Thursday 22 June 2017

आरएसएस

*आरएसएस*

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के बारे मे सब के विचार भिन्न-भिन्न हो सकते हैं, लेकिन मेरे विचार मेरे अपने अनुभव हैं, जो संभवत भिन्न हो सकते हैं, इनसे प्राप्त जीवन दर्शन मुझे जीवन पर्यंत इसका स्मरण कराते रहेंगे ।
       वह घटना वर्ष 1968 की है। मेरे पिताजी इलाहाबाद मे सेवा मे थे और उस समय मैं सी ए वी इंटर कॉलेज मे दसवीं कक्षा मे पढ़ रहा था । उस समय मेरी उम्र लगभग 14 वर्ष के करीब थी।
      मेरे मुहल्ले मे एक काफी बड़ी किराना दुकान थी, जो बहुत चलती थी, जिसके मालिक लगभग 70 वर्ष के व्यक्ति थे, जिन्हे सब लोग बाबा कहते थे,   वे बहुत ही कंजूस थे , किसी को एक भी पैसा का सामन उधार नही देते थे । लेकिन उनके यहां सामान की क्वॉलिटी बहुत ही अच्छी रहती थी, इसलिए लोग उनके दूकान से सामान लेते थे । वे सिर्फ अपने व्यापार से ही मतलब रखते थे, किसी से कोई लेना-देना नही ।
   होली के बाद दंगा हो गया था । पूरे इलाहाबाद मे एकाएक कर्फ्यू लागू हो गया था । मेरे होश मे पहली घटना थी । इलाहाबाद के अधिकतर लोग अपने घरों मे खाने-पीने की सामग्रियों का भंडारण नही कर सके थे । यही हाल मेरे मुहल्ले के लोगों का था।
एकाध दिन बाद घर मे सब्जी दूध की दिक्कत होने लगी, चाय तो दूर मेरे छोटे भाई जिसकी उम्र लगभग चार वर्ष की थी, दूध नही मिलने से बेचैन था । किसी तरह पिता जी को समझाया कि मै ले आऊँगा तो उन्होंने गुस्से मे ही अनुमति दी। तो मै और मेरे एक समवयस्क मित्र ने चुपचाप गलियों से होते हुए दूकान पर जाने की सोची । दूकानदार का परिवार दूकान के उपरी मजिंल पर ही रहता था । सुबह लगभग पांच बजे हमदोनो ने उनके  घर का दरवाजा खटखटाया ।
             दूकान  के अंदर जाकर देखा तो पाया कि  वहां काफी भारी भीड़ लगी हुई है । उनके नौकर तो नौकर उनके घर की महिलाएं और बच्चे भी जल्दी जल्दी सबको सामान दे रहे थे । जिसके पास पैसे थे उनको भी और जिनके पास नही थे उनको भी । जिनके पास पैसे नही थे, उनको भी पूरा सामान दिया जा रहा था । बाबा सबको कह रहे थे कि कम से कम दस बारह दिन का सामान जरूर लेकर जाना, पता नही कब तक हालात सुधरेंगे ।
        हमदोनो आश्चर्य से बाबा को देखकर सोच रहे थे कि क्या ये वही कंजूस बाबा हैं। जब भीड़ छंटी तो हमदोनो ने अपना सामान खरीदा, और पैसे दिए । हमदोनो बाबा के पास गये और कहा कि बाबा आज आप बिना जान पहचान तक के लोगो को भी बहुत उधार दे रहे हैं । हमदोनो की बात पर वे गंभीर हो गए और बोले कि बेटा, मैं आरएसएस का कार्यकर्ता  हूँ । किसी भी विकट परिस्थिति मे आरएसएस के कार्यकर्ता सबकी सहायता करने के लिए सबसे पहले पहुंचते हैं, अब मैं बूढ़ा हो गया हूँ और चलने फिरने मे भी दिक्कत होती है तो कम से कम इतना तो अवश्य कर सकता हूँ ।
       तुम लोग सोचते होगे कि कभी भी उधार नही देने वाला आज क्यों उधार दे रहा है, मेरा मानना है कि उधार मिलने पर बिना जरूरत का भी सामान लोग खरीद लेते हैं और पैसे मांगने पर लड़ते हैं। जिस से संबंध भी खराब होते हैं। लोगों को अपने सामर्थ्य के भीतर ही जीवन जीना चाहिए ।
