चतुर्वेद
वेद चार हैं-
1- ऋग्वेद
2- यजुर्वेद
3- सामवेद
4- अथर्ववेद
प्रत्येक वेद
की अनेक शाखाएं बतायी गयी हैं। यथा ऋग्वेद की 21, यजुर्वेद की 101,
सामवेद की 1001, अर्थववेद की 91 इस प्रकार 1131
शाखाएं
वेद की प्रत्येक शाखा की वैदिक शब्द राशि चार
भागों में उपलब्ध है। 1. संहिता 2. ब्राह्मण 3. आरण्यक 4. उपनिषद्।
1. ऋग्वेद - ऋग्वेद को चारों वेदों में सबसे प्राचीन माना
जाता है। सृष्टि के अनेक रहस्यों का इनमें उद्घाटन किया गया है। पहले इसकी 21 शाखाएं थीं परन्तु वर्तमान में इसकी शाकल शाखा
का ही प्रचार है।
2. यजुर्वेद - इसमें गद्य और पद्य दोनों ही हैं। इसमें यज्ञ
कर्म की प्रधानता है। प्राचीन काल में इसकी 101 शाखाएं थीं परन्तु वर्तमान में केवल पांच शाखाएं हैं - काठक, कपिष्ठल, मैत्रायणी, तैत्तिरीय, वाजसनेयी। इस वेद के दो भेद हैं - कृष्ण यजुर्वेद और शुक्ल यजुर्वेद।
3. सामवेद - यह गेय ग्रन्थ है। इसमें गान विद्या का भण्डार
है, यह भारतीय संगीत का मूल है। ऋचाओं के गायन को
ही साम कहते हैं। इसकी 1001
शाखाएं थीं।
परन्तु आजकल तीन ही प्रचलित हैं - कोथुमीय, जैमिनीय और राणायनीय
4. अथर्ववेद - इसमें गणित, विज्ञान, आयुर्वेद, समाज शास्त्र, कृषि विज्ञान, आदि अनेक विषय वर्णित हैं। कुछ लोग इसमें मंत्र-तंत्र भी खोजते हैं। यह वेद
जहां ब्रह्म ज्ञान का उपदेश करता है, वहीं मोक्ष का उपाय भी बताता है। इसे ब्रह्म वेद भी कहते हैं। इसमें मुख्य रूप
में अथर्वण और आंगिरस ऋषियों के मंत्र होने के कारण अथर्व आंगिरस भी कहते हैं। यह 20 काण्डों में विभक्त है।
वेदांग
वेदांग हिन्दू धर्म ग्रन्थ हैं। शिक्षा, कल्प, व्याकरण, ज्योतिष, छन्द और निरूक्त - ये छ:
वेदांग है।
1.
शिक्षा - इसमें वेद मन्त्रों के उच्चारण
करने की विधि बताई गई है।
2.
कल्प - वेदों के किस मन्त्र का प्रयोग किस
कर्म में करना चाहिये, इसका
कथन किया गया है। इसकी तीन शाखायें हैं- श्रौत सूत्र, गृह्य सूत्र और धर्मसूत्र।
3.
व्याकरण - इससे प्रकृति और प्रत्यय आदि के
योग से शब्दों की सिद्धि और उदात्त, अनुदात्त तथा स्वरित स्वरों की
स्थिति का बोध होता है।
4.
निरुक्त - वेदों में जिन शब्दों का प्रयोग
जिन-जिन अर्थों में किया गया है, उनके उन-उन अर्थों का निश्चयात्मक
रूप से उल्लेख निरूक्त में किया गया है।
5.
ज्योतिष - इससे वैदिक यज्ञों और अनुष्ठानों
का समय ज्ञात होता है। यहाँ ज्योतिष से मतलब `वेदांग ज्योतिष´ से है।
6.
