अब्राहम लिंकन प्रेसिडेंट हुआ अमरीका का उसका बाप तो जूता सीता था, चमार था !
जब वह प्रेसिडेंट हुआ और पहले दिन वहां की सीनेट में बोलने को खड़ा हुआ, तो अनेक लोगों को उससे बड़ी पीड़ा हो गई कि एक चमार का लड़का और प्रेसिडेंट हो जाए मुल्क का!
तो एक आदमी ने खड़े होकर व्यंग्य कर दिया और कहा कि
महानुभाव लिंकन, ज्यादा गुरूर में मत फूलो!
मुझे अच्छी तरह याद है कि तुम्हारे पिता जूते सिया करते थे
तो जरा इस बात का खयाल रखना, नहीं तो प्रेसिडेंट होने में भूल जाओ।
और कोई आदमी होता तो दुखी हो जाता, क्रोध से भर जाता
शायद गुस्से में आता और उस आदमी को कोई नुकसान पहुंचाता। प्रेसिडेंट नुकसान पहुंचा सकता था लेकिन लिंकन ने क्या कहा?
लिंकन की आंखों में आंसू आ गए और उसने कहा कि तुमने ठीक समय पर मेरे पिता की मुझे याद दिला दी।
आज वे दुनिया में नहीं हैं, लेकिन फिर भी मैं यह कह सकता हूं कि मेरे पिता ने कभी किसी के गलत जूते नहीं सिए हैं, और जूते सीने में वे अदभुत कुशल थे। वे इतने कुशल कारीगर थे जूता सीने में कि मुझे आज भी उनका नाम याद करके गौरव का अनुभव होता है। और मैं यह भी कह देना चाहता हूं–और यह बात लिख ली जाए, लिंकन ने कहा–कि जहां तक मैं समझता हूं, मैं उतना अच्छा प्रेसिडेंट नहीं हो सकूंगा, जितने अच्छे वे चमार थे! मैं उनके ऊपर नहीं निकल सकता हूं, उनकी कुशलता बेजोड़ थी! यह एक समझ की बात है, एक बहुत गहरी समझ की। जब तक दुनिया में पदों के साथ इज्जत होगी, तब तक अच्छी दुनिया पैदा नहीं हो सकती और ईष्या और प्रतिस्पर्धा चलेगी।
प्रतिस्पर्धा काम के कारण नहीं है, प्रतिस्पर्धा है पदों के साथ जुड़े हुए आदर के कारण कोई आदमी बागवान नहीं होना चाहता, बागवान होने में कौन सी इज्जत मिलेगी?
राष्ट्रपति होना चाहता है यह तब तक चलेगा, जब तक हम गरीब बागवान को भी इज्जत देना शुरू नहीं करेंगे
ओशो,
समाधि कमल
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