संध्या वंदन
प्रतिदिन संध्याकाळ में भगवन्नाम संकीर्तन करना ही संध्यावंदन है.
कुछ स्तोत्र दिए जा रहे है इनका अभ्यास कर संध्यावंदन करे.
श्रीरामचंद्र कृपालु…….
श्रीरामचंद्र कृपालु भजु मन
हरण भवभय दारुणं,
नवकंज लोचन, कंजमुख कर, कंज पद कंजारुणं.
कंदर्प अगणित अमित छवि नव नील
नीरज सुन्दरम,
पट पीत मानहु तडित रूचि-शुची
नौमी, जनक
सुतावरं.
भजु दीनबंधु दिनेश दानव दैत्य
वंष निकन्दनं,
रघुनंद आनंद कंद कोशल चन्द्र दशरथ
नंदनम.
सिर मुकुट कुंडल तिलक चारू
उदारु अंग विभुशनम,
आजानुभुज शर चाप-धर, संग्राम-जित-खर दूषणं.
इति वदति तुलसीदास, शंकर शेष मुनि-मन-रंजनं,
मम ह्रदय कंज निवास कुरु, कामादि खल-दल-गंजनं.
एही भांति गोरी असीस सुनी सिय
सहित हिं हरषीं अली,
तुलसी भावानिः पूजी पुनि-पुनि
मुदित मन मंदिर चली.
महिषासुरमर्दिनी स्तोत्रम
अयि गिरिनंदिनि नंदितमेदिनि विश्वविनोदिनि नंदिनुते
गिरिवर विंध्य शिरोधिनिवासिनि विष्णुविलासिनि जिष्णुनुते |
भगवति हे शितिकण्ठकुटुंबिनि भूरि कुटुंबिनि भूति कृते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ||1||
गिरिवर विंध्य शिरोधिनिवासिनि विष्णुविलासिनि जिष्णुनुते |
भगवति हे शितिकण्ठकुटुंबिनि भूरि कुटुंबिनि भूति कृते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ||1||
सुरवरवर्षिणि दुर्धरधर्षिणि दुर्मुखमर्षिणि हर्षरते
त्रिभुवनपोषिणि शंकरतोषिणि किल्बिषमोषिणि घोषरते |
दनुज निरोषिणि दितिसुत रोषिणि दुर्मद शोषिणि सिन्धुसुते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ||2||
त्रिभुवनपोषिणि शंकरतोषिणि किल्बिषमोषिणि घोषरते |
दनुज निरोषिणि दितिसुत रोषिणि दुर्मद शोषिणि सिन्धुसुते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ||2||
अयि जगदंब मदंब कदंब वनप्रिय वासिनि हासरते
शिखरि शिरोमणि तुङ्ग हिमालय शृंग निजालय मध्यगते |
मधु मधुरे मधु कैटभ भंजिनि कैटभ भंजिनि रासरते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ||3||
शिखरि शिरोमणि तुङ्ग हिमालय शृंग निजालय मध्यगते |
मधु मधुरे मधु कैटभ भंजिनि कैटभ भंजिनि रासरते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ||3||
अयि निज हुँकृति मात्र निराकृत धूम्र विलोचन धूम्र शते
समर विशोषित शोणित बीज समुद्भव शोणित बीज लते |
शिव शिव शुंभ निशुंभ महाहव तर्पित भूत पिशाचरते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ||४||
समर विशोषित शोणित बीज समुद्भव शोणित बीज लते |
शिव शिव शुंभ निशुंभ महाहव तर्पित भूत पिशाचरते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ||४||
अयि
शतखण्ड विखण्डित रुण्ड वितुण्डित शुण्ड गजाधिपते
निज भुज दण्ड निपातित खण्ड विपातित मुण्ड भटाधिपते
निज भुज दण्ड निपातित खण्ड विपातित मुण्ड भटाधिपते
रिपु गज
गण्ड विदारण चण्ड पराक्रम शुण्ड मृगाधिपते |
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ||५||
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ||५||
धनुरनु संग रणक्षणसंग परिस्फुर दंग नटत्कटके
कनक पिषंग पृषत्क निषंग रसद्भट शृंग हतावटुके |
कृत चतुरङ्ग बलक्षिति रङ्ग घटद्बहुरङ्ग रटद्बटुके
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ||६||
