द्धितीय विश्व युद्ध का समय था , एक गोली जापानी सैनिक के कंधे में लगी और वह लडख़ड़ा के वहीँ गिर पड़ा। लगातार खून बहने के कारण उसकी कमज़ोरी बढ़ने लगी। उसी मोर्चे पर जूझते एक भारतीय सैनिक की निगाह उस पर पड़ी, तो उसमे मानवता की भावना जाग उठी। वह सोचने लगा कि आख़िरी क्षणों में शत्रुता कैसी ?
सहायता करने की भावना से वो उसके पास गया और उसका सर उठा कर अपनी गोद में रख लिया। फिर अपनी थर्मस से उसे चाय पिलाने लगा। जापानी सैनिक के मन में द्वेष जाग उठा और उसने अपना जंगल नाइफ भारतीय सैनिक के पेट में भोंक दिया। भारतीय जवान को इसका अंदेशा स्वप्न में भी नहीं था। उसके हाथ से थर्मस छूट गया। भारतीय जवान गिर पड़ा। उसके गिरते ही जापानी भी एक और लुढ़क गया।
चाकू का घाव प्राणघातक न था , दो तीन दिनों बाद जवान का घाव भरने लगा। जब वह चलने - फिरने लायक हुआ , तो अपने पलंग से उठा और चाय का मग लेकर जापानी सैनिक के पलंग के पास जा पहुंचा और मुस्कुराते हुए चाय का मग उसके हाथ में थमा कर कहा,' उस दिन आपको चाय पिलाने की इच्छा मेरी अधूरी रह गयी थी। भगवान् ने मेरी प्रार्थना सुन ली , आपको फिर चाय देते हुए मेरे मन को शान्ति का अनुभव हो रहा है। "
आत्मग्लानि ने जापानी सैनिक के प्रतिशोध की भावना को जला कर राख कर दिया था। बोला कि," आज मै समझ पाया हूँ कि बुद्ध को ज्ञान भारत में क्यों मिला था।
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