Friday 24 March 2017

शहीद हेमू कालाणी

23 मार्च अमर शहीद हेमू कालाणी का जन्मदिवस है, एक ऐसा क्रांतिकारी जिसका नाम भी हम में से कइयों ने संभवतः नहीं सुना होगा और जो आज भी इतिहास की किताबों में उपेक्षित है। 23 मार्च 1923 को वर्तमान पाकिस्तान के सिंध में सुक्कर में पेशूमल कालाणी एवं जेठी बाई के घर जन्मे राही हेमन यानी हेमू कालाणी बचपन से ही स्वदेशी वस्तुओं के उपयोग का प्रचार करने लगे थे पर जल्दी ही वे क्रांतिकारी गतिविधियों में शामिल हो गए और अंग्रेजी सरकार से सम्बंधित वाहनों पर कई बम हमलों में शामिल रहे|
1942 में भारत छोडो आन्दोलन में हेमू ने सक्रिय योगदान दिया और इस आन्दोलन को इस ऊँचाई तक पंहुचाया कि अंग्रेजी सरकार को इसके दमन के लिए यूरोपियन बटालियन भेजनी पड़ी| जब हेमू को यह पता लगा कि इन सैनिकों और हथियारों को लेकर सिंध आ रही ट्रेन उनके ही कस्बे से गुजरेगी तो उन्होंने फिशप्लेट उखाड़ कर इसे विफल करने कि योजना बनायी ताकि ट्रेन ना आ सके|
चूँकि उनके पास कोई भी औजार नहीं था और समय भी कम था इसलिए 23 अक्टूबर 1942 की रात हेमू और उनके साथियों ने हाथों से ही इस काम को करना शुरू किया पर काम समाप्त होने के पहले ही ब्रिटिश सैनिकों की नजर उन पर पड़ गयी| अपने साथियों को बचने के प्रयास में हेमू पकडे गए और उन पर अपने साथियों का नाम बताने के लिए भीषण अत्याचार किये गए पर मात्र 18 वर्ष के हेमू अडिग बने रहे|
उनको फांसी की सजा सुनाई गयी जिसके खिलाफ सिंध भर से आवाजें उठीं और उनके वकील पीरजादा अब्दुल सत्तार उनके चाचा जी के साथ एक माफीनामा उनके पास दस्तखत करने के लिए लाये, जिसमें इस शर्त पर उन्हें माफ़ करने की बात कही गयी थी कि वो अपने साथी क्रांतिकारियों के बारे में सारी सूचनाएँ पुलिस को दे देंगे| उनकी माँ ने भी उस रात जब हेमू को फांसी दी जानी थी, इस हेतु उनसे काफी कहा सुना पर हेमू के लिए इन्हें स्वीकार करना असंभव था| उन्हें 21 जनवरी 1943 को फांसी पर लटका दिया गया और माँ भारती का ये सपूत माँ की बलिवेदी पर बलिदान हो गया|
भारत-पाक विभाजन के बाद पाकिस्तान में धार्मिक उन्माद के कारण हेमू की माँ भारत आ गयीं| इंदिरा सरकार ने हेमू की स्मृति में एक डाक टिकट जारी किया, जबकि अटल सरकार ने 21 अगस्त 2003 को हेमू की एक प्रतिमा संसद भवन में स्थापित कर इस अमर बलिदानी को अपनी श्रद्धांजलि भेंट की| हाँ, उस सिंध में जो हेमू की जन्मभूमि और कर्मभूमि है, आज उनका कोई स्मारक नहीं क्योंकि पाकिस्तान की इस्लामी सरकार किसी हिन्दू को सम्मानित करने का सोच भी कैसे सकती है, और शायद यही वजह है कि सुक्कर के हेमू कालाणी पार्क का नाम बदल कर कासिम पार्क कर दिया गया| पर हमारे हृदयों में हेमू सदैव जीवित रहेंगे| उनके जन्मदिवस पर उन्हें कोटिशः नमन एवं विनम्र श्रद्धांजलि|

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