Wednesday 3 May 2017

महराणा कुम्भा

हिंदुस्तान का ऐसा महान योद्धा जिसके नाम से ही दुष्ट मुस्लिमआक्रांता थर्राते थे, नाम है ,महराणा कुम्भा या महाराणा कुम्भकर्ण दरअसल राजस्‍थान में मेवाड के राजा थे। उन्‍होंने सन् 1433 से 1468 तक राज किया। महाराणा कुंभकर्ण ने पूरी राजपूताना विरासत में युद्ध की ऐसी विजयपताकाएं लहराईं कि उनके पहले के राजा सपने भी सोच नहीं सकते थे। उन्‍होंने दरअसल देश में राजपूताना राजनीति को एक नया रूप दिया। इतिहास में ये 'राणा कुंभा' के नाम से अधिक प्रसिद्ध हैं।

सत्‍ता हासिल करने के सात सालों के अंदर उन्होंने सारंगपुर, नागौर, नराणा, अजमेर, मंडोर, मोडालगढ़, बूंदी, खाटू, चाटूस आदि के कई मजबूत किलों को जीत लिया। यही नहीं उन्‍होंने दिल्ली के सुलतान सैयद मुहम्मद शाह और गुजरात के सुलतान अहमदशाह को भी धूल चटा दी। कमाल था कि बार बार दुश्‍मनों ने उन पर हमला किया, लेकिन उनका कोई बाल भी बांका नहीं कर सका।

आपको जानकर आश्‍चर्य होगा कि महज 35 साल की उम्र में इस युवा ने जो स्‍थापत्‍य कला का निर्माण करवाया वह पूरी दुनिया में चर्चा का केंद्र आज भी बने हुए हैं। उनके बनवाए गए बत्तीस दुर्गों में चित्तौड़गढ़, कुंभलगढ़, अचलगढ़ जहां सशक्त स्थापत्य में शीर्षस्थ हैं, वहीं इन पर्वत-दुर्गों में चमत्कृत करने वाले देवालय भी हैं। जानकर आश्‍चर्य होगा कि उनके द्वारा बनवाया गया विश्वविख्यात विजय स्तंभ भारत की अमूल्य धरोहर है।

संगीत और कला में भी अद्वितीय :  राणा कुंभा ने शक्ति और संगठन क्षमता के साथ-साथ अपनी रचनात्मकता के जलवे भी बिखेरे। संगीत के क्षेत्र में आज भी ‘संगीत राज’ उनकी महान रचना है जिसे साहित्य का कीर्ति स्तंभ माना जाता है। यही नहीं उन्होंने कई दुर्ग, मंदिर और तालाब बनवाए तथा चित्तौड़ को कला और संस्‍कृति के क्षेत्र में अग्रणी कर दिया। कुंभलगढ़ का प्रसिद्ध किला उनकी कृति है, तो वहीं बंसतपुर को उन्होंने पुन: बसाया और श्री एकलिंग के मंदिर का जीर्णोंद्वार किया। कला और हर तरह की सांस्‍कृतिक विद्या से प्रेम रखने वाले इस राजा ने संगीत के अनेक ग्रंथों की उन्होंने रचना की और चंडीशतक एवं गीतगोविंद आदि ग्रंथों की भी व्याख्या की।

तलवार के दम पर दुश्‍मनों को हराने वाला यह योद्धा कलम का भी उतना ही महान सिपाही थी। व न केवल नाट्यशास्त्र के ज्ञाता थे, बल्‍कि वीणावादन में भी कुशल थे। कीर्तिस्तंभों की रचना पर तो उन्होंने स्वयं एक ग्रंथ लिखा और मंडन आदि सूत्रधारों से शिल्पशास्त्र के ग्रंथ लिखवाए। हिंदुस्तान को इस महान योद्धा की वीरता पर गर्व है।....

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