल है वह है प्रभू का प्यारा
प्यार के मोती लुटाते चलो, प्रेम की गंगा
आशा टूटी ममता रूठी छूट गया है किनारा
बंद करो मत द्वार दया का दे दो कुछ तो सहारा
दीप दया का जलाते चलो, प्रेम की गंगा
छाया है छाओं और अंधेरा भटक गैइ हैं दिशाएं
मानव बन बैठा है दानव किसको व्यथा सुनाएं
धरती को स्वर्ग बनाते चलो, प्रेम की गंगा
अल्लाह तेरो नाम
अल्लाह तेरो नाम, ईश्वर तेरो नाम
अल्लाह तेरो नाम, ईश्वर तेरो नाम
सबको सन्मति दे भगवान
सबको सन्मति दे भगवान
अल्लाह तेरो नाम ...
माँगों का सिन्दूर ना छूटे
माँगों का
सिन्दूर ना छूटे
माँ बहनो की आस ना टूटे
माँ बहनो की
आस ना टूटे
देह बिना, दाता, देह बिना
भटके ना प्राण
सबको सन्मति दे भगवान
अल्लाह तेरो नाम, ईश्वर तेरो नाम,
ओ सारे जग के रखवाले
ओ सारे जग के रखवाले
निर्बल को बल देने वाले
निर्बल को बल देने वाले
बलवानो को,
ओ, बलवानो को देदे ज्ञान
सबको सन्मति दे भगवान
अल्लाह तेरो नाम
ईश्वर तेरो नाम
अल्लाह तेरो नाम
ईश्वर तेरो नाम
अल्लाह तेरो नाम
जैसे सूरज की गर्मी
जैसे सूरज की गर्मी से जलते हुए तन को
मिल जाये तरुवर कि छाया
ऐसा ही सुख मेरे मन को मिला है
मैं जबसे शरण तेरी आया, मेरे राम
भटका हुआ मेरा मन था कोई
मिल ना रहा था सहारा
लहरों से लड़ती हुई नाव को
जैसे मिल ना रहा हो किनारा, मिल ना रहा हो किनारा
उस लड़खड़ाती हुई नाव को जो
किसी ने किनारा दिखाया
ऐसा ही सुख ...
शीतल बने आग चंदन के जैसी
राघव कृपा हो जो तेरी
उजियाली पूनम की हो जाएं रातें
जो थीं अमावस अंधेरी, जो थीं अमावस अंधेरी
युग युग से प्यासी मरुभूमि ने
जैसे सावन का संदेस पाया
ऐसा ही सुख ...
जिस राह की मंज़िल तेरा मिलन हो
उस पर कदम मैं बढ़ाऊं
फूलों में खारों में, पतझड़ बहारों में
मैं न कभी डगमगाऊं, मैं न कभी डगमगाऊं
पानी के प्यासे को तक़दीर ने
जैसे जी भर के अमृत पिलाया
ऐसा ही सुख ...
मन तड़पत हरि दरसन
मन तड़पत हरि दरसन को आज
मोरे तुम बिन बिगड़े सकल काज
आ, विनती करत, हूँ, रखियो लाज, मन तड़पत...
तुम्हरे द्वार का मैं हूँ जोगी
हमरी ओर नज़र कब होगी
सुन मोरे व्याकुल मन की बात, तड़पत हरी दरसन...
बिन गुरू ज्ञान कहाँ से पाऊँ
दीजो दान हरी गुन गाऊँ
सब गुनी जन पे तुम्हारा राज, तड़पत हरी...
मुरली मनोहर आस न तोड़ो
दुख भंजन मोरे साथ न छोड़ो
मोहे दरसन भिक्षा दे दो आज दे दो आज, ...
न मैं धन चाहूँ
न मैं धन चाहूँ, न रतन चाहूँ
तेरे चरणों की धूल मिल जाये
तो मैं तर जाऊँ, हाँ मैं तर जाऊँ
हे राम तर जाऊँ...
मोह मन मोहे, लोभ ललचाये
कैसे कैसे ये नाग लहराये
इससे पहले कि मन उधर जाये
मैं तो मर जाऊँ, हाँ मैं मर जाऊँ
हे राम मर जाऊँ
थम गया पानी, जम गयी कायी
बहती नदिया ही साफ़ कहलायी
मेरे दिल ने ही जाल फैलाये
अब किधर जाऊँ, मैं किधर जाऊँ - २
अब किधर जाऊँ, मैं किधर जाऊँ...
लाये क्या थे जो लेके जाना है
नेक दिल ही तेरा खज़ाना है
शाम होते ही पंछी आ जाये
अब तो घर जाऊँ अपने घर जाऊँ
अब तो घर जाऊँ अपने घर जाऊँ...
रघुपति राघव
रघुपति राघव राजा राम
पतित पावन सीता राम
सीता राम सीता राम
भज प्यारे तू सीता राम
रघुपति ...
ईश्वर अल्लाह तेरे नाम
सबको सन्मति दे भगवान
रघुपति ...
रात को निंदिया दिन तो काम
कभी भजोगे प्रभु का नाम
करते रहिये अपने काम
लेते रहिये हरि का नाम
रघुपति ...
तोरा मन दर्पण कहलाये
तोरा मन दर्पण कहलाये - २
भले बुरे सारे कर्मों को, देखे और दिखाये
तोरा मन दर्पण कहलाये - २
मन ही देवता, मन ही ईश्वर, मन से बड़ा न कोय
मन उजियारा जब जब फैले, जग उजियारा होय
इस उजले दर्पण पे प्राणी, धूल न जमने पाये
तोरा मन दर्पण कहलाये - २
सुख की कलियाँ, दुख के कांटे, मन सबका आधार
मन से कोई बात छुपे ना, मन के नैन हज़ार
जग से चाहे भाग लो कोई, मन से भाग न पाये
तोरा मन दर्पण कहलाये - २
वैष्णव जन तो
वैष्णव जन तो तेने कहिये जे
पीड़ परायी जाणे रे
पर दुख्खे उपकार करे तोये
मन अभिमान ना आणे रे
वैष्णव जन तो तेने कहिये जे ...
सकळ लोक मान सहुने वंदे
नींदा न करे केनी रे
वाच काछ मन निश्चळ राखे
धन धन जननी तेनी रे
वैष्णव जन तो तेने कहिये जे ...
सम दृष्टी ने तृष्णा त्यागी
पर स्त्री जेने मात रे
जिह्वा थकी असत्य ना बोले
पर धन नव झाली हाथ रे
वैष्णव जन तो तेने कहिये जे ...
मोह माया व्यापे नही जेने
द्रिढ़ वैराग्य जेना मन मान रे
राम नाम सुन ताळी लागी
सकळ तिरथ तेना तन मान रे
वैष्णव जन तो तेने कहिये जे ...
वण लोभी ने कपट- रहित छे
काम क्रोध निवार्या रे
भणे नरसैय्यो तेनुन दर्शन कर्ता
कुळ एकोतेर तारया रे
वैष्णव जन तो तेने कहिये जे ...
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