छन्द - वेदों में प्रयुक्त गायत्री, उष्णिक आदि छन्दों की रचना का ज्ञान छन्दशास्त्र से होता है।
छन्द
को वेदों का पाद, कल्प
को हाथ, ज्योतिष
को नेत्र, निरुक्त
को कान, शिक्षा
को नाक, और
व्याकरण को मुख कहा गया है।
उपनिषद्
उपनिषद् हिन्दू धर्म के
महत्त्वपूर्ण श्रुति धर्मग्रन्थ हैं । ये वैदिक
वांग्मय के अभिन्न भाग हैं । इनमें परमेश्वर, परमात्मा-ब्रह्म और आत्मा के स्वभाव और
सम्बन्ध का बहुत ही दार्शनिक और ज्ञानपूर्वक वर्णन दिया गया है । उपनिषद ही समस्त
भारतीय दर्शनों के मूल स्त्रोत हैं, चाहे वो वेदान्त हो या सांख्य या जैन धर्म या बौद्ध धर्म । उपनिषदों को
स्वयं भी वेदान्त कहा गया है ।
वेद के चार भाग हैं - संहिता, ब्राह्मण, आरण्यक और उपनिषद् ।
(१)
संहिता में वैदिक देवी देवताओं की स्तुति के मंत्र हैं;
(२)
ब्राह्मण में वैदिक कर्मकाण्ड और यज्ञों का वर्णन है;
(३)
आरण्यक में कर्मकाण्ड और यज्ञों की रूपक कथाएँ और तत् सम्बन्धी दार्शनिक
व्याख्याएँ हैं; और
(४)
उपनिषद् में वास्तविक वैदिक दर्शन का सार है।
१०८ उपनिषदों को निम्नलिखित श्रेणियों में विभाजित किया जाता
है-
(१) ऋग्वेदीय -- १० उपनिषद्
(२) शुक्ल यजुर्वेदीय -- १९
उपनिषद्
(३) कृष्ण यजुर्वेदीय -- ३२
उपनिषद्
(४) सामवेदीय -- १६ उपनिषद्
(५) अथर्ववेदीय -- ३१ उपनिषद्
कुल -- १०८
उपनिषद्
इनके
अतिरिक्त नारायण, नृसिंह, रामतापनी तथा गोपाल चार
उपनिषद् और हैं।
मुख्य उपनिषद
विषय
की गम्भीरता तथा विवेचन की विशदता के कारण १३ उपनिषद् विशेष मान्य तथा प्राचीन
माने जाते हैं।
जगद्गुरु आदि शंकराचार्य ने १० पर अपना भाष्य दिया
है-
(१) ईश, (२) ऐतरेय (३) कठ (४) केन (५) छांदोग्य (६) प्रश्न (७) तैत्तिरीय (८) बृहदारण्यक (९) मांडूक्य और (१०) मुंडक।
(१) ईश, (२) ऐतरेय (३) कठ (४) केन (५) छांदोग्य (६) प्रश्न (७) तैत्तिरीय (८) बृहदारण्यक (९) मांडूक्य और (१०) मुंडक।
उन्होने
निम्न तीन को प्रमाण कोटि में रखा है-
(१) श्वेताश्वतर (२) कौषीतकि तथा (३) मैत्रायणी।
(१) श्वेताश्वतर (२) कौषीतकि तथा (३) मैत्रायणी।
अन्य
उपनिषद् तत्तद् देवता विषयक होने के कारण 'तांत्रिक' माने जाते हैं। ऐसे
उपनिषदों में शैव, शाक्त, वैष्णव तथा योग विषयक
उपनिषदों की प्रधान गणना है।
पुराण
पुराण, हिंदुओं के धर्मसंबंधी
आख्यानग्रंथ हैं जिनमें सृष्टि, लय, प्राचीन ऋषियों, मुनियों और राजाओं के
वृत्तात आदि हैं। ये वैदिक काल के काफ़ी बाद के ग्रन्थ हैं, जो स्मृति विभाग में आते हैं।
भारतीय जीवन-धारा में जिन ग्रन्थों का महत्वपूर्ण स्थान है उनमें पुराण
भक्ति-ग्रंथों के रूप में बहुत महत्वपूर्ण माने जाते हैं। अठारह पुराणों में
अलग-अलग देवी-देवताओं को केन्द्र मानकर पाप और पुण्य, धर्म और अधर्म, कर्म, और अकर्म की गाथाएँ कही
गई हैं। कुछ पुराणों में सृष्टि के आरम्भ से अन्त तक का विवरण किया गया है। इनमें
हिन्दू देवी-देवताओं का और पौराणिक मिथकों का बहुत अच्छा वर्णन है ।
कर्मकांड
(वेद) से
ज्ञान (उपनिषद्) की
ओर आते हुए भारतीय मानस में पुराणों के माध्यम से भक्ति की अविरल धारा प्रवाहित
हुई है। विकास की इसी प्रक्रिया में बहुदेववाद और निर्गुण ब्रह्म की स्वरूपात्मक व्याख्या
से धीरे-धीरे मानस अवतारवाद या सगुण भक्ति की ओर प्रेरित हुआ।
पुराण अठारह हैं । विष्णु पुराण के अनुसार उनके
नाम ये हैं—विष्णु, पद्य, ब्रह्म, शिव, भागवत, नारद, मार्कंडेय, अग्नि, ब्रह्मवैवर्त, लिंग, वाराह, स्कंद, वामन, कूर्म, मत्स्य, गरुड, ब्रह्मांड और भविष्य ।