कनक पिषंग पृषत्क निषंग रसद्भट शृंग हतावटुके |
कृत चतुरङ्ग बलक्षिति रङ्ग घटद्बहुरङ्ग रटद्बटुके
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ||६||
अयि रण दुर्मद शत्रु वधोदित दुर्धर निर्जर शक्तिभृते
चतुर विचार धुरीण महाशिव दूतकृत प्रमथाधिपते |
दुरित दुरीह दुराशय दुर्मति दानवदूत कृतांतमते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ||७||
चतुर विचार धुरीण महाशिव दूतकृत प्रमथाधिपते |
दुरित दुरीह दुराशय दुर्मति दानवदूत कृतांतमते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ||७||
अयि शरणागत वैरि वधूवर वीर वराभय दायकरे
त्रिभुवन मस्तक शूल विरोधि शिरोधि कृतामल शूलकरे |
दुमिदुमि तामर दुंदुभिनाद महो मुखरीकृत तिग्मकरे
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ||८||
त्रिभुवन मस्तक शूल विरोधि शिरोधि कृतामल शूलकरे |
दुमिदुमि तामर दुंदुभिनाद महो मुखरीकृत तिग्मकरे
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ||८||
सुरललनाततथेयितथेयितथाभिनयोत्तरनृत्यरते
हासविलासहुलासमयि प्रणतार्तजनेऽमितप्रेमभरे |
धिमिकिटधिक्कटधिकटधिमिध्वनिघोरमृदंगनिनादरते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ||९||
हासविलासहुलासमयि प्रणतार्तजनेऽमितप्रेमभरे |
धिमिकिटधिक्कटधिकटधिमिध्वनिघोरमृदंगनिनादरते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ||९||
जय जय जप्य जयेजय शब्द परस्तुति तत्पर विश्वनुते
झण झण झिञ्जिमि झिंकृत नूपुर सिंजित मोहित भूतपते |
नटित नटार्ध नटीनट नायक नाटित नाट्य सुगानरते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ||१०||
झण झण झिञ्जिमि झिंकृत नूपुर सिंजित मोहित भूतपते |
नटित नटार्ध नटीनट नायक नाटित नाट्य सुगानरते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ||१०||
अयि सुमनः सुमनः सुमनः सुमनः सुमनोहर कांतियुते
श्रित रजनी रजनी रजनी रजनी रजनीकर वक्त्रवृते |
सुनयन विभ्रमर भ्रमर भ्रमर भ्रमर भ्रमराधिपते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ||११||
श्रित रजनी रजनी रजनी रजनी रजनीकर वक्त्रवृते |
सुनयन विभ्रमर भ्रमर भ्रमर भ्रमर भ्रमराधिपते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ||११||
सहित महाहव मल्लम तल्लिक मल्लित रल्लक मल्लरते
विरचित वल्लिक पल्लिक मल्लिक झिल्लिक भिल्लिक वर्ग वृते |
सितकृत फुल्लसमुल्ल सितारुण तल्लज पल्लव सल्ललिते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ||१२||
विरचित वल्लिक पल्लिक मल्लिक झिल्लिक भिल्लिक वर्ग वृते |
सितकृत फुल्लसमुल्ल सितारुण तल्लज पल्लव सल्ललिते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ||१२||
अयि सुद
तीजन लालसमानस मोहन मन्मथ राजसुते
अविरल
गण्ड गलन्मद मेदुर मत्त मतङ्गज राजपते |
त्रिभुवन भूषण भूत कलानिधि रूप पयोनिधि राजसुते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ||१३||
त्रिभुवन भूषण भूत कलानिधि रूप पयोनिधि राजसुते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ||१३||
कमल दलामल कोमल कांति कलाकलितामल भाललते
सकल विलास कलानिलयक्रम केलि चलत्कल हंस कुले |
