Tuesday 27 December 2016

तारे कहा गए

***तारे कहाँ गए***
ढूँढो ढूँढो कहाँ गए
सारे तारे कहाँ गए
पूरी रात गगन पर थे
सुबह सकारे कहाँ गए
चन्दा मुँह लटकाए है
इसने कहीं छुपाए है
यह टेढा़ वे भोले हैं
उफ् बेचारे कहाँ गए
कूदे ना हो नदिया में
ढूंढो जंगल बगिया में
भटक न जाएं वे रस्ता
ढूंढो प्यारे कहाँ गए
सपने में तो आए थे
हमने खेल रचाए थे
कमरे में तो नहीं कहीं
फिर ये सारे कहाँ गए
टंके मिले कुछ चूनर पर
कुछ लटके हैं झूमर पर
लेकिन पूरे नहीं हुए
शेष सितारे कहाँ गए
रचना-- गोपाल माहेश्वरी

No comments:

Post a Comment