Friday, 28 April 2017

प्रणाम

जनक कीन्ह कौसिकहि प्रनामा। प्रभु प्रसाद धनु भंजेउ रामा॥
मोहि कृतकृत्य कीन्ह दुहुँ भाईं। अब जो उचित सो कहिअ गोसाईं॥

केवल कलयुग ही नही सतयुग,द्वापर हमेशा से ही हमारी संस्कृत में,पुराणों में प्रणाम का,चरण स्पर्श का विशेष महत्व रहा हे।प्रणाम के कारण कई युद्ध टल गये तो कई युद्ध बिना लड़े ही  जीत लिये गये।

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