Thursday 11 May 2017

भगत सिंह

शहीद भगत सिंह की बैरक की सफाई करने वाले 'भंगी' का नाम बोघा था।

भगत सिंह उसको बेबे(मां) कहकर बुलाता था। जब कोई पूछता कि भगत सिंह ये भंगी बोघा तेरी बेबे कैसे हुआ ?  तब भगत सिंह कहता, " मेरा मल-मूत्र या तो मेरी बेबे ने उठाया, या इस भले पुरूष बोघे ने।बोघे में मैं अपनी बेबे(मां) देखता हूं।  ये मेरी बेबे ही है" यह कहकर भगत सिंह बोघे को अपनी बाहों में भर लेता।

भगत सिंह अक्सर ही कहता ,"बेबे मैं तेरे हाथों की रोटी खाना चाहता हूँ।"
पर बोघा अपनी जाति को याद करके झिझक जाता और कहता-
"भगत सिंह तू ऊँची जात का जाट सरदार और मैं भंगी, तू रहने दे, ज़िद मत कर।"

भगत सिंह अपनी ज़िद का पक्का था, फांसी से कुछ दिन पहले जिद करके उसने बोघे को कहा "बेबे अब तो हम चन्द दिन के मेहमान हैं, अब तो इच्छा पूरी कर दे!"

बोघे की आँखों में आंसू बह चले। रोते-रोते उसने रोटी बनाई और भगत सिंह को खिलाई। भगत सिह के मुंह में रोटी का गास डालते ही बोघे की रुलाई फूट पड़ी।

*"ओए भगत सिंहां, ओए मेरे शेरा, धन्य है तेरी मां, जिसने तुझे जन्म दिया।
भगत सिंह ने बोघे को अपनी बाहों में भर लिया।

ऐसी सोच का मालिक था....हमारा भगत सिंह।

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