1. ब्रह्म पुराण
2. पद्म पुराण
3. विष्णु पुराण
4. शिव पुराण -- ( वायु पुराण )
5. भागवत पुराण -- ( देवीभागवत पुराण )
6. नारद पुराण
7. मार्कण्डेय
पुराण
8. अग्नि पुराण
9. भविष्य पुराण
10. ब्रह्म वैवर्त
पुराण
11. लिङ्ग पुराण
12. वाराह पुराण
13. स्कन्द पुराण
14. वामन पुराण
15. कूर्म पुराण
16. मत्स्य पुराण
17. गरुड़ पुराण
18. ब्रह्माण्ड
पुराण
रामायण
रामायण आदि कवि वाल्मीकि द्वारा लिखा गया संस्कृत का एक अनुपम महाकाव्य है। इसके २४,००० श्लोक हैं। यह हिन्दू स्मृति का वह अंग हैं
जिसके माध्यम से रघुवंश के राजा रामकी
गाथा कही गयी। इसे आदिकाव्य भी कहा जाता है।
रामायण के सात अध्याय हैं जो काण्ड के नाम से जाने जाते हैं।
·
बालकाण्ड
·
अयोध्याकाण्ड
·
अरण्यकाण्ड
·
किष्किन्धाकाण्ड
·
सुंदरकाण्ड
·
लंकाकाण्ड
·
उत्तरकाण्ड
महाभारत
महाभारत हिन्दुओं का एक प्रमुख काव्य ग्रंथ है, जो स्मृति वर्ग में आता है। कभी कभी केवल "भारत" कहा जाने वाला यह काव्यग्रंथ भारत का अनुपम धार्मिक, पौराणिक,ऐतिहासिक और दार्शनिक ग्रंथ हैं। विश्व का
सबसे लंबा यह साहित्यिक ग्रंथ और महाकाव्य, हिन्दू धर्म के मुख्यतम ग्रंथों में से एक है। इस
ग्रन्थ को हिन्दू धर्म में पंचम वेद माना जाता है। यद्यपि इसे साहित्य की सबसे अनुपम कृतियों में से एक माना
जाता है, किन्तु आज भी यह ग्रंथ प्रत्येक भारतीय के लिये एक
अनुकरणीय स्रोत है। यह कृति प्राचीन भारत के इतिहास की एक गाथा है।
इसी में हिन्दू धर्म का पवित्रतम ग्रंथ भगवद्गीता सन्निहित है। पूरे
महाभारत में लगभग १,१०,००० श्लोक हैं
श्रीमद्भगवद्गीता
श्रीमद्भगवद्गीता हिन्दू धर्म के पवित्रतम ग्रन्थों में से एक है। महाभारत
के अनुसार कुरुक्षेत्र युद्ध में श्री कृष्ण ने गीता का सन्देश अर्जुन को सुनाया था। यह महाभारत के भीष्मपर्व के अन्तर्गत दिया गया एक उपनिषद् है । इसमें एकेश्वरवाद, कर्म योग, ज्ञानयोग, भक्ति योग की बहुत सुन्दर
ढंग से चर्चा हुई है। इसमें देह से अतीत आत्मा का निरूपण किया गया है।
श्रीमद्भगवद्गीता की पृष्ठभूमि महाभारत का युद्ध है। जिस प्रकार एक सामान्य मनुष्य अपने जीवन की
समस्याओं में उलझकर किंकर्तव्यविमूढ़ हो जाता है और उसके पश्चात जीवन के समरांगण
से पलायन करने का मन बना लेता है उसी प्रकार अर्जुन जो महाभारत का महानायक है अपने सामने
आने वाली समस्याओं से भयभीत होकर जीवन और क्षत्रिय धर्म से निराश हो गया है, अर्जुन की तरह ही हम सभी
कभी-कभी अनिश्चय की स्थिति में या तो हताश हो जाते हैं और या फिर अपनी समस्याओं से
उद्विग्न होकर कर्तव्य विमुख हो जाते हैं। भारत वर्ष के ऋषियों ने गहन विचार के
पश्चात जिस ज्ञान को आत्मसात किया उसे उन्होंने वेदों का नाम दिया। इन्हीं वेदों
का अंतिम भाग उपनिषद कहलाता है। मानव जीवन की विशेषता मानव को प्राप्त बौद्धिक
शक्ति है और उपनिषदों में निहित ज्ञान मानव की बौद्धिकता की उच्चतम अवस्था तो है
ही, अपितु
बुद्धि की सीमाओं के परे मनुष्य क्या अनुभव कर सकता है उसकी एक झलक भी दिखा देता
है। उसी औपनिषदीय ज्ञान को महर्षिवेदव्यास ने सामान्य जनों के लिए गीता में संक्षिप्त रूप में
प्रस्तुत किया है। वेदव्यास की महानता ही है, जो कि ११ उपनिषदों के ज्ञान को एक
पुस्तक में बाँध सके और मानवता को एक आसान युक्ति से परमात्म ज्ञान का दर्शन करा
सके।
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