Saturday 15 April 2017

बूढ़ी औरत

एक डलिया में संतरे बेचती बूढ़ी औरत से एक युवा अक्सर संतरे खरीदता ।
अक्सर, खरीदे संतरों से एक संतरा निकाल उसकी एक फाँक चखता और कहता,
"ये कम मीठा लग रहा है, देखो !"

बूढ़ी औरत संतरे को चखती और प्रतिवाद करती
"ना बाबू मीठा तो है!"

वो उस संतरे को वही छोड़,बाकी संतरे ले गर्दन झटकते आगे बढ़ जाता।

युवा अक्सर अपनी पत्नी के साथ होता था,

एक दिन पत्नी नें पूछा "ये संतरे हमेशा मीठे ही होते हैं, पर यह नौटंकी तुम हमेशा क्यों करते हो ?

"युवा ने पत्नी को एक मधुर मुस्कान के साथ बताया -

"वो बूढ़ी माँ संतरे बहुत मीठे बेचती है, पर खुद कभी नहीं खाती,इस तरह मै उसे संतरा खिला देता हूँ ।

एक दिन, बूढ़ी माँ से, उसके पड़ोस में सब्जी बेचनें वाली औरत ने सवाल किया,

- ये झक्की लड़का संतरे लेते इतनी चख चख करता है, पर संतरे तौलते हुए मै तेरे पलड़े को देखती हूँ, तुम हमेशा उसकी चख चख में, उसे ज्यादा संतरे तौल देती है ।

बूढ़ी माँ नें साथ सब्जी बेचने वाली से कहा -

"उसकी चख चख संतरे के लिए नहीं, मुझे संतरा खिलानें को लेकर होती है,

वो समझता है में उसकी बात समझती नही,मै बस उसका प्रेम देखती हूँ, पलड़ो पर संतरे अपनें आप बढ़ जाते हैं।

एक बात तो पक्की है की...
छीन कर खानेवालों का कभी पेट नहीं भरता
और बाँट कर खानेवाला कभी भूखा नहीं मरता...!!!

"ऊँचा उठने के लिए पंखो की जरूरत तो पक्षीयो को पड़ती है..

इंसान तो जितना नीचे झुकता है,
वो उतना ही ऊपर उठता जाता है.

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