Wednesday, 31 May 2017

वाणी

वेद में एक वाक्य है कि वाणी की मधुरता से सहज ही सभी को मित्र और कर्कश वाणी से दुश्मन बनाया जा सकता है। एक बार कुछ शिक्षक श्री अरविंद आश्रम (पांडिचेरी) गए। एक शिक्षक ने श्री माता जी से पूछा, ‘सदैव प्रसन्न रहने के लिए क्या करना चाहिए?’

माता जी ने कहा, ‘अपनी वाणी से अमृत बिखेरते रहो। सभी से प्रेम करो, निश्चय ही सभी से प्रेम पाते रहोगे। इससे प्रसन्नता मिलेगी।’

कुछ क्षण रुककर उन्होंने एक कथा सुनानी शुरू की, ‘फारस देश में एक स्त्री थी। वह शहद बेचने का काम करती थी। शहद तो वह बेचती ही थी, उसकी वाणी भी शहद जैसी ही मीठी थी। उसकी दुकान पर खरीददारों की भीड़ लगी रहती थी। एक ओछी प्रवृति वाले व्यक्ति ने देखा कि शहद बेचने से एक महिला इतना लाभ कमा रही है, तो उसने भी उस दुकान के नजदीक एक दुकान में शहद बेचना शुरू कर दिया। उसका स्वभाव कठोर था।

एक दिन एक ग्राहक ने सहज में ही उससे पूछ लिया कि शहद मिलावटी तो नहीं! उसने भड़ककर कहा कि जो स्वयं नकली होता है, वही दूसरे के सामान को नकली बताता है। ग्राहक उसकी कड़क आवाज से घबड़ाकर लौट गया। वही आदमी फिर महिला के पास पहुंचा और वही सवाल पूछ बैठा। महिला ने मुसकराते हुए कहा कि जब वह खुद असली है, तो वह नकली शहद क्यों बेचेगी! ग्राहक मुस्कुरा उठा और शहद ले गया।’

कहानी सुनाने के बाद माता जी ने उपदेश देते हुए कहा, ‘विनम्र स्वभाव और मीठी वाणी का हर तरह की सफलता में योगदान रहता है, इसलिए मनुष्य को हमेशा मीठी वाणी बोलनी चाहिए।’

हमेशा याद रखिये कि “वाणी में इतनी शक्ति होती है कि कड़वा बोलने वाले का शहद भी नहीं बिकता और मीठा बोलने वाले की मिर्ची भी बिक जाती है।” वास्तव में मीठी वाणी बोलना न सिर्फ अपने, बल्कि दूसरों के कानों को भी सुकून देता है। किसी ने सत्य ही कहा है,

जरूरी नहीं कि आप केवल मिठाई खिलाकर दूसरों का मुंह मीठा करें,
आप मीठा बोलकर भी लोगों का मुंह मीठा कर सकते हैं!

यहां तक कि विभिन्न वेदों और शास्त्रों में भी वाणी संयम को सर्वश्रेष्ठ तप कहा गया है:

ऋग्वेद में कहा गया है, या ते जिव्हा मधुमति सुमेधाने देवेषूच्यत उरुचि। यानी, तू मीठी और सद्बुद्धि युक्त वाणी का प्रयोग कर, जिसे देव बोलते हैं।

नीतिशास्त्र में कहा गया है, ‘झूठ बोलना, कटु बोलना, असंगत बात कहना, अहंकारयुक्त शब्द बोलना, निंदा करना आदि वाणी के ऐसे उद्वेग दोष हैं, जिनसे मनुष्य पग-पग पर संकट में पड़ता है। अत: एक-एक शब्द सोच-समझकर बोलना चाहिए।’

विदुर नीति में कहा गया है, ‘असंयमपूर्ण बोलने की अपेक्षा मौन रहना श्रेयस्कर है। सत्य, प्रिय और धर्मयुक्त वचन ही उच्चरित करने चाहिए। मनमाने ढंग से ऊटपटांग बोल देने वाला पग-पग पर शत्रु पैदा करता है।’ मीठे वचनों में इतनी शक्ति और आकर्षण होता है कि पराया आदमी भी मित्र व हितैषी बन जाता है, जबकि कटु वचन बोलने वाला भाई-बांधवों और मित्रों को भी दुश्मन बना लेता है।

भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं, ‘पार्थ, जिस वाणी को धारण करने से मानव को यश और प्रतिष्ठा प्राप्त होती है, जिससे मनुष्य की विद्वान के रूप में पहचान होती है, उस वाणी को वाक् कहते हैं। ऐसा व्यक्ति वागीश अर्थात वाणी का देवता कहलाता है।’

गोस्वामी तुलसीदास ने कहा है,

तुलसी मीठे वचन तै, सुख उपजत चहुं ओर।
वशीकरण के मंत्र हैं, तज दे वचन कठोर।

और संत कबीर भी कहते हैं कि,

ऐसी बानी बोलिए, मन का आपा खोय।
औरन को शीतल करै, आपहु शीतल होय।

याद रखिये कि तलवार का घाव देर-सबेर भर जाता है, किंतु कटु वाणी से हुआ घाव कभी नहीं भरता। इसलिए हमेशा “मीठा और उचित बोलिए। खुद भी प्रसन्न होइए और दूसरों को भी प्रसन्न कीजिये।”

No comments:

Post a Comment