Sunday 30 April 2017

झाला सरदार मन्ना जी

1576 के हल्दीघाटी युद्ध की वीर गाथा झाला सरदार मन्ना जी के बलिदान के वर्णन के बिना पूर्ण नहीं हो सकती।

महाराणा प्रताप और मुगल आतंकवादी अकबर की सेना के बीच घनघोर युद्ध हुआ। जब महाराणा का भाला दुष्ट अकबर की सेना पर प्रलय बन कर टूटा तो खून की धारा के बहाव में मुगलों के मुण्ड सूखे पतों की तरह तैरते हुए दिखने लगे, उनके साथ कंधे से कन्धा मिला कर लड़ रहे थे झाला सरदार मन्ना जी। जिधर भी महाराणा जाते महावीर मन्ना जी की तलवार रास्ता साफ कर देती।

मन्ना जी ने जब देखा कि महाराणा का प्रिय घोड़ा चेतक तथा महाराणा स्वयं युद्ध में गंम्भीर रूप से घायल हो गए हैं तथा कायर मुगल सेना मात्र राणा जी के ऊपर ही प्रहार करने पर आमादा है तो उनके प्राणों की रक्षा करने के लिए राष्ट्र भक्त सरदार मन्ना जी ने महाराणा का मुकुट अपने मस्तक पर धारण कर लिया और राणा जी से कहा कि दुष्ट अकबर के अन्याय का अंत करने के लिए आप का सुरक्षित रहना आवश्यक है, अपने प्राणों की परवाह किये बिना राणा को सुरक्षित स्थान की ओर भेज कर स्वयं युद्ध की कमान सँभाल ली तथा अंतिम सांस तक शत्रु से युद्ध करते हुए मातृभूमि पर बलिदान हो गए।

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