एक नगर में एक
चित्रकार ने एक बहुत सुन्दर चित्र बनाया।
उसने उस चित्र को नगर के चौराहे मे लगा दिया और नीचे लिख दिया कि जिस किसी को ,
जहाँ भी इस में कमी दिखे, वह वहाँ निशान लगा दे ।
जब उसने शाम को तस्वीर देखी, उसका पूरा चित्र निशानों से ख़राब हो चुका था ।
यह देख वह बहुत दुखी हुआ ।
उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि अब क्या करे।
तभी एक साधू वहाँ से गुजरा उसने उस के दुःखी होने का कारण पूछा तो उसने उसे पूरी घटना बताई ।
साधू ने कहा तुम एक काम करो, कल दूसरा चित्र बना लो और उस मे लिख दो कि जिस किसी को इस चित्र मे जहाँ कहीं भी कोई कमी दिखाई दे उसे सही कर दे ।
उसने अगले दिन यही किया । शाम को जब उसने अपनी तस्वीर देखी तो उसने देखा की तस्वीर पर किसी ने कुछ नहीं किया था।
साधू ने उसको समझाया- दोस्त!
" दूसरे की कमी निकालना , दूसरे की निंदा करना सरल है परंतु उन कमियों को दूर करना अत्यंत कठिन होता है।
हम उन्हीं कमियों में जीते है, उन्हें दूर भी नही कर सकते परन्तु उन्हीं कमियों को दूसरे में दिखाकर उसको नीचा दिखा देते है। हम उनका सहयोग नही करते।
कमियां अपनी देखो, दूसरे की नही। पहले अपनी कमियां दूर करो। दूसरे को नीचा मत दिखाओ, सम्भव हो तो उसका सहयोग करो।
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