Friday 28 April 2017

भाग्य के निर्माता

अपने भाग्य के निर्माता आप हैं

आप ने यह लाइन तो जरुर सुनी होगी कि “ जीतना तब आवश्यक हो जाता है जब लड़ाई अपने आप से हो ” | यह कहानी भी कुछ ऐसी ही है | ब्रिटेन का एक ऐसा युवक जिसने संघर्ष करके अपने आप पर जीत हासिल की | यह आप के भी जीवन की कहानी हो सकती है क्योंकि इस कहानी में जो भाव निहित है वह एकदम सत्य है | यह अंधेरे से निकलकर उजाले की ओर बढ़ने की कहानी है | यह कहानी इस आशा को जगाती है कि आप परिस्थितियों के गुलाम नहीं हैं, न ही आप पर कोई जीत हासिल कर सकता है | आप अपने भाग्य के निर्माता एवं विधाता स्वयं हैं|

स्टीफन के अंदर हर वो बुराई थी जो किसी भी इंसान के लिए आत्मघाती हो सकती है | इसे भाग्य का दोष कहें या नियति का क्रूर मजाक, जो माता – पिता बचपन में ही चल बसे | नाते रिश्तेदार महज नाम के लिए थे | जिसके कारण उसे कभी न अच्छा माहौल और न ही सही मार्गदर्शन मिला | स्टीफन का कोई दोस्त भी नहीं था अगर उसके साथ कोई था तो वह थी शराब, धुम्रपान बुरी संगती जैसी बुरी लत |

एक दिन स्टीफन के युवा मन में ऐशो आराम से जीवन – यापन करने का भी विचार आ गया | जिसके लिए इसने चोरी भी करना शुरू कर दिया | पर बुरे काम से किसी का भला हुआ है जो स्टीफन का होगा | स्टीफन को चोरी करने के जुर्म में जेल हो गई | अब आप इस बात का अंदाजा तो लगा ही सकते हैं कि जेल का जीवन कैसा होता है ? और इसी जेल के जीवन का असर स्टीफन पर भी दिखने लगा | उसे अनिद्रा, सिरदर्द, कब्ज तथा कई मानसिक रोगों ने उसे अपने गिरफ्त में कर लिया | एक बार को उसे लगा कि यह सब समस्या खाने में गड़बड़ी की वजह से हो रही है पर उसने इस बात को भी नजरंदाज कर दिया |


एक दिन स्टीफन घुमते – घामते जेल के बूचडखाने में पहुंचा | वहां पर उसने मरे हुए पशुओं की लाश को उल्टे लटका देखा | इस दृश्य से उसे बहुत गहरा झटका लगा और उसी दिन से उसने मांसभक्षण को त्यागने का संकल्प ले लिया | जेल के अन्दर रहकर अपने संकल्प का पालन करना उसके लिए कठिन था | लेकिन उस मरे पशु को देखने का उसके मन पर इतना गहरा असर था कि जहाँ अन्य कैदी शराब और मांस पर जी रहे थे वही स्टीफन ताजा और सुपाच्य भोजन लेने का प्रयास कर रहा था |

स्टीफन जो कि अब ताजा और सुपाच्य आहार खा रहा था इसका परिणाम धीरे – धीरे उसके शरीर पर दिखने लगा था | स्वस्थ्य शरीर के साथ – साथ उसका दिमाग भी सही दिशा की ओर संकेत दे रहा था | संयोग से उसके हाथ एक योग की पुस्तक लग गई | अब वह नियमित पौष्टिक आहार के साथ – साथ किताब से सीखकर योग भी करने लगा | उसे इन सब से अपने अन्दर एक गंभीर आंतरिक परिवर्तन की अनुभूति हुई | फलस्वरूप वह और अधिक इच्छाशक्ति से इनका पालन करने लगा लेकिन वह अभी शराब को नहीं छोड़ पाया था और दिन में कम से कम तीन – चार पैकेट सिगरेट भी पीता था | उसे इस बात का अंदाजा हो गया था कि वह इनका सेवन कर अपने फेफड़ों को बर्बाद कर रहा है |

उसने स्वयं से एक और संकल्प किया कि धीरे – धीरे ही सही पर वह अपनी इस बुरी लत को भी छोड़ देगा | उसने इस संकल्प को भी पूरा किया | शराब और सिगरेट जैसी बुरी लत छोड़ दी | शुरू में इसे छोड़ने में कठिनाइयाँ हुई लेकिन उसने हार नहीं मानी और इस बुरी लत से छुटकारा पाने में सफल रहा |

स्टीफन की अच्छी आदतों की वजह से एक दिन ऐसा भी आया कि वह शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक एवं अध्यात्मिक हर स्तर पर स्वस्थ्य एवं संतुलित अनुभव करने लगा लेकिन एक कमी वह अभी भी अपने अन्दर महसूस कर रहा था और वह कमी थी नकारात्मक विचारों की | इसे दूर करने के लिए वह अपने नकारात्मक सोच एवं विचारों को लिखित रूप से अपने पास रखने लगा और प्रतिदिन संकल्प की तरह पढ़ता रहा |

अपने सोच और विचारों को पढने से उसे इस बात का अहसास हुआ कि उसके अन्दर जो भी बुराइयाँ है उनका जिम्मेदार तो वह स्वयं ही है | अपने जीवन में अब तक जो दूसरे व्यक्तियों से अन्याय अनुभव कर रहा था, वह सब गलत था | इन सब बातों का अहसास होते ही उसे अपना जीवन बहुत सुखद लगने लगा और उसके मन में शान्ति की एक अद्भुत लहर दौड़ने लगी | पहली बार उसे यह प्रतीत हो रहा था कि वाह्य जगत का परिवर्तन आंतरिक विकास के अनुरूप ही होता है |

स्टीफन की सजा भी पूरी हो गई थी अत: उसे रिहा कर दिया गया लेकिन उसे इस बात की अत्यधिक ख़ुशी थी कि वह अपनी बुरी आदतों से आजाद हो चुका था | जीवन का अनुभव उससे कह रहा था बाहरी स्वतंत्रता की अपेक्षा आंतरिक स्वतंत्रता अधिक मूल्यवान है |

यह कहानी थी स्टीफन की लेकिन थोड़े बहुत बदलाव के साथ यह कहानी किसी के भी जीवन की हो सकती है | गलत परवरिश, बुरा संगति, दुर्भाग्यपूर्ण परिस्थितियों के दंश की मार से पीड़ित व्यक्ति दूसरों को दोष देने की वजाय, इसकी पूरी जिम्मेदारी स्वयं पर लें तो यकीन मानिये आपने पहली सीढ़ी ऐसे ही चढ़ ली | यही सोच आपको आत्मसुधार एवं निर्माण की बाकी सीढ़ी चढ़ने में भी मदद करेगा | यह सीढ़ी आप खुद चढ़ कर मंजिल तक पहुचेंगे, जिसमें ‘आप अपने भाग्य के निर्माता खुद हैं’ की उक्ति को चरितार्थ होते खुद देख सकेंगे |

No comments:

Post a Comment