         वे हमलोगों को अपनी छत पर ले गये, वहां पर देखा कि लगभग बीस चूल्हों पर पूड़ियां तली जा रही हैं और आरएसएस के कार्यकर्ता पूड़ी,आलू की सब्जी का पैकेट तैयार कर रखते जा रहे हैं। बाबा ने बताया कि आज रात से हर उस घर मे, जहां खाना नही बन पाया है, इनका वितरण किया जाएगा ताकि कोई भूखा न रहे । साथ ही उन्होंने कहा कि यह सिर्फ मैं ही नही कर रहा हूँ, लगभग सभी मुहल्ले मे आरएसएस का कोई न कोई कार्यकर्ता अवश्य कर रहा होगा ।
           एकबात और उन्होंने बताई कि विपत्ति मे पड़े व्यक्ति का कोई धर्म नही होता है वह सिर्फ पीड़ित होता है , इसलिए आरएसएस सबकी सहायता का प्रयास करता है ।
        संभवत बाबा का प्रभाव पड़ा था या नियति कि हमदोनो के मुंह से निकल गया कि क्या हम लोग भी शामिल हो सकते हैं । बाबा बहुत खुश हुए और कहा कि एकदम शामिल हो सकते हो ।
            हमदोनो के साथ कुछ छोटे उम्र के दोस्त भी शामिल हो गए और हम लोग दिन मे ही कर्फ्यू लगे होने के बावजूद भी, खाने का पैकेट जरूरतमंद लोगों तक पहुंचाने लगे, चाहे वह हिंदू हो या मुसलमान। कई बार पीएसी के लोगो ने भी पकड़ा, डांटा और तलाशी ली । जब खाने के पैकेट देखे तो उन्होंने भी सहानुभूति दिखाई और कहा कि सावधानी बरतो। कई बार तो पीएसी के लोगो ने खुद अपनी सुरक्षा मे हम लोगो के पैकेट बंटवाए। एकबार लोकल थाना की पुलिस की गश्ती के दौरान  हमारा पूरा ग्रुप जिसमे दस वर्ष से लेकर चौदह पंद्रह साल के बारह बच्चे थे, पकड़ लिया गया था और पुलिस चौकी मे ले जाकर बैठा दिया गया, इतने मे ही पीएसी के बड़े अधिकारी आगये। जब उनको मामले की जानकारी हुई तो उन्होंने पुलिस वालो को खूब डांटा कि तुम लोग हमेशा सबको लूटते रहते हो, कम से कम इन बच्चों को तो बख्श देते। ये बच्चे  अपनी जान जोखिम मे डाल कर भी भूखे लोगों को खाना खिला रहे हैं। इस तरह हम लोग बचे।
      मध्यम वर्गीय परिवार होने के कारण जिम्मेदारियों का भी एहसास था कि अच्छी शिक्षा भी ग्रहण करनी है ताकि परिवार को सपोर्ट कर सकूं। इसलिए कर्तव्य पथ पर बढता गया ।
           धीरे-धीरे आरएसएस के बारे मे जानने की उत्सुकता भी बढती गई और जैसे जैसे मैने जाना,  इसका प्रभाव मेरे जीवन पर भी पड़ता गया। घर के पास ही मोती लाल नेहरु हास्पिटल और डफरिन हास्पिटल था । हम बच्चे अपने घरों से खाना बनवा कर, और कभी-कभी तो अपने टिफिन के खाने को गरीब लोग, जो इलाज के लिए वहां भर्ती रहते थे, को बांट आते थे ।
       आरएसएस की विचारधारा किसी भी धर्म से नफरत  नही सिखाती है, बल्कि मानवता का धर्म सिखाती है । आरएसएस एक ऐसा देशभक्त  सामाजिक संगठन है जिसके लिए देश के बाद धर्म हैं।
             मैने अपने जीवन काल मे विभिन्न स्थानो पर दंगे, दुर्घटनाएं देखीं, सभी स्थानो पर आरएसएस  के लोगों को पुलिस के पहले पहुंचते हुए ही देखा ।
          आरएसएस के बारे मे चाहे कोई जितना भी  राजनितिक  विद्वेष पाल ले लेकिन आरएसएस की विचारधारा को फैलने से कोई रोक नही सकता है ।
  पारिवारिक व्यस्तता के कारण मै आरएसएस का सक्रिय कार्यकर्ता तो नही बन पाया लेकिन मेरी आत्मिक श्रद्धा हमेशा रही। आरएसएस के कार्यकर्ताओ को उनके नि:स्वार्थ सेवाभाव के लिए मेरा शत शत नमन ।

आरएसएस विश्व का एक मात्र ऐसा संगठन है जो निस्वार्थभाव से समाज को संगठित करके राष्ट्रसेवा व उसकी अखण्डता की रक्षा के लिए कार्य करता है।

उसका एक मात्र लक्ष्य है
*भारत माता की जय।।

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