Thursday 27 April 2017

जोरावर सिंह व फतेह सिंह

यह हैं हिंदुस्तान के शेरदिल बालक जोरावर सिंह व फतेह सिंह। जब पिता गुरु गोबिंद सिंह मुगल आतंकवादी औरंगजेब की सेना से लोहा लेते हुए आनन्दपुर से सरसा नदी पार करके सुरक्षित स्थान की ओर जा रहे थे तभी अंधेरी रात और नदी के तेज बहाव के कारण ये दोनों बालक दादी गूजरी जी के साथ काफिले से बिछड़ गए। इनके साथ एक रसोइया गंगाराम भी था, यह तीनों उसी के यहां ठहर गए। सरहिंद का नबाब औरंगजेब का पालतू कुत्ता था, उसने गुरु गोबिंद सिंह जी के परिवार के बारे में सूचना देने वाले को ईनाम देने की घोषणा की थी, इसी लालच में रसोइए गंगूू ने बजीर खान को दोनों बालकों की सूचना देदी। जोरावर सिंह व फतेह सिंह को दादी गूजरी जी के साथ बंदी बना लिया। जब दोनों वीर बालकों को दुष्ट नबाब के सामने लाया गया तो उस दुष्ट ने बालकों से कहा कि "यदि तुम स्लाम कबूल कर लो तो तुम्हें जीवित छोड़ने के साथ साथ महल, जागीर के साथ  सोना, चांदी भी देगें।" वीर बालकों ने कहा अपनी मातृभूमि और धर्म की रक्षा के लिए प्राण त्यागना मंजूर है।" दुष्ट बजीर खान ने दोनों को सरहिंद के किले की दीवार में जिन्दा चिनवाने का आदेश दे दिया। जब दीवार वीर फतेह सिंह के सिर के पास पहले आ गई तो वीर जोरावर की आँखों में आंसू देख कर प्रश्न किया " डर गए क्या, अभी भी समय है स्लाम कबूल कर लो जान बख्श देंगे।" वीर जोरावर सिंह ने हँसते हुए जबाब दिया " यह आंसू इस लिए हैं कि मैें इस धरती पर पहिले आया, मैंने पहले इसका अन्न जल ग्रहण किया और जब मातृभूमि के लिए शहीद होने का समय आया तो यह सौभाग्य मेरे छोटे भाई फतेह सिंह  को मुझ से पहिले मिल रहा है।" दोनों शेरदिल वीर बालकों के मातृभूमि और धर्म की रक्षा के लिए दिए गए इस बलिदान को यह क्रतज्ञ राष्ट्र युगों-युगों तक याद रखेगा।......

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