Wednesday 16 August 2017

पूर्वाग्रह

पूर्वाग्रह....

शाम के सात बजे तक विमला का मन अत्यंत क्षुब्ध हो गया। बेटा तो टूर पर गया हुआ था लेकिन बहू को तो पता था कि वह आज आने वाली है। ऑफिस से छुट्टी तो ली नहीं उल्टे समय से घर पर भी नहीं आई। चाबी पड़ोस में रखकर फोन कर दिया कि बहुत जरुरी काम है आज इसलिए ऑफिस जाना पड़ रहा है। वह तो भला हो पड़ोसियों का चाबी लेने गई तो चाय नाश्ता करवा दिया वरना चार बजे पहुंचते ही चाय भी खुद ही बनाकर पीनी पड़ती।
ऑफिस में उन्हें हाल ही में प्रमोशन मिला था तो ज्वाइन करके उन्होंने आठ दिन की छुट्टी ले ली थी सोचा चलकर कुछ दिन नई बहू के पास रहूंगी तो सास बहू जरा एक दूसरे को जान समझ लेंगी लेकिन यहां तो आते ही बहू के निराले रंग दिखने लगे।
अपमान से वह एक क्षुब्ध सी हो गई। मन में पूर्वाग्रहों के कुछ नाग फन उठाने लगे जरूर... जानबूझकर ऐसा कर रही होगी ताकि मैं यहां से जल्दी चली जाऊं। निर्मला की बहू ने भी ऐसा ही किया था, और करुणा की बहू ने तो ऑफिस का टूर है कहकर मायके ही जाकर बैठ गई थी। मेरी बहु भी वैसी ही निकली और उनके मन ने बहु की एक छवि गढ़ ली मन ही मन।
7:30 बजे आखिर बहू आ ही गई दरवाजा खुलते ही...
"सॉरी माँ, बहुत शर्मिंदा हूं देर हो गई मोबाइल की बैटरी खत्म हो गई तो ऑफिस से निकलने के बाद फोन भी नहीं कर पाई। प्रमोशन की बहुत बहुत बधाई"
ताजे फूलों की खुशबू बिखेरता एक खूबसूरत बुके विमला के हाथ में था और बहू उन्हें प्रणाम करने के लिए झुकी हुई थी विमला के हाथ ने अनायास बहू का सर सहला दिया। अप्रत्याशित सुख का एक झौंका उन्हें सहला गया।
" और यह देखो मैं आपके लिए साड़ी लाई हूं इसलिए देर हो गई। मुझे कोई साड़ी पसंद ही नहीं आ रही थी आखिर बड़ा ढूंढने के बाद जाकर यह साड़ी पसंद आई बताओ ना मां आपको पसंद आई कि नहीं।" बहू ने हाथ में पकड़े पैकेट से एक खूबसूरत सिल्क की साड़ी निकाल कर विमला के कंधे पर फैला दी।
भीगी आंखों और खुशी से रुंधें गले से उन्होंने कहा
" बहुत सुंदर है बिटिया"
" सच में?" बहु का चेहरा खिल गया। "सारे काम आज पूरे कर के ऑफिस से आठ दिन की छुट्टी ले ली है मैंने अब मैं पूरा समय आपके ही साथ रहूंगी कितनी बातें करनी है आपसे, कितना कुछ सीखना है । चलिए अब तो सबसे पहले मैं आपकी पसंद का खाना बनाने रसोईघर में जाती हूं।" नन्ही बच्ची की तरह वह उनके गले में बाहें डाल कर झूल गई।
उसकी पीठ पर स्नेह से हाथ फेरती विमला उसके साथ ही रसोई घर की तरफ चल दी मन के सारे पूर्वाग्रह खुशी के आसुओं के साथ धुलते जा रहे थे।

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