Wednesday 31 May 2017

संयम

हमारे जीवन में संयम और सहनशीलता का महत्त्व बहुत है। ये हमारी बहुत सी समस्याओं को सुलझा देती है। अगर हम गुस्से से काम लेते हैं, या किसी के बुरे व्यव्हार को देखकर हम उससे बुरा व्यव्हार करते हैं। तो ये हमारे लिए परेशानी का सबब बन सकता है। परन्तु यदि हम समझदारी से काम ले तो अपने व्यवहार से किसी को भी बदल सकते हैं। ऐसी ही सहनशीलता की मूर्ति थे :- संत एकनाथ।
संत एकनाथ महाराष्ट्र के प्रसिद्ध संतों में से एक थे। नामदेव के बाद इन्हीं का नाम सबसे ऊपर आता है। इनका जन्म 1533 ई. से 1599 ई. के बीच पैठण में हुआ। इन्होंने जाती प्रथा के विरुद्ध आवाज उठाई। इनकी प्रसिद्धि भगवद गीता के मराठी अनुवाद करने से हुयी।

संत एकनाथ कभी गुस्सा नहीं करते थे। मनुष्यों के साथ-साथ वो जानवरों को भी प्यार करते थे। इसका उदहारण उनके जीवन की एक घटना से मिलता है।

एक बार संत एकनाथ रोज की तरह गोदावरी नदी में स्नान करने गए। उनका ये नियम था कि जब तक वो स्नान नहीं करते थे, कुछ भी खाते पीते नहीं थे। गोदावरी नदी में स्नान करके जैसे ही वो बाहर आये। एक आदमी ने उन पर थूक दिया। उस व्यक्ति की ऐसी आदत थी। वह प्रायः ऐसा ही किया करता था। उसके थूकने पर एकनाथ ने उसे कुछ नहीं कहा और वे दुबारा स्नान करने चले गए।

अभी वो दुबारा स्नान करके आ ही रहे थे कि उसी व्यक्ति ने फिर से उन पर थूंक दिया। लेकिन इस बार भी संत एकनाथ जरा भी विचलित न हुए और फिर गोदावरी नदी की ओर हो लिए। ये सिलसिला यहीं नहीं रुका। बार-बार ऐसा हुआ और कुल मिला कर उस आदमी ने 108 बार संत एकनाथ पर थूका।

संत एकनाथ जब 108वीं बार स्नान कर के वापस आये तब वह व्यक्ति मन ही मन पछताने लगा। कैसे उसने 108 बार संत एकनाथ पर थूका और संत एकनाथ ने बिना किसी विरोध चुपचाप जाकर 108 बार स्नान किया। उसे इस बात का ज्ञान हो गया कि ये कोई साधारण इन्सान नहीं है। जरुर ही कोई महान संत हैं।

अपनी गलती का एहसास होते ही वह व्यक्ति संत एकनाथ के चरणों में गिर गया और बोला,
” हे महात्मन, मुझे क्षमा करें मैंने आप जैसे संत पुरुष के साथ ऐसा अभद्र व्यव्हार किया। मुझसे बड़ी भूल हो गयी। मुझे क्षमा करें।”

संत एकनाथ ने यह सब सुन उस आदमी को जवाब दिया,
“क्षमा मत मांगो भाई, तुमने मेरे साथ कुछ भी अनुचित नहीं किया है। आज तुम्हारे ही कारण मुझ पर इतना उपकार हुआ जो मुझे गोदावरी नदी में 108 बार स्नान करने का अवसर प्राप्त हुआ।”
बस फिर क्या था। वह व्यक्ति उस दिन से संत एकनाथ का परम भक्त बन गया। इस तरह संत एकनाथ ने एक ऐसी उदाहरण सबके सामने रखी जिससे यह सिद्ध हुआ कि अगर हम चाहें तो विनम्र स्वाभाव अपना कर भी दुश्मन को दोस्त बना सकते हैं।

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