बन्दरों की एक टोली थी..
उनका एक सरदार भी था। बन्दर फलो के बग़ीचों मे फल तोड कर खाया करते थे। माली की मार और डन्डे भी खाते थे पिटते थे।
एक दिन बन्दरों के सरदार ने सब बन्दरों से विचार विमर्श कर कर निश्चय किया कि रोज माली के डन्डे खाने से बेहतर है हम अपना फलों का बग़ीचा लगा ले और खाये, कोई रोक टोक नहीं।
और हमारे अच्छे दिन आ जायेंगे।
सभी बन्दरों को यह प्रस्ताव बहुत पसन्द आया। जोर शोर से गड्ढे खोद कर फलो के बीज बो दिये गये ।
पूरी रात बन्दरों ने बेसब्री से इन्तज़ार किया। सुबह देखा गया अभी तो फलो के पौधे भी नहीं आये !
दो चार दिन बन्दरों ने और इन्तज़ार किया, परन्तु पौधे नहीं आये ।
Restless बन्दरों ने मिट्टी हटाई - देखा फलो के बीज जैसे के तैसे मिले।
बन्दरों ने कहा - लोग झूठ बोलते हैं । हमारे कभी अच्छे दिन नही आने वाले। हमारी क़िस्मत मैं तो माली के डन्डे ही लिखे हैं ।
बन्दरों ने सभी गड्ढे खोद कर फलो के बीज निकाल कर फेंक दिये । पुन: अपने भोजन के लिये माली की मार और डन्डे खाने लगे ।
देश वासियो - जरा सोचना कहीं हम बन्दरों वाली हरकत तो नहीं कर रहे।
एक परिपक्व समाज का उदाहरण पेश करिये बन्दरों जैसी हरकत मत करिये...
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