अलिकुल सङ्कुल कुवलय मण्डल मौलिमिलद्भकुलालि कुले
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ||१४||
सकल विलास कलानिलयक्रम केलि चलत्कल हंस कुले |
अलिकुल सङ्कुल कुवलय मण्डल मौलिमिलद्भकुलालि कुले
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ||१४||
कर मुरली रव वीजित कूजित लज्जित कोकिल मञ्जुमते
मिलित पुलिन्द मनोहर गुञ्जित रंजितशैल निकुञ्जगते |
निजगुण भूत महाशबरीगण सद्गुण संभृत केलितले
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ||१५||
मिलित पुलिन्द मनोहर गुञ्जित रंजितशैल निकुञ्जगते |
निजगुण भूत महाशबरीगण सद्गुण संभृत केलितले
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ||१५||
कटितट
पीत दुकूल विचित्र मयूखतिरस्कृत चंद्र रुचे
जित कनकाचल मौलिपदोर्जित निर्भर कुंजर कुंभकुचे |
जित कनकाचल मौलिपदोर्जित निर्भर कुंजर कुंभकुचे |
प्रणत
सुरासुर मौलिमणिस्फुर दंशुल सन्नख चंद्र रुचे
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ||१६||
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ||१६||
विजित सहस्रकरैक सहस्रकरैक सहस्रकरैकनुते
कृत सुरतारक सङ्गरतारक सङ्गरतारक सूनुसुते |
सुरथ समाधि समानसमाधि समाधिसमाधि सुजातरते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ||१७||
कृत सुरतारक सङ्गरतारक सङ्गरतारक सूनुसुते |
सुरथ समाधि समानसमाधि समाधिसमाधि सुजातरते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ||१७||
पदकमलं करुणानिलये वरिवस्यति योऽनुदिनं स शिवे
अयि कमले कमलानिलये कमलानिलयः स कथं न भवेत् |
तव पदमेव परंपदमित्यनुशीलयतो मम किं न शिवे
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ||१८||
अयि कमले कमलानिलये कमलानिलयः स कथं न भवेत् |
तव पदमेव परंपदमित्यनुशीलयतो मम किं न शिवे
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ||१८||
कनकलसत्कल सिन्धु जलैरनु सिञ्चिनुते गुण रङ्गभुवं
भजति स किं न शचीकुच कुंभ तटी परिरंभ सुखानुभवम् |
तव चरणं शरणं करवाणि नतामरवाणि निवासि शिवं
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ||१९||
भजति स किं न शचीकुच कुंभ तटी परिरंभ सुखानुभवम् |
तव चरणं शरणं करवाणि नतामरवाणि निवासि शिवं
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ||१९||
तव विमलेन्दुकुलं वदनेन्दुमलं सकलं ननु कूलयते
किमु पुरुहूत पुरीन्दुमुखी सुमुखीभिरसौ विमुखीक्रियते |
मम तु मतं शिवनामधने भवती कृपया किमुत क्रियते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ||२०||
किमु पुरुहूत पुरीन्दुमुखी सुमुखीभिरसौ विमुखीक्रियते |
मम तु मतं शिवनामधने भवती कृपया किमुत क्रियते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ||२०||
अयि मयि दीनदयालुतया कृपयैव त्वया भवितव्यमुमे
अयि जगतो जननी कृपयासि यथासि तथाऽनुमितासिरते |
यदुचितमत्र भवत्युररि कुरुतादुरुतापमपाकुरुते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ||२१||
अयि जगतो जननी कृपयासि यथासि तथाऽनुमितासिरते |
यदुचितमत्र भवत्युररि कुरुतादुरुतापमपाकुरुते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ||२१||
रम्यकपर्दिनि शैलसुते…रम्यकपर्दिनि शैलसुते...
श्रीरुद्राष्टकम
नमामीशमीशान निर्वाणरूपं विभुं व्यापकं ब्रह्मवेदस्वरूपम् |
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं चिदाकाशमाकाशवासं भजेङहम् ||१||
निराकारमोंकारमूलं तुरीयं गिराज्ञानगोतीतमीशं गिरीशम् |
करालं महाकालकालं कृपालं गुणागारसंसारपारं नतोङहम् ||२||
तुषाराद्रिसंकाशगौरं गभीरं मनोभूतकोटि प्रभाश्रीशरीरम् |
स्फुरन्मौलिकल्लोलिनी चारुगंगा लसदभालबालेन्दुकण्ठे भुजंगा ||३||
चलत्कुण्डलं भ्रुसुनेत्रं विशालं प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालम् |
मृगाधीशचर्माम्बरं मुण्डमालं प्रियं शंकरं सर्वनाथं भजामि ||४||
प्रचण्डं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं अखण्डं अजं भानुकोटिप्रकाशम् |
त्रयः शूलनिर्मूलनं शूलपाणिं भजेङहं भावानीपतिं भावगम्यम् ||५||
कलातिकल्याण कल्पान्तकारी सदा सज्जनान्ददाता पुरारी |
चिदानंदसंदोह मोहापहारी प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी ||६||
न यावद उमानाथपादारविन्दं भजन्तीह लोके परे वा नराणाम् |
न तावत्सुखं शान्ति संतापनाशं प्रसीद प्रभो सर्वभूताधिवासम् ||७||
न जानामि योगं जपं नैव पूजां नतोङहं सदा सर्वदा शम्भुतुभ्यम् |
जरजन्मदुःखौ घतातप्यमानं प्रभो पाहि आपन्नमामीश शम्भो ||८||
रुद्राष्टकमिदं प्रोक्तं विपेण हरतुष्टये |
ये पठन्ति नरा भक्त्या तेषां शम्भुः प्रसीदति ||
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं चिदाकाशमाकाशवासं भजेङहम् ||१||
निराकारमोंकारमूलं तुरीयं गिराज्ञानगोतीतमीशं गिरीशम् |
करालं महाकालकालं कृपालं गुणागारसंसारपारं नतोङहम् ||२||
तुषाराद्रिसंकाशगौरं गभीरं मनोभूतकोटि प्रभाश्रीशरीरम् |
स्फुरन्मौलिकल्लोलिनी चारुगंगा लसदभालबालेन्दुकण्ठे भुजंगा ||३||
चलत्कुण्डलं भ्रुसुनेत्रं विशालं प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालम् |
मृगाधीशचर्माम्बरं मुण्डमालं प्रियं शंकरं सर्वनाथं भजामि ||४||
प्रचण्डं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं अखण्डं अजं भानुकोटिप्रकाशम् |
त्रयः शूलनिर्मूलनं शूलपाणिं भजेङहं भावानीपतिं भावगम्यम् ||५||
कलातिकल्याण कल्पान्तकारी सदा सज्जनान्ददाता पुरारी |
चिदानंदसंदोह मोहापहारी प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी ||६||
न यावद उमानाथपादारविन्दं भजन्तीह लोके परे वा नराणाम् |
न तावत्सुखं शान्ति संतापनाशं प्रसीद प्रभो सर्वभूताधिवासम् ||७||
न जानामि योगं जपं नैव पूजां नतोङहं सदा सर्वदा शम्भुतुभ्यम् |
जरजन्मदुःखौ घतातप्यमानं प्रभो पाहि आपन्नमामीश शम्भो ||८||
रुद्राष्टकमिदं प्रोक्तं विपेण हरतुष्टये |
ये पठन्ति नरा भक्त्या तेषां शम्भुः प्रसीदति ||
राकेशजी बहुत सुंदर प्रयोग